समान नागरिक संहिता के लिए विधि आयोग ने माँगी जनता की राय , ऐसे भेजें अपने सुझाव

16 June 2023

🚩समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) को लेकर विधि आयोग (Law Commission) ने एक बार फिर से लोगों सेे रायशुमारी शुरू कर दी है। इसको लेकर देश के प्रबुद्ध लोगों तथा सभी धर्मों के मान्यता प्राप्त प्रमुख धार्मिक संगठनों से उनकी राय माँगी है।

 

🚩विधि आयोग ने बुधवार (14 जून 2023) को कहा कि 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचारों को जानने के लिए फिर से निर्णय लिया। आयोग ने कहा , कि जिन लोगों को इसमें रुचि है और अपनी राय देना चाहते हैं, वे राय दे सकते हैं।

 

🚩विधि आयोग ने कहा कि जो लोग अपनी राय रखना चाहते हैं , वे नोटिस जारी करने की तारीख के 30 दिनों के भीतर इससे संबंधित लिंक पर अपनी राय भेज सकते हैं। इसके अलावा, भारत सरकार के विधि आयोग को Membersecretary-lci@gov.in  पर ईमेल द्वारा भी राय भेज सकते हैं।

 

🚩कानूनी पैनल ने आगे कहा, “शुरुआत में भारत के 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर विषय की जाँच की थी और 7 अक्टूबर 2016 को एक प्रश्नावली दी थी। इसके साथ ही, 19 मार्च 2018 एवं 27 मार्च 2018 और 10 अप्रैल 2018 की सार्वजनिक अपील/नोटिस देकर सभी हितधारकों को अपने विचार रखने का अनुरोध किया था।”

 

🚩विधि आयोग ने अपने बयान में कहा , कि इस अपील पर लोगों से उन्हें भारी प्रतिक्रिया मिली थी। इसके बाद 21वें विधि आयोग ने 31 अगस्त 2018 को ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ पर परामर्श पत्र जारी किया थी।

 

🚩पैनल ने कहा कि चूंकि परामर्श पत्र जारी किए हुए तीन साल से अधिक समय बीत चुका है। ऐसे में विषय की प्रासंगिकता और महत्व को ध्यान में रखते हुए तथा इस विषय पर विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए भारत के 22वें विधि आयोग ने इस पर पहल करना जरूरी समझा।

 

🚩क्या है समान नागरिक संहिता

 

🚩समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है, जो देश के हर समुदाय पर समान रूप लागू होता है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या पंथ का हो, सबके लिए एक ही कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम (ICA) 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के माध्यम से सारे समुदायों पर लागू किया, लेकिन शादी-विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति, गोद लेने आदि से जुड़े मसलों को धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।

 

🚩आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुओं के पर्सनल लॉ को खत्म कर दिया, लेकिन मुस्लिमों के कानून को ज्यों का त्यों बनाए रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को निरस्त कर हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया। ये कानून हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख आदि पर समान रूप से लागू होते हैं।

 

🚩मुस्लिमों का कानून , पर्सनल कानून (शरिया), 1937 के तहत संचालित होता है। इसमें मुस्लिमों के निकाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, संपत्ति का अधिकार, बच्चा गोद लेना आदि आता है, जो इस्लामी शरिया कानून के तहत संचालित होते हैं। अगर समान नागरिक संहिता लागू होता है तो मुस्लिमों के निम्नलिखित कानून बदल जाएँगे।

 

🚩गोवा में लागू है UCC

 

🚩देश भर में समान नागरिक संहिता को लागू करने की माँग दशकों से हो रही है, लेकिन देश में गोवा अकेला ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। गोवा में वर्ष 1962 में यह कानून लागू किया गया था।

 

🚩साल 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भारतीय संसद ने गोवा में ‘पुर्तगाल सिविल कोड 1867’ को लागू करने का प्रावधान किया था। इसके तहत गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई और तब से राज्य में यह कानून लागू है।

 

🚩पिछले दिनों गोवा में लागू यूनिफॉर्म सिविल कोड की तारीफ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. ए. बोबड़े ने भी की थी। सी.जे.आई. ने कहा था कि गोवा के पास पहले से ही वह है, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने पूरे देश के लिए की थी।

 

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