जन्मदिन पर विषेश : आशाराम बापू कौन है ? उन्होंने क्या क्या किया ?

29 April 2024

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हिंदू संत श्री आशारामजी बापू को बचपन से ही प्रगाढ़ भक्ति प्राप्त थी । प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर ठाकुरजी की पूजा में लग जाना उनका नित्य नियम था ।

 

उनके 87वें जन्मदिवस को पिछले 7 दिनों से दुनियाभर में विश्व सेवा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

 

कही हरिनाम कीर्तन यात्राएं तो कही गीता भागवद सत्संग कार्यक्रमो का आयोजन हो रहा है और गरीबों में फल, मिठाई, राशन, कपड़े, बर्तनों का निशुल्क वितरण किया जा रहा है और पलाश,गुलाब आदि के शर्बत पानी के स्टॉल लगाए जा रहे है।

 

हिन्दू संत आशाराम बापू का बचपन का नाम आसुमल था । उनका जन्म अखंड भारत के सिंध प्रांत के बेराणी गाँव में चैत्र कृष्ण षष्ठी विक्रम संवत् 1994 (1 मई 1937) के दिन हुआ था । उनकी माता महँगीबा व पिताजी थाऊमल नगरसेठ थे ।

 

बालक आसुमल को देखते ही उनके कुलगुरु ने भविष्यवाणी की थी कि “आगे चलकर यह बालक एक महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा ।”

 

बापू आसारामजी का बाल्यकाल संघर्षों की एक लंबी कहानी है। 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण अथाह सम्पत्ति को छोड़कर बालक आसुमल परिवार सहित अहमदाबाद आ बसे। उनके पिताजी द्वारा लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ करने से आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा । तत्पश्चात् शक्कर का व्यवसाय भी आरम्भ हो गया ।

 

माता-पिता के अतिरिक्त बालक आसुमल के परिवार में एक बड़े भाई तथा दो छोटी बहनें थी।

बालक आसुमल को बचपन से ही प्रगाढ़ भक्ति प्राप्त थी । प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर ठाकुरजी की पूजा में लग जाना उनका नित्य नियम था ।

 

दस वर्ष की नन्ही आयु में बालक आसुमल के पिताजी थाऊमलजी देहत्याग कर स्वधाम चले गये ।

पिताजी के देहत्यागोपरांत आसुमल को पढ़ाई (तीसरी कक्षा) छोड़कर छोटी-सी उम्र में ही कुटुम्ब को सहारा देने के लिये सिद्धपुर में एक परिजन के यहाँ नौकरी करनी पड़ी । 3 साल तक नौकरी के साथ-साथ साधना में भी प्रगति करते रहे ।

 

3 साल बाद वे वापिस अहमदाबाद आ गए और भाई के साथ शक्कर की दुकान पर बैठने लगे ।

लेकिन उनका मन सांसारिक कार्यो में नही लगता था, ज्यादातर जप-ध्यान में ही समय निकालते थे ।

 

21 साल की उम्र में घर वाले आसुमल जी की शादी करना चाहते थे लेकिन उनका मन संसार से विरक्त और भगवान में तल्लीन रहता था । इसलिए वे घर छोड़कर भरुच के अशोक आश्रम चले गए । पर घरवालो ने उन्हें ढूंढ कर जबरदस्ती उनकी शादी करवा दी ।

 

लेकिन मोह-ममता का त्याग कर ईश्वर प्राप्ति की लगन मन में लिए शादी के बाद भी तुरंत पुनः घर छोड़ दिया और आत्म पद की प्राप्ति हेतु जंगलों-बीहडों में घूमते और ईश्वर प्राप्ति के लिए तड़पते रहे ।

 

नैनीताल के जंगल में योगी ब्रह्मनिष्ठ संत साईं लीलाशाहजी बापू को उन्होंने सद्गुरु के रूप में स्वीकार किया ।

 

ईश्वरप्राप्ति की तीव्र तड़प देखकर सद्गुरु लीलाशाहजी बापू का ह्रदय छलक उठा और उन्हें 23 वर्ष की उम्र में सद्गुरु की कृपा से आत्म-साक्षात्कार हो गया । तब सद्गुरु लीलाशाह जी ने उनका नाम आसुमल से आशारामजी रखा ।

 

अपने गुरु लीलाशाहजी बापू की आज्ञा शिरोधार्य कर संत आसारामजी बापू समाधि-अवस्था का सुख छोड़कर तप्त लोगों के हृदय में शांति का संचार करने हेतु समाज के बीच आ गये।

 

सन् 1972 में अहमदाबाद साबरमती के तट पर आश्रम स्थापित किया । भारत की राष्ट्रीय एकता, अखंडता और विश्व शांति के लिए हिन्दू संत आसाराम बापू ने राष्ट्र के कल्याणार्थ अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ।

 

हिन्दू संत आशाराम बापू के मार्गदर्शन में देश-विदेश में हजारों ‘बाल संस्कार केन्द्र निःशुल्क चलाये जा रहे हैं । इनमें बालकों को माता-पिता का आदर करने के संस्कार, पढ़ाई में अव्वल आने के उपाय और यौगिक प्रयोग आदि सिखाये जाते हैं ।

 

विद्यालयों में ‘योग व उच्च संस्कार शिक्षा अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें विद्यार्थियों को माता-पिता एवं गुरुजनों का आदर, अनुशासन, यौगिक शिक्षा, आदर्श दिनचर्या, परीक्षा में अच्छे अंक पाने की कुंजियाँ आदि महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर अनुभवी वरिष्ठों द्वारा मार्गदर्शन दिया जाता है ।

 

अब तक देश के 80,000 से अधिक विद्यालय इस अभियान से लाभान्वित हो चुके हैं ।

 

विद्यार्थियों के बाल, छात्र व कन्या मंडल भी बनाये गए है जो व्यसनमुक्ति अभियान, गौ-रक्षा अभियान, पर्यावरण सुरक्षा कार्यक्रम आदि सेवाकार्य करते हैं ।

 

वेलेंटाइन डे जैसे त्यौहारों से भी बचने हेतु हर वर्ष 14 फरवरी को देशभर के विभिन्न स्थानों के विभिन्न विद्यालयों के साथ साथ घर-घर में ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ मनाया जा रहा है ।

 

अब ‘संत श्री आशारामजी गुरुकुलों ‘ की भी श्रृंखला बढ़ने लगी है, जिनमें विद्यार्थियों को लौकिक शिक्षा के साथ-साथ स्मृतिवर्धक यौगिक प्रयोग, योगासन, प्राणायाम, जप, ध्यान आदि के माध्यम से उन्नत जीवन जीने की कला सिखायी जाती है । उनमें सुसंस्कारों का सिंचन किया जाता है तथा उन्हें अपनी महान वैदिक संस्कृति का ज्ञान प्रदान किया जाता है ।

 

‘युवाधन सुरक्षा अभियान चलाया जा रहा है तथा ‘युवा सेवा संघ एवं ‘महिला उत्थान मंडल की स्थापना की गयी है । इन संगठनों द्वारा भारतभर में ‘संस्कार सभाएँ चलायी जा रही हैं, जिनका लाभ लेकर युवक-युवतियाँ अपना सर्वांगीण विकास कर रहे हैं ।

 

समाज के पिछडे, शोषित, बेरोजगार व बेसहारा लोगों की सहायता के लिए बापू आशारामजी द्वारा ‘भजन करो, भोजन करो, दक्षिणा पाओ’ योजनायें चलायी जा रही है ।

 

इसके अंतर्गत उन्हें कहा जाता है कि वे आश्रम में अथवा आश्रम द्वारा संचालित समितियों के केन्द्रों में आकर दिनभर केवल भजन, कीर्तन और ध्यान करें । उन्हें दिन का भोजन और शाम को घर जाते समय 50 रुपये तक की नकद राशि दी जाती है । इसमें भाग लेनेवालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है । जिससे ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मान्तरण में रोक लग रही है और जहाँ लोगों को भोजन की विकट समस्या से निजात मिलती है, वहीं उनका आध्यात्मिक उत्थान भी हो रहा है । इससे बेरोजगार लोगों में आपराधिक प्रवृत्ति को रोकने में बहुत मदद मिल रही है ।

 

कहा जाता है कि हिन्दू संत आसाराम बापू का बहुत बड़ा साधक-समुदाय है । लगभग करीब 8 करोड़ लोग देश-विदेश में है और इतने सालों से बिना सबूत जेल में होते हुए भी उनके अनुयायियों की श्रद्धा टस से मस नहीं हुई है । उन करोड़ो भक्तों का एक ही कहना है कि हमारे गुरुदेव (संत आशारामजी बापू) निर्दोष हैं उन्हें षड़यंत्र के तहत फंसाया गया है । वे जल्द से जल्द निर्दोष छूटकर हमारे बीच शीघ्र ही आयेगे ।

 

गौरतलब है संत आशारामजी बापू का जन्म दिवस 29 अप्रैल को है अभी उनका 87 वां साल चल रहा है, पिछले 11+ सालों से जेल में बन्द होने पर भी उनके करोड़ों अनुयायियों द्वारा देश-विदेश में एक अनोखे अंदाज में मनाया जाता है ये दिन..

 

इस दिन देशभर में जगह-जगह पर निकाली जाती हैं विशाल भगवन्नाम संकीर्तन यात्रायें, वृद्धाश्रमों,अनाथालयों व अस्पतालों में निशुल्क औषधि, फल व मिठाई वितरित की जाती है।

 

गरीब व अभावग्रस्त क्षेत्रों में होता है विशाल भंडारा जिसमें वस्त्र,अनाज व जीवन उपयोगी वस्तुओं का वितरण किया जाता है।

 

उस दिन जगह जगह पर छाछ,पलाश व गुलाब के शरबत के प्याऊ लगाये जाते हैं । एवं सत्साहित्य आदि का वितरण किया जाता है।

 

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