कांग्रेस व अन्य नेता गांधी जी को लेकर राजनीति करते हैं, पर आश्चर्य…वे उनकी बातों और सिद्धांतों को अमल में क्यों नहीं लाते !?

3 October 2023

 

 

🚩प्रारंभ से ही इसाई धर्मान्तरण के विरुद्ध सबसे अधिक मुखर स्वर हमारे ही देश के गणमान्य व्यक्तियों ने उठाए हैं।

 

🚩धर्मांतरण के प्रति गाँधी जी का भाव क्या था ?

यह उन्होंने अपनी आत्मकथा में उल्लेख किया है ।

 

🚩 यह तब की बात है, जब वह विद्यालय में पढ़ते थे। उन्होंने लिखा कि “ उन्हीं दिनों मैने सुना कि एक मशहूर हिन्दू सज्जन अपना धर्म बदल कर ईसाई बन गये हैं। शहर में चर्चा थी कि बपतिस्मा लेते समय उन्हें गोमांस खाना पड़ा और शराब पीनी पड़ी । अपनी वेशभूषा भी बदलनी पड़ी तथा तब से हैट लगाने और यूरोपीय वेशभूषा धारण करने लगे। मैने सोचा जो धर्म किसी को गोमांस खाने शराब पीने और पहनावा बदलने के लिए विवश करे वह तो धर्म कहे जाने योग्य नहीं है। मैने यह भी सुना कि यह नया कन्वर्टेड व्यक्ति अपने पूर्वजों के धर्म को उनके रहन-सहन को तथा उनके देश को गालियां देने लगा है। इन सबसे मुझमें ईसाईयत के प्रति नापसंदगी पैदा हो गई। ” ( एन आटोवाय़ोग्राफी आर द स्टोरी आफ माइ एक्सपेरिमेण्ट विद ट्रूथ, पृष्ठ -3-4 नवजीवन, अहमदाबाद)

 

🚩गांधी जी का स्पष्ट मानना था कि ईसाई मिशनरियों का मूल लक्ष्य उद्देश्य भारत की संस्कृति को समाप्त कर भारत का यूरोपीयकरण करना है। उनका कहना था कि भारत में आमतौर पर ईसाइयत का अर्थ है भारतीयों को राष्ट्रीयता से रहित बनाना और उसका यूरोपीयकरण करना।

 

🚩गांधीजी ने धर्मांतरण के लिए मिशनरी प्रयासों के सिद्धांतों का ही विरोध किया। गांधी जी मिशनरियों को आध्यात्मिक शक्तिसंपन्न व्यक्ति नहीं मानते थे बल्कि उन्हें प्रोपोगेण्डिस्ट मानते थे। गांधी जी ने एक जगह लिखा कि “ दूसरों के हृदय को केवल आध्यात्मिक शक्तिसंपन्न व्यक्ति ही प्रभावित कर सकता है । जबकि अधिकांश मिशनरी वाकपटु तो होते हैं, पर आध्यात्मिक शक्ति संपन्न व्यक्ति नहीं। “ ( संपूर्ण गांधी बाङ्मय, खंड-36, पृष्ठ -147)

 

🚩गांधी जी ने क्रिश्चियन मिशन्स पुस्तक में कहा है कि “भारत में ईसाईयत अराष्ट्रीयता एवं यूरोपीयकरण का पर्याय बन चुकी है।”(क्रिश्चियम मिशन्स, देयर प्लेस इंडिया, नवजीवन, पृष्ठ-32)। उन्होंने यह भी कहा कि ईसाई पादरी अभी जिस तरह से काम कर रहे हैं , उस तरह से तो उनके लिए स्वतंत्र भारत में कोई भी स्थान नहीं होगा। वे तो अपना भी नुकसान कर रहे हैं। वे जिनके बीच काम करते हैं, उन्हें हानि पहुंचाते हैं और जिनके बीच काम नहीं करते उन्हें भी हानि पहुंचाते हैं। सारे देश को वे नुकसान पहुंचाते हैं। गाधीजी धर्मांतरण (कनवर्जन) को मानवता के लिए भयंकर विष मानते थे। गांधी जी ने बार -बार कहा कि धर्मांतरण महापाप है और यह बंद होना चाहिए।”

 

🚩उन्होंने कहा कि “मिशनरियों द्वारा बांटा जा रहा पैसा तो धन पिशाच का फैलाव है।“ उन्होंने कहा कि “ आप साफ साफ सुन लें मेरा यह निश्चित मत है, जो कि अनुभवों पर आधारित हैं, कि आध्यात्मिक विषयों पर धन का तनिक भी महत्व नहीं है। अतः आध्य़ात्मिक चेतना के प्रचार के नाम पर आप पैसे बांटना और सुविधाएं बांटना बंद करें ।”

 

🚩1935 में एक मिशनरी नर्स ने गांधी जी से पूछा “क्या आप धर्मांतरण के लिए मिशनरियों के भारत आगमन पर रोक लगा देना चाहते है? गांधी जी ने उत्तर दिया “मैं रोक लगाने वाला कौन होता हूँ, अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं, तो मैं धर्मांतरण का यह सारा धंधा ही बंद करा दूँ । मिशनरियों के प्रवेश से उन हिन्दू परिवारों में, जहाँ मिशनरी बैठे हैं, वेशभूषा, रीति-रिवाज और खान-पान तक में परिवर्तन हो गया है । आज भी हिन्दू धर्म की निंदा जारी है । ईसाई मिशनिरयों की दुकानों में मरडोक की पुस्तकें बिकती हैं। इन पुस्तकों में सिवाय हिन्दू धर्म की निंदा के और कुछ है ही नहीं। अभी कुछ ही दिन हुए, एक ईसाई मिशनरी एक दुर्भिक्ष-पीड़ित अंचल में खूब धन लेकर पहुँचा वहाँ अकाल-पीड़ितों को पैसा बाँटा व उन्हें ईसाई बनाया फिर उनका मंदिर हथिया लिया और उसे तुड़वा डाला। यह अत्याचार नहीं तो क्या है, जब उन पीड़ित लोगों ने ईसाई धर्म अपनाया , तो तभी उनका मंदिर पर से अधिकार समाप्त। वह हक उनका बचा ही नहीं और फिर ईसाई मिशनरी का भी मंदिर पर कोई हक नहीं था । फिर वो मिशनरीज़ मंदिर को किस अधिकार से हथिया कर नष्ट किए । और विडंबना ये कि वो मिशनरीज वहाँ पहुँचकर उन्हीं लोगों से उस मंदिर को तोड़वाते हैं , जहाँ कुछ समय पहले तक वे ही लोग मानते थे कि वहाँ ईश्वर का वास है। ‘‘ ( संपूर्ण गांधी बांङ्मय खंड-61 पृष्ठ-48-49)

 

🚩गांधीजी कहते थे,

“हमें गोमांस भक्षण और शराब पीने की छूट देने वाला ईसाई धर्म नहीं चाहिए। धर्म परिवर्तन वह ज़हर है जो सत्य और व्यक्ति की जड़ों को खोखला कर देता है। मिशनरियों के प्रभाव से हिन्दू परिवार का विदेशी भाषा, वेशभूषा, रीति रिवाज़ के द्वारा विघटन हुआ है। यदि मुझे क़ानून बनाने का अधिकार होता तो मैं धर्म परिवर्तन बंद करवा देता। इसे तो मिशनरियों ने व्यापार बना लिया है , पर धर्म आत्मा की उन्नति का विषय है। इसे रोटी, कपड़ा या दवाई के बदले में बेचा या बदला नहीं जा सकता।”

 

🚩भारत में वर्तमान में प्रत्येक राज्य में बड़े पैमाने पर ईसाई धर्मप्रचारक मौजूद है जो मूलत: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय हैं। अरुणालच प्रदेश में वर्ष 1971 में ईसाई समुदाय की संख्या 1 प्रतिशत थी जो वर्ष 2011 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय राज्यों में ईसाई प्रचारक किस तरह से सक्रिय हैं। इसी तरह नगालैंड में ईसाई जनसंख्‍या 93 प्रतिशत, मिजोरम में 90 प्रतिशत, मणिपुर में 41 प्रतिशत और मेघालय में 70 प्रतिशत हो गई है। चंगाई सभा और धन के बल पर भारत में ईसाई धर्म तेजी से फैल रहा है।

 

🚩वर्ष 2011 में भारत की कुल आबादी 121.09 करोड़ है। जारी जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक देश में ईसाइयों की आबादी 2.78 करोड़ है। जो देश की कुल आबादी का 2.3% है। ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि दर 15.5% रही, जबकि सिखों की 8.4%, बौद्धों की 6.1% और जैनियों की 5.4% है।

ध्यान देने योग्य बात यह कि , ईसाईयों की जनसंख्या वृद्धिदर का कारण केवल ईसाई समाज में बच्चे अधिक पैदा होना नहीं है। अपितु हिन्दुओं का ईसाई मत को स्वीकार करना ही बड़ा कारण है ।

 

🚩इसलिए राष्ट्रहित को देखते हुए देश में धर्मान्तरण पर लगाम अवश्य लगनी चाहिए । – डॉ विवेक आर्य

 

🚩कानून के लिए गांधीजी ने क्या कहा था?

 

🚩वर्तमान न्याय प्रणाली हमें अंग्रेजों से विरासत में मिली है।

गांधीजी ने कहा था, ‘यह प्रणाली अंग्रेजों ने नेटिव इंडियंस ( मूलनिवासी भारतीयों ) को न्याय देने के लिए प्रस्थापित नहीं की थी, बल्कि अपना साम्राज्य मजबूत करने के लिए इस न्याय प्रणाली का गठन किया था। इस न्याय प्रणाली में ‘स्वदेशी’ कुछ भी नहीं है। इसकी भाषा, पोशाक तथा चिंतन सब कुछ विदेशी है। अतीत में भारत में जो न्याय दिलाने वाली संस्थाएँ विद्यमान थीं, उन्हें पूर्णत: समाप्त कर एक केंद्रीभूत तथा सर्वव्यापी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों ने स्थापित की। गांधीजी ने यह भी कहा था, ‘जिसकी थैली बड़ी होगी, उसी को यह न्याय प्रणाली सुहाती है।’

 

🚩कांग्रेस बोलती है हम गांधी जी के सिद्धांतों पर चलते हैं ।

आश्चर्य… कि फिर उन्होंने गांधीजी के सिद्धांत पर चलकर इतने साल सत्ता में रहे फिर भी धर्मान्तरण पर रोक क्यों नही लगाई ? अंग्रेजों के बनाए कानूनों में बदलाव क्यों नही किया गया ? और आज भी जो भी नेता गांधीजी को लेकर राजनीति करते हैं वे उनके विचारों पर भी अमल करें और तुरंत धर्मान्तरण पर रोक लगाएं । अंग्रेजों के बनाए कानून की जगह भारतीय न्याय पद्धति लेकर आएं । तब तो भले माना जा सकता है कि वो गाँधी जी को मानते हैं ।

 

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