4 july 2018
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भारत की #स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले #आजाद हिंद सेना का #5 जुलार्इ 1943 को गठन हुआ था ।
#आजाद हिंद सेनाके #संस्थापक #नेताजी सुभाषचंद्र बोस उग्रमतवादी थे । अंग्रेजोंको परास्त करनेके लिए भारतकी स्वतंत्रता संग्रामकी अंतिम लडाईका नेतृत्व नियतीने नेताजीके हाथों सौंपा था । नेताजीने यह पवित्र कार्य असीम साहस एवं तन, मन, धन तथा प्राणका त्याग करनेमें तत्पर रहनेवाले हिंदी सैनिकोंकी #‘आजाद हिंद सेना’ संगठनद्वारा पूर्ण किया । इस संगठनका अल्पसा परिचय !
1. ब्रिटिश सेनाके हिंदी सैनिकोंका नेताजीने बनाया संगठन
अंग्रेजोंकी स्थानबद्धतासे भाग जानेपर नेताजीने फरवरी 1943 तक जर्मनीमें ही वास्तव्य किया । वे जर्मन सर्वसत्ताधीश #हिटलरसे अनेक बार मिले और उसे हिंदुस्थानकी स्वतंत्रताके लिए सहायताका आवाहन भी किया । दूसरे महायुद्धमें विजयकी ओर मार्गक्रमण करनेवाले हिटलरने नेताजीrको सर्व सहकार्य देना स्वीकार किया । उस अनुसार उन्होंने जर्मनीकी शरणमें आए अंग्रेजोंकी सेनाके #हिंदी सैनिकोंका प्रबोधन करके उनका #संगठन बनाया । नेताजी के वहांके भाषणोंसे हिंदी सैनिक देशप्रेममें भावविभोर होकर स्वतंत्रताके लिए प्रतिज्ञाबद्ध हो जाते थे ।
Know how to force the British into India by creating Azad Hind army in Japan? |
2. #आजाद हिंदी सेनाकी स्थापना और #‘चलो दिल्ली’का नारा
पूर्व एशियाई देशोंमें जर्मनीका मित्रराष्ट्र #जापानकी सेना #ब्रिटिश सेनाको धूल चटा रही थी । उनके पास भी शरण आए हुए, ब्रिटिश सैनाके हिंदी सैनिक थे । नेताजीके मार्गदर्शनानुसार वहां पहलेसे ही रहनेवाले #रासबिहारी बोसने हिंदी सेनाका संगठन किया । इस हिंदी सेनासे मिलने नेताजी 90 दिन पनडुब्बीसे यात्रा करते समय मृत्युसे जूझते जुलाई वर्ष 1943 में जापानकी राजधानी #टोकियो पहुंचे । #रासबिहारी बोसजीने इस सेनाका नेतृत्व नेताजीके हाथों सौंपकर दिया । 5 जुलाई 1943 को सिंगापुरमें नेताजीने ‘आजाद हिंद सेना’की स्थापना की । उस समय सहस्रों सैनिकोंके सामने ऐतिहासिक भाषण करते हुए वे बोले, ‘‘सैनिक मित्रों ! आपकी युद्धघोषणा एक ही रहे ! #चलो दिल्ली ! आपमें से कितने लोग इस स्वतंत्रतायुद्धमें जीवित रहेंगे, यह तो मैं नहीं जानता; परंतु मैं इतना अवश्य जानता हूं कि अंतिम विजय अपनी ही है। इसलिए उठो और अपने अपने शस्त्रास्त्र लेकर सुसज्ज हो जाओ । हमारे भारतमें आपसे पहले ही क्रांतिकारकोंने हमारे लिए मार्ग बना रखा है और वही मार्ग हमें दिल्लीतक ले जाएगा । ….चलो दिल्ली ।”
3. भारतके अस्थायी शासनकी प्रमुख सेना
सहस्रों सशस्त्र हिंदी सैनिकोंकी सेना सिद्ध होनेपर और पूर्व एशियाई देशोंकी लाखों हिंदी जनताका भारतीय स्वतंत्रताको समर्थन मिलनेपर नेताजीने #21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र हिंदुस्थानका दूसरा #अस्थायी शासन स्थापित किया । इस अस्थायी शासनको जापान, जर्मनी, चीन, इटली, ब्रह्मदेश आदि देशोंने उनकी मान्यता घोषित की । इस अस्थायी शासनका आजाद हिंद सेना, यह प्रमुख सेना बन गई ! #आजाद हिंद सेनामें सर्व जाति-जनजाति, अलग-अलग प्रांत, भाषाओंके सैनिक थे । सेनामें एकात्मताकी भावना थी । #‘कदम कदम बढाए जा’, इस गीतसे समरस होकर नेताजीने तथा उनकी सेनाने #आजाद हिंदुस्थानका स्वप्न साकारनेके लिए #विजय यात्रा आरंभ की ।
4. #‘रानी ऑफ झांसी रेजिमेंट’की स्थापना
नेताजीने झांसीकी रानी #रेजिमेंटके पदचिन्होंपर महिलाओंके लिए #‘रानी ऑफ झांसी रेजिमेंट’की स्थापना की । पुरुषोंके कंधेसे कंधा मिलाकर महिलाओंको भी सैनिक प्रशिक्षण लेना चाहिए, इस भूमिकापर वे दृढ रहे । नेताजी कहते, हिंदुस्थानमें #1857 के #स्वतंत्रतायुद्धमें लडनेवाली झांसीकी रानीका आदर्श सामने रखकर #महिलाओंको भी #स्वतंत्रतासंग्राममें अपना सक्रिय योगदान देना चाहिए ।’
5. आजाद हिंद सेनाद्वारा धक्का
आजाद हिंद सेनाका ब्रिटिश सत्ताके विरोधमें सैनिकी आक्रमण आरंभ होते ही जापानका सत्ताधीश #जनरल टोजोने इंग्लैंडसे जीते हुए #अंदमान एवं #निकोबार ये दो द्वीप आजाद हिंद सेनाके हाथों सौंप दिए । 29 दिसंबर 1943 को स्वतंत्र हिंदुस्थानके प्रमुख होनेके नाते नेताजी अंदमान गए और अपना #स्वतंत्र ध्वज वहां लहराकर सेल्युलर कारागृहमें दंड भोग चुके क्रांतिकारकोंको आदरांजली समर्पित की । जनवरी #1944 में नेताजीने अपनी सशस्त्र सेना ब्रह्मदेशमें स्थलांतरित की ।
19 मार्च 1944 के ऐतिहासिक दिन #आजाद हिंद सेनाने भारतकी भूमिपर कदम रखा । इंफाल, कोहिमा आदि स्थानोंपर इस सेनाने ब्रिटिश सेनापर विजय प्राप्त की । इस विजयनिमित्त 22 सितंबर 1944 को किए हुए भाषणमें नेताजीने गर्जना की कि, #‘‘अपनी मातृभूमि स्वतंत्रताकी मांग कर रही है ! इसलिए मैं आज आपसे आपका रक्त मांग रहा हूं । केवल रक्तसे ही हमें स्वतंत्रता मिलेगी । तुम मुझे अपना #रक्त दो । मैं तुमको #स्वतंत्रता दूंगा !” (‘‘दिल्लीके लाल किलेपर तिरंगा लहरानेके लिए तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा”) यह भाषण इतिहासमें अजरामर हुआ । उनके इन हृदय झकझोर देनेवाले उद्गारोंसे उपस्थित हिंदी युवाओंका मन रोमांचित हुआ और उन्होंने अपने रक्तसे प्रतिज्ञा लिखी ।
6. ‘चलो दिल्ली’का स्वप्न अधूरा; परंतु ब्रिटिशोंको झटका
मार्च 1945 से दोस्तराष्ट्रोंके सामने जापानकी पराजय होने लगी । #7 मई 1945 को जर्मनीने बिना किसी शर्तके #शरणागति स्वीकार ली, जापानने 15 अगस्तको शरणागतिकी अधिकृत घोषणा की । जापान-जर्मनीके इस अनपेक्षित पराजयसे नेताजीकी सर्व आकांक्षाएं धूमिल हो गइं । ऐसेमें अगले रणक्षेत्रकी ओर अर्थात् सयाम जाते समय 18 अगस्त #1945 को फार्मोसा द्वीपपर उनका #बॉम्बर विमान गिरकर उनका हदयद्रावक अंत हुआ । आजाद हिंद सेना दिल्लीतक नहीं पहुंच पाई; परंतु उस सेनाने जो प्रचंड आवाहन् बलाढ्य ब्रिटिश साम्राज्यके सामने खडा किया, इतिहासमें वैसा अन्य उदाहरण नहीं । इससे ब्रिटिश सत्ताको भयंकर झटका लगा । हिंदी सैनिकोंके विद्रोहसे आगे चलकर भारतकी सत्ता अपने अधिकारमें रखना बहुत ही कठिन होगा, इसकी आशंका अंग्रेजोंको आई । चतुर और धूर्त अंग्रेज शासनने भावी संकट ताड लिया । उन्होंने निर्णय लिया कि पराजित होकर जानेसे अच्छा है हम स्वयं ही देश छोडकर चले जाएं । तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्रीने अपनी स्वीकृति दे दी ।
7. ब्रिटिश भयभीत हो गए और नेहरू भी झुके
स्वतंत्रताके लिए सर्वस्व अर्पण करनेवाली नेताजीकी #आजाद हिंद सेनाको संपूर्ण भारतवासियोंका उत्स्फूर्त #समर्थन प्राप्त था । नेताजीने ब्रिटिश-भारतपर सशस्त्र आक्रमण करनेकी घोषणा की, तब पंडित नेहरूने उनका विरोध किया; परंतु नेताजीकी एकाएक मृत्युके उपरांत आजाद हिंद सेनाके सेनाधिकारियोंपर अभियोग चलते ही, संपूर्ण देशसे सेनाकी ओरसे लोकमत प्रकट हुआ । सेनाकी यह लोकप्रियता देखकर अंतमें नेहरूको झुकना पडा, इतना ही नहीं उन्होंने स्वयं सेनाके अधिकारियोंका अधिवक्तापत्र (वकीलपत्र) लिया । अंततः आरोप लगाए गए सेनाके 3 सेनाधिकारी सैनिक न्यायालयके सामने दोषी ठहराए गए; परंतु उनका दंड क्षमा कर दिया; क्योंकि अंग्रेज सत्ताधीशोंकी ध्यानमें आया कि, नेताजीके सहयोगियोंको दंड दिया, तो 90 वर्षोंमें लोकक्षोभ उफन कर आएगा । आजाद हिंद सेनाके सैनिकोंकी निस्वार्थ देशसेवासे ही स्वतंत्रताकी आकांक्षा कोट्यवधी देशवासियोंके मनमें निर्माण हुई ।
संदर्भ : ‘झुंज क्रांतीवीरांची : स्वातंत्र्यलढ्याचा सशस्त्र इतिहास’, लेखक : श्री. सुधाकर पाटील
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