11 June 2023
🚩जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में स्थित है अमरनाथ मंदिर, जो हिन्दुओं की श्रद्धा का एक बड़ा प्रतीक है। अमरनाथ शिवलिंग को ‘बाबा बर्फानी’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि भगवान शिव का रूप बर्फ से ही यहाँ प्रकट होता है। ये एक स्वयंभू शिवलिंग है, अर्थात स्वयं प्रकट होने वाला। लिद्दर घाटी में स्थित इस गुफा के बारे में मान्यता है कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का ज्ञान दिया था। भगवान अमरनाथ की पूजा हिन्दू धर्म में सदियों से होती आ रही है।
🚩लेकिन, कुछ लोगों ने हिन्दुओं के ऊपर इस्लाम के अहसान गिनने के लिए ये कहना शुरू कर दिया कि अमरनाथ शिवलिंग की खोज बूटा मलिक नाम के एक चरवाहे ने की, उससे पहले इसके बारे में किसी को पता नहीं था। ये सरासर झूठ है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में अमरनाथ धाम का जिक्र है। कहानी कुछ यूँ कही जाती है कि गड़रिया बूटा मलिक एक बार इधर अपनी भेड़ें चराते हुए फँस गया था, तभी उसकी मुलाकात एक साधु से हुई।
🚩साधु ने उसे कोयले से भरा एक थैला दिया, लेकिन जब घर जाकर उसने थैले को खोला तो उसमें से हीरे निकले। इस चमत्कार को देख कर वो वापस इस गुफा में आया। लेकिन, जिस साधु को धन्यवाद देने को आया था वो नदारद था और वहाँ उसे एक शिवलिंग दिखाई दिया। इस कहानी के सामने आने के बाद अमरनाथ गुफा में चढ़ने वाले चढ़ावे का एक अंश बूटा मलिक के परिवार को दिए जाने की परंपरा चल पड़ी। हालाँकि, इस कहानी का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है।
🚩लेकिन, कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने बार-बार इसे इस तरह से दिखाना शुरू कर दिया कि ये सेकुलरिज्म का बहुत बड़ा उदाहरण है और मुस्लिमों ने हिन्दुओं पर एहसान किया। ‘हमारे बूटा मलिक ने तुम्हारे अमरनाथ मंदिर को खोजा’ – उनका मुख्य उद्देश्य हिन्दुओं को ये एहसास दिलाने का रहता है। जुलाई 1898 में स्वामी विवेकानंद ने भी अमरनाथ की यात्रा की थी। उन्होंने बताया था कि कैसे विभिन्न वेशभूषा वाले देश भर के लोग इस यात्रा में शामिल रहते थे।
🚩आपको सबसे पहले तो ये जानना चाहिए कि कल्हण द्वारा रचित ‘राजतरंगिणी’, जिसमें जम्मू कश्मीर के राजाओं का हजारों वर्षों का इतिहास वर्णित है, उसमें भी अमरनाथ मंदिर के बारे में बताया गया है। ‘राजतरंगिणी’ 12वीं शताब्दी में लिखी गई थी। इसमें कहीं बूटा मलिक की कहानी का जिक्र नहीं मिलता। इस पुस्तक में राजाओं के बारे में क्रमवार विवरण दिया गया है। इस पुस्तक में अमरनाथ की पथयात्रा का भी जिक्र है, जिसका अर्थ है कि गुफा के लिए यात्रा की परंपरा अति प्राचीन है।
🚩इस क्रम में शेषनाग झील के बारे में भी ‘राजतरंगिणी’ में बताया गया है। कहा जाता है कि इस झील का सीधा कनेक्शन पाताल लोक से है। अगर आप कल्हण द्वारा रचित श्लोक को देखेंगे तो पता चलेगा कि अमरनाथ शिवलिंग को ‘अमरेश्वर’ भी कहा जाता था। कल्हण बताते हैं कि सुस्रवास नामक नाग ने दूर पर्वत के नीचे एक झील का निर्माण कराया, जिसका जल दूध के समान सफ़ेद था। उन्होंने जो श्लोक था, वो इस प्रकार है:
दुग्धाब्धि धवकं तेन सरो दूरगिरौ कृतम्।
अमरेश्वरयात्रायां जनैरद्यापि दृश्यते।।
कल्हण बताते हैं कि इस अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले लोग इस झील का भी दर्शन करते हैं। इतना ही नहीं, इस पुस्तक में कश्मीर में शिवत्व की महिमा के बारे में भी बताया गया है। आज भले ही जम्मू कश्मीर को लोग आतंकवादी घटनाओं और इस्लामी कट्टरवाद के कारण जानते हों, लेकिन पहले ये ब्राह्मणों की भूमि हुआ करती थी। कल्हण लिखते हैं – ‘कश्मीर पार्वती तत्र राजा ज्ञेयः शिवांशकः’, अर्थात कश्मीर माँ पार्वती का स्वरूप है और शिव का अंश इस स्थान के शासक हैं।
🚩इससे साफ़ है कि कश्मीर को भगवान शिव की भूमि के रूप में प्राचीन काल से जाना जाता था। ‘राजतरंगिणी’ में ही कश्मीर के एक अन्य शासक सामदीमत का भी जिक्र है, जिसके बारे में बताया गया है कि वो वन में जाकर बर्फ के शिवलिंग की पूजा करता था। वो शिवभक्त था। बर्फ का शिवलिंग भारत में कहीं अन्यत्र नहीं मिलता, अर्थात साफ़ है कि कश्मीर के राजाओं के लिए अमरनाथ भगवान का महत्व पहले से रहा है। वामपंथियों ने बड़ी चालाकी से ये कोशिश की है कि हमें हमारा इतिहास ही न याद रहे और हम खुद को मुस्लिमों का एहसानमंद मानते रहे।
🚩इतना ही नहीं, कई विदेशी घुमंतुओं ने भी अमरनाथ यात्रा का जिक्र किया है, जिनमें दो प्रमुख हैं – बैरन चार्ल्स हुगेल और गॉडफ्रे विग्ने। जम्मू कश्मीर में 14वीं शताब्दी में मुस्लिम शासन आया और इसी शताब्दी के अंत में जबरन धर्मांतरण का दौर भी शुरू हो गया। सिकंदर बुतशिकन ने उस समय कश्मीर में हिन्दू प्रतिमाओं की तोड़फोड़ शुरू कर दी। फ्रेंच डॉक्टर फ्रांसिस बेर्नियर औरंगजेब के साथ कश्मीर गया था और उस दौरान उसने एक सुंदर गुफा और वहाँ जमे बर्फ के बारे में बताया था, जो अमरनाथ का ही विवरण है।
🚩वहीं विग्ने ने अपनी पुस्तक ‘रवेल्स इन कश्मीर, लद्दाख एन्ड इस्कार्डू’ में लिखा है कि श्रावण महीने की 15वीं तारीख़ को अमरनाथ यात्रा शुरू होती है। उन्होंने लिखा है कि कई जाति-संप्रदायों के लोग इसमें शामिल रहते हैं। वो 1840-41 के समय अमरनाथ गए थे, लेकिन खराब मौसम के कारण वो नहीं जा पाए थे। इससे पता चलता है कि यात्रा वर्षों से अनवरत चली आ रही थी। ये भी जान लीजिए कि प्राचीन ग्रन्थ ‘नीलमत पुराण’ में बह अमरनाथ यात्रा का जिक्र मिलता है।
🚩‘नीलमत पुराण’ में जो इसका विवरण है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि छठी-सातवीं शताब्दी के लोगों को इसकी जानकारी थी। तब तक इस्लाम भारत में आया ही नहीं था। छठी शताब्दी के अंत में इस्लाम की स्थापना ही हुई थी, ऐसे में कोई बूटा मलिक इसके बहुत बाद में ही हुआ होगा। गुफा के बगल से सिंधु की एक सहायक नदी अमरगंगा भी गुजरती थी। शिव श्रद्धालु इसकी मिट्टी को अपने शरीर में लगाते थे। इसी तरह, बर्नियर ने भी इस यात्रा का जिक्र किया है।
🚩अमित कुछ सिंह अपनी पुस्तक ‘अमरनाथ यात्रा’ में लिखते हैं कि ‘बर्नियर ट्रेवल्स’ पुस्तक की पृष्ठ संख्या 418 में अमरनाथ यात्रा का जिक्र है। भारत के ऑक्सफ़ोर्ड इतिहास के लेखक विंसेट ए स्मिथ ने ‘बर्नियर ट्रेवल्स’ का संपादन किया है, जिसमें लिखा है कि अमरनाथ गुफा आश्चर्यजनक है जहाँ छत से बूँद-बूँद पानी गिरता है और जम कर बर्फ के खंड का आकर लेता है और हिन्दू इसकी पूजा करते हैं। इतना ही नहीं, डॉक्टर स्टेन ने आकर का जिक्र भी किया है।
🚩उन्होंने बताया है कि शिवलिंग की ऊँचाई 2 फ़ीट और चौड़ाई 7-8 फ़ीट की होती है। इतना ही नहीं, अकबर का इतिहासकार अबुल फजल भी ‘आईने अकबरी’ में अमरनाथ को एक पवित्र स्थल बताता है। उसने लिखा है कि 15 दिन तक बढ़ते रहने वाला ये शिवलिंग 2 गज का हो जाता है। सन् 1866 में प्रकाशित ‘द इंडियन इनसाइक्लोपीडिया’ में भी कश्मीरी राजाओं के अमरनाथ यात्रा का विवरण है। वामपंथी इतिहासकारों ने झूठ बोल कर अमरनाथ यात्रा के बूटा मलिक की खोज के बाद शुरू होने की धारणा फैलाई।
🚩अब अंत में इस ‘मलिक’ सरनेम के पीछे की सच्चाई भी जान लीजिए। हुगेल लिखते हैं कि मलिक परिवार को वहाँ अकबर ने नियुक्त किया था। इससे पता चलता है कि ये उस समय सरनेम की जगह अकबर द्वारा नवाजा गया टाइटल हुआ करता था। इसका मतलब है कि सीमा की रखवाली करने वालों को अमरनाथ की खोज करने वाला और गुफा का रक्षक बता दिया गया। वो अकबर के कहने पर इस्लामी साम्राज्य की सीमा की रक्षा करता था, न कि अमरनाथ गुफा की।
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