अपने बच्चों को कैसे महान बनाए यह राजमाता माता जीजाबाई सीखिए

12 June 2023

 

🚩जननी जने तो भक्त जने या दाता या शूर । नहीं तो जननी बांझ रहे, काहे व्यर्थ गंवाए नूर । अर्थात : हे जननी, या तो भक्त को जन्म दे या फिर दानवीर या शूरवीर संतान को जन्म दे ! माँ तेरी कोख से जन्म लेने वाले बच्चे को ऐसे संस्कारों से ओतप्रोत कर दे कि वह भक्त, दानी और शूरवीरता से कुल और देश का नाम रोशन कर दे ! माता जीजा बाई ने अपने बेटे वीर शिवाजी को जन्म से ही ऐसे संस्कार दिए जिससे वह हिन्दू साम्राज्य का सम्राट बना, माँ की मार्गदिशा में उन्होंने हिन्दू साम्राज्य स्थापित करने की शुरुआत छोटी उम्र में ही कर दी थी । आज उस पवित्र संकल्प वाली  वीरांगना राजमाता जीजा बाई का पुण्यतिथि है।

 

🚩भारत के गौरव क्षत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई का जन्म सन् 1597 ई. में सिन्दखेड़ के अधिपति जाघवराव के यहां हुआ । जीजाबाई बाल्यकाल से ही धार्मिक तथा साहसी स्वभाव की थी । सहिष्णुता का गुण तो उनमें कूट-कूटकर भरा हुआ था । इनका विवाह मालोजी के पुत्र शाहजी भोंसले से हुआ । प्रारंभ में इन दोनों परिवारों में मित्रता थी, किंतु बाद में यह मित्रता कटुता में बदल गई; क्योंकि जीजाबाई के पिता मुगलों के पक्षधर थे।

 

🚩एक बार जाधवराव मुगलों की ओर से लड़ते हुए शाहजी का पीछा कर रहे थे । उस समय जीजाबाई गर्भवती थी । शाहजी अपने एक मित्र की सहायता से जीजाबाई को शिवनेर के किले में सुरक्षित कर आगे बढ़ गये । जब जाधवराव शाहजी का पीछा करते हुए शिवनेर पहुंचे तो उन्हें देख जीजाबाई ने पिता से कहा- “मैं आपकी दुश्मन हूं, क्योंकि मेरा पति आपका शत्रु है । दामाद के बदले कन्या ही हाथ लगी है, जो कुछ करना चाहो, कर लो ।”

 

🚩इस पर पिता ने उसे अपने साथ मायके चलने को कहा, किंतु जीजाबाई का उत्तर था- “आर्य नारी का धर्म पति के आदेश का पालन करना है ।”

 

🚩10 अप्रैल सन् 1627 को इसी शिवनेर दुर्ग में जीजाबाई ने शिवाजी को जन्म दिया । पति की उपेक्षा के कारण जीजाबाई ने अनेक असहनीय कष्टों को सहते हुए बालक शिवा का लालन-पालन किया । उसके लिए क्षत्रिय वेशानुरूप शास्त्रीय-शिक्षा के साथ शस्त्र-शिक्षा की व्यवस्था की । उन्होंने शिवाजी की शिक्षा के लिए दादाजी कोंडदेव जैसे व्यक्ति को नियुक्त किया । स्वयं भी रामायण, महाभारत तथा वीर बहादुरों की गौरव गाथाएं सुनाकर शिवाजी के मन में हिन्दू-भावना के साथ वीर-भावना की प्रतिष्ठा की ।

 

🚩वह प्राय: कहा करती-

‘यदि तुम संसार में आदर्श बनकर रहना चाहते हो स्वराज की स्थापना करो । देश से यवनों और विधर्मियों को निकालकर भारत की रक्षा करो।’

 

🚩शाहजी ने दूसरा विवाह कर लिया था । कई वर्षों बाद शाहजी ने जीजाबाई को शिवाजी सहित बीजापुर बुलवा लिया था, किंतु उन्हें पति का सहज स्वाभाविक प्रेम कभी प्राप्त नहीं हुआ । जीजाबाई ने अपने मान,अपमान को भुलाकर सारा ध्यान अपने पुत्र शिवाजी पर केन्द्रित कर दिया । शाह जी की मृत्यु पर पति-परायणा जीजाबाई सती होना चाहती थी, किंतु शिवाजी के यह कहने पर कि “माता! तुम्हारे पवित्र आदर्शों और प्रेरणा के बिना स्वराज्य की स्थापना संभव नहीं होगी । धर्म पर विधर्मियों का दबाव बढ़ जायेगा ।” माता ने पुत्र की भावना तथा भविष्य के प्रति जागरूक दृष्टि का परिचय देते हुए सती होने का विचार त्याग दिया ।

 

🚩औरंगजेब ने जब धोखे से शिवाजी को उनके पुत्र सहित बंदी बना लिया था, तब शिवाजी ने भी कूटनीति से मुक्ति पाई और वे जब संन्यासी के वेश में अपनी मां के सामने भिक्षा लेने पहुंचे तो मां ने उन्हें पहचान लिया और प्रसन्नचित होकर कहा- ‘अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरा पुत्र स्वराज्य की स्थापना अवश्य करेगा । पद-पादशाही आने में अब कुछ भी विलंब नहीं है।’

 

🚩अंत में जीजाबाई की साधना सफल हुई । शिवाजी ने महाराष्ट्र के साथ भारत के एक बड़े भाग पर स्वराज्य की स्वतंत्र पताका फहराई, जिसे देखकर जीजाबाई ने शांतिपूर्वक परलोक प्रस्थान किया ।

वस्तुत: जीजाबाई स्वराज्य की ही देवी थीं ।

 

🚩बालक के निर्माण में माता-पिता दोनों का ही महत्त्व है परन्तु माता का महत्त्व पिता से बहुत अधिक है। माता के जैसे विचार होते हैं बालक पर निश्चित रुप से वैसा ही प्रभाव पड़ता है।

 

🚩आज माता और पिता दोनों ही गर्भ में बच्चे का निर्माण करनेवाली बात को भूल गये हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने बालकों के निर्माण के लिए सोलह संस्कारों का विधान किया था। इनमें से तीन तो बालक के उत्पन्न होने से पूर्व ही हो जाते थे। आज संस्कार समाप्त हो गये। विवाह का उद्देश्य कीड़े-मकोड़े उत्पन्न करना नहीं है। वैदिक धर्म में विवाह विलास के लिए भी नहीं होता था। परन्तु आज विवाह विलास और केवल विलास की वस्तु बन गई है। विवाह को उद्दाम भोग का ‘पासपोर्ट’ और नारी को बच्चा उत्पन्न करनेवाली मशीन समझ लिया गया है। इसका परिणाम आज खेल-खेल में बच्चे उत्पन्न हो रहे हैं। आज केबच्चे बिना बुलाये अतिथि (Uninvited guests) हैं। जब आदर्श सन्तान को बुलाने के लिए कोई तैयारी नहीं, कोई संकल्प नहीं कि कैसी सन्तान उत्पन्न करनी है तब श्रेष्ठ सन्तान उत्पन्न कैसे हो सकती है? सन्तान का निर्माण माता-पिता के हाथ में है।

 

🚩निष्कर्ष यह है कि सन्तान को श्रेष्ठ बनाने के लिए गर्भाधान से पूर्व ही बहुत सावधानी और ध्यान देने की आवश्यकता है अन्यथा सन्तान सुसन्तान नहीं बन सकेगी।

 

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