महाभारत के समय के लाक्षागृह पर भी वक्कबोर्ड ने जमाया है कब्जा

10  February 2024

 

दुर्योधन ने जहाँ पर पांडवों के लिए लाक्षागृह बनवाया था, उस जगह का नाम वर्णाव्रत है। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में कृष्णी और हिंडोन नदी के संगम पर बरनावा नाम के गाँव में एक टीला और करीब 100 बीघे की जमीनें हैं, जिनके बारे में ये माना जाता है कि यही वर्णाव्रत था, जहाँ कभी महाभारत काल में यह घटना हुई थी ।

 

इस इलाके पर भी मुस्लिम समुदाय अपना दावा ठोक रहा है । जैसा कि आमतौर पर देश में होता आया है, ठीक वैसे ही यहाँ उन्होंने एक सूफी फ़कीर बदरुद्दीन शाह की मजार घोषित कर दी थी।

 

पहले ये इलाका कभी मेरठ नाम से जाना जाता था और यहाँ का 1920 का Archeological Survey Of India का एक सर्वेक्षण भी उपलब्ध है। फ़िलहाल ये एएसआई द्वारा संरक्षित क्षेत्रों में से है, तो जाहिर है कि हिन्दुओं के महत्व या भारतीय पुरातात्विक महत्व की चीजों की उन्होंने दुर्दशा कर रखी होगी।

अब कोई हुमायूँ का मकबरा तो ये है नहीं न कि एएसआई उसके रख-रखाव और सौन्दर्यीकरण पर लाखों-करोड़ों खर्च दे ! सेक्युलरिज्म नाम की भी कोई चीज होती है भाई !!

 

तो हुआ यूँ कि 1970 में यहाँ की तथाकथित कब्रिस्तान के रखवाले (मुतवल्ली) मुकीम खान ने मुकदमा किया कि ये वक्फ बोर्ड की जमीन है और हिन्दू पक्ष इसपर कब्जा कर रहा है। हिन्दुओं के पक्ष से कृष्णदत्त महाराज ने मुकदमा दर्ज किया और अपना पक्ष रखा।

अब पूरे 54 वर्ष के बाद बागपत के सिविल कोर्ट (जूनियर डिवीज़न) ने ये फैसला दिया है कि जमीन हिन्दुओं की ही है। जाहिर है अभी मामला ऊपर की अदालतों में भी 50-55 साल के लिए जाएगा ही।

 

इस्लामिस्ट जो दावा कर रहे थे कि ये कब्रिस्तान है और वक्फ की संपत्ति है, उसका कोई प्रमाण ही नहीं है। छह 600 साल पहले ये जमीन किसी शाह की रही हो, इसका कोई प्रमाण नहीं मिला आज तक… क्योंकि उस काल में ये इलाका किसके शासन में था, ये तक मुस्लिम पक्ष के दावेदारों को पता नहीं है।

 

दिसम्बर 12, 1920 का जो सरकारी गैजेट है, उसमें भी किसी कब्रिस्तान के यहाँ होने का कोई उल्लेख नहीं है। गौर करने लायक ये भी है कि बागपत में ही वो सिनौली का क्षेत्र भी आता है जहाँ 2005 में हड़प्पा काल के अवशेष मिले थे। यहाँ एक परत के नीचे इतिहास की दूसरी परत मिलती है। इन क्षेत्रों से 2018 में जो बर्तनों के अवशेष मिले, वो सिनौली की खोज करने वाले प्रो. केके शर्मा के मुताबिक बिलकुल वैसे ही हैं जैसे मथुरा , मेरठ और या हस्तिनापुर कहलाने वाले क्षेत्रों में मिल चुके हैं।

ये सभी वो क्षेत्र हैं जिनका वर्णन करीब-करीब इन्हीं नामों से महाभारत में भी मिल जाता है।

 

दिल्ली का एक बड़ा इलाका कथित रूप से वक्फ संपत्ति बताया जाता है। अम्बानी के मकान तक पर वक्फ अपनी संपत्ति होने का दावा ठोकता है। भारत छोड़कर जो लोग पाकिस्तान चले गए थे, उनकी जमीनों को वक्फ अपनी संपत्ति बताकर उसपर कब्जा जमाने की कोशिश में एक लम्बे समय से है।

 

मौजूदा कानून (जो कि कांग्रेसी कारकूनों ने गढ़े थे) वक्फ को ऐसे अधिकार देता है कि वो भारत में किसी भी जमीन को अपनी संपत्ति घोषित कर ले और फिर जमीन के असली मालिकों को अपील भी उसी के पास करनी पड़े…!

पचास-पचास साल चलने वाले फौजदारी के मुकदमों में वक्फ का एक बड़ा योगदान होगा लेकिन चूँकि मीडिया और सरकारें हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक मानती हैं, इसलिए इस बात पर कोई शोध नहीं होता कि इस तरह बेईमानी से वक्फ के नाम पर कितनी संपत्ति भारत भर में हथिया रखी गयी है।

 

भारत को अपने कानूनों पर पुनः विचार करना होगा। जब हिन्दुओं के ऐतिहासिक स्थलों और मंदिरों की संपत्ति का अल्पसंख्यक समुदाय के हितों में भरपूर उपयोग होता है। यहाँ तक कि वक्फ बोर्ड उसपर मनमाने ढ़ंग से कब्ज़े कर लेता है , तो हिन्दुओं को सेकंड रेट सिटीजन मानना तो बंद करना ही होगा !!

 

स्त्रोत : आर्य समाज पेज

 

Follow on

 

Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/

 

Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg

 

Twitter:

twitter.com/AzaadBharatOrg

 

Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan

 

http://youtube.com/AzaadBharatOrg

 

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Translate »