20 February 2024
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में इन तीन बातों की अत्यधिक आवश्यकता होती है – स्वस्थ जीवन, सुखी जीवन तथा सम्मानित जीवन। सुख का आधार स्वास्थ्य है तथा सुखी जीवन ही सम्मान के योग्य है।
उत्तम स्वास्थ्य का आधार है यथा योग्य आहार-विहार एवं विवेकपूर्वक व्यवस्थित जीवन। बाह्य चकाचौंध की ओर अधिक आकर्षित होकर हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं इसलिए हमारा शरीर रोगों का घर बनता जा रहा है।
‘चरक संहिता’ में कहा गया हैः
आहाराचारचेष्टासु सुखार्थी प्रेत्य चेह च।
परं प्रयत्नमातिष्ठेद् बुद्धिमान हित सेवने।।
‘इस संसार में सुखी जीवन की इच्छा रखने वाले बुद्धिमान व्यक्ति आहार-विहार, आचार और चेष्टाएँ हितकारक रखने का प्रयत्न करें।’
वसंत ऋतु में क्या करें?
वसंत ऋतु 19 फरवरी 19 अप्रैल तक है वसंत ऋतु में कफ को कुपित करने वाले पौष्टिक और गरिष्ठ पदार्थों की मात्रा धीरे-धीरे कम करते हुए गर्मी बढ़ते हुए ही बन्द कर के सादा सुपाच्य आहार लेना शुरु कर देना चाहिए। चरक के सादा सुपाच्य आहार लेना शुरु कर देना चाहिये। चरक के अनुसार इस ऋतु में भारी, चिकनाईवाले, खट्टे और मीठे पदार्थों का सेवन व दिन में सोना वर्जित है। इस ऋतु में कटु, तिक्त, कषारस-प्रधान द्रव्यों का सेवन करना हितकारी है।
वसंत ऋतु में 15-20 नीम की नई कोंपलें चबा-चबाकर खायें। इस प्रयोग से वर्षभर चर्मरोग, रक्तविकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शक्ति पैदा होती है।
यदि वसन्त ऋतु में आहार-विहार के उचित पालन पर पूरा ध्यान दिया जाय और बदपरहेजी न की जाये तो वर्त्तमान काल में स्वास्थ्य की रक्षा होती है। साथ ही ग्रीष्म व वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य की रक्षा करने की सुविधा हो जाती है। प्रत्येक ऋतु में स्वास्थ्य की दृष्टि से यदि आहार का महत्व है तो विहार भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
इस ऋतु में उबटन लगाना, तेलमालिश, धूप का सेवन, हल्के गर्म पानी से स्नान, योगासन व हल्का व्यायाम करना चाहिए। देर रात तक जागने और सुबह देर तक सोने से मल सूखता है, आँख व चेहरे की कान्ति क्षीण होती है अतः इस ऋतु में देर रात तक जागना, सुबह देर तक सोना स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद है। हरड़े के चूर्ण का नियमित सेवन करने वाले इस ऋतु में थोड़े से शहद में यह चूर्ण मिलाकर चाटें।
इस ऋतु में कड़वे नीम के फूलों का रस 7 से 15 दिन तक पीने से त्वचा के रोग एवं मलेरिया जैसे ज्वर से भी बचाव होता है।
धार्मिक ग्रंथों के वर्णनानुसार चैत्र मास के दौरान ‘अलौने व्रत’ (बिना नमक के व्रत) करने से रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है एवं त्वचा के रोग, हृदय के रोग, उच्च रक्तचाप (हाई बी.पी.), गुर्दा (किडनी) आदि के रोग नहीं होते। स्त्रोत : आरोग्य निधि साहित्य
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