अब शिक्षा व्यवसाय बन गई है ???

30 Apirl 2023

 

🚩शिक्षा का अधिकार अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाता है। अब शिक्षा व्यवसाय बन गई है। अपने बच्चों के लिए अच्छी नौकरी पाने के बहाने मध्य वर्ग के पास भारी शुल्क और विशेष दुकानों से महंगी किताबें देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि सरकारी स्कूलों में कर्मचारियों और बुनियादी सुविधाओं की कमी है। शिक्षा को आम आदमी तक पहुंचाने के लिए मन मर्जी से फीस और खर्च में बढ़ोतरी पर रोक लगाने के लिए अध्यादेश पारित किया जाना चाहिए। इससे स्कूलों द्वारा मांगे जाने वाले मन माने खर्चों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी और एनसीईआरटी (NCERT) को अनिवार्य किया जाना चाहिए।

 

🚩अधिकारियों को अत्यधिक फीस वसूलने वाले और विशेष दुकानों से किताबें खरीदने के लिए मजबूर करने वाले स्कूलों के खिलाफ शिकंजा कसना चाहिए। किफायती और एक समान शुल्क संरचना होनी चाहिए।

🚩केवी में पांचवीं की पुस्तकों का सेट 600 रुपए का तो निजी स्कूल में 3000  का ।

 

🚩नवीन शिक्षा सत्र शुरू होते ही (CBSE) सीबीएसई स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं का अभिभावकों को लूटने का खेल शुरू हो गया है। पहले यह खेल स्कूलों से ही होता था, लेकिन अब स्कूल संचालकों ने अपनी दुकानें तय कर दी है। शासन के आदेश स्कूलों में (NCERT) एनसीइआरटी की पुस्तकें चलाने के बावजूद निजी प्रकाशकों की महंगे दामों की पुस्तकें अपने कोर्स में शामिल की गई है। इन पुस्तकों की कीमत अभिभावकों को चुकाना पड़ रही है।हालत यह है कि केंद्रीय विद्यालय में जहां पांचवी की पुस्तकों का पूरा सेट 600 रुपए में मिलता हैं तो वहीं सीबीएसई (CBSE) स्कूलों में यह पूरा सेट 3000 के लगभग पहुंच रहा हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि किस तरह से अभिभावकों की जेब हल्की हो रही है। पुस्तक विक्रेता इन पुस्तकों के साथ साल भर की कापियां और स्टेशनरी आदि थमा रहे हैं। कोई अभिभावक अकेले पुस्तक खरीदना चाहे तो उसके लिए मुश्किल होगा।

 

🚩 दुकानदार अकेले पुस्तक नहीं देते हैं। वहीं जिम्मेदार अधिकारी इन स्कूल संचालकों और पुस्तक विक्रेताओं पर लगाम कसने पर नाकाम नजर आ रहे हैं।

 

🚩हर साल बदल जाती है किताबें

निजी स्कूलों में हर साल किताबें बदल दी जाती है। किताबों में बदलाव सिर्फ चैप्टर भर में किया जाता है। 1- 2 चैप्टर पुस्तक में घटा या बड़ा दिए जाते हैं। पुस्तक पर नया कवर कर उसे पुन: बाजार में उतार दिया जाता है। इस स्थिति के चलते पुरानी पुस्तकों का उपयोग अन्य विद्यार्थी नहीं कर पाते हैं। इससे अभिभावकों पर भी आर्थिक बोझ बढ़ता है। जबकि एनसीइआरटी (NCERT) के पुस्तकों के साथ ऐसा नहीं होता है। इन पुस्तकों का आने वाले 3-4 सालों तक विद्यार्थी उपयोग कर सकते हैं। वहीं स्कूलों से बच्चों पर पुस्तकें खरीदने के लिए दबाव बनाया जाता हैं। मजबूरी में अभिभावक पुस्तक खरीदते हैं।

 

🚩NCERT (एनसीइआरटी) की पुस्तकें पढऩे के निर्देश

केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में प्रदेश के सभी निजी स्कूलों को एनसीइआरटी से संबंद्ध पाठ्यक्रमों की पुस्तकों से अध्ययन कराए जाने के निर्देश जारी किए थे, लेकिन इसका परिपालन कोई भी निजी स्कूल नहीं कर रहा है। निजी प्रकाशकों से कमीशन की सांठगाठ के चलते ज्यादातर प्रायवेट स्कूल निजी प्रकाशकों की पुस्तकें ही संचालित कर रहे हैं। जिसके कारण निजी प्रकाशकों और स्कूलों को मोटा मुनाफा मिल रहा है। यहां तक की कान्वेंट जैसे स्कूलों में भी निजी प्रकाशकों की पुस्तकें चलाई जा रही है।

 

🚩पुस्तकों के साथ स्टेशनरी भी थमा रहे

पुस्तक विक्रेता अभिभावकों को पुस्तकों के साथ कॉपियां और स्टेशनरी भी थमा देते हैं। जिसके कारण कॉपियों और स्टेशनरी का खर्चा पुस्तकों के साथ अलग से जुड़ जाता है। यदि स्टेशनरी या काफियां लेने से अभिभावक इनकार करते हैं तो पुस्तकें नहीं दी जाती है। बताया गया कि पुस्तकों के सेट छात्रों की दर्ज संख्या के आधार पर स्कूलों से ही बनते हैं। चूंकि स्कूलों में पुस्तक -कापियां बेचने पर प्रतिबंध हैं इसलिए दुकानदारों के माध्यम से पुस्तकें कमिशन के आधार पर बेची जाती है। इसमें दुकानदार अपनी तरफ से कॉपियां और स्टेशनरी की सामग्री भी अलग से जोड़कर बेच देते हैं।

 

🚩पुस्तकों की कीमतों में जमीन आसमान का अंतर

एनसीइआरटी और निजी प्रकाशको के पुस्तकों की कीमतों में जमीन आसमान का अंतर देखा जा सकता है। निजी स्कूलों में जहां कक्षा पहली की पुस्तकों की कीमत 1800 से 2100 रुपए तक में आ रही हैं। वहीं केंद्रीय विद्यालय में कक्षा पहली की पुस्तकें महज 500 रुपए में आती है।ऐसे में पुस्तकों की कीमत को लेकर यह अंतर ही अभिभावकों की जेबे हल्की कर रहा है। अभिभावकों का कहना था कि जब स्कूलों में एनसीइआरटी की पुस्तकें संचालित करने के निर्देश हैं तो फिर वे निजी प्रकाशकों की इतनी महंगी पुस्तकें क्यों खरीदवा

रहे हैं जिसका एक साल बाद कोई और बच्चा उपयोग ही नहीं कर पाए। पुस्तकें एक साल बाद किलो के रेट में रद्दी में बिक जाएंगी।

 

🚩पुस्तकों को लेकर सीबीएसई की क्या गाइड लाइन हैं इसे निकालकर नियमानुसार ही पुस्तकों की बिक्री कराई जाएगी। यदि कोई नियम का पालन नहीं कर रहा हैं तो कार्रवाई की जाएगी-डॉ अनिल कुशवाह, जिला शिक्षा अधिकारी

 

🚩सरकार को सस्ती शिक्षा देनी चाहिए

 

🚩सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य की जानी चाहिए। ये किताबें सस्ती हैं और खुले बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं। अगर सरकार ने सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य कर दी हैं, तो इससे भ्रष्टाचार को कम करने में मदद मिलती है। सरकार का प्राथमिक उद्देश्य निजी और सरकारी स्कूलों में सभी के लिए सस्ती शिक्षा होना चाहिए। हर स्कूल में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य कर यह समान नागरिक संहिता की दिशा में उचित कदम है।

 

🔺 Follow on

 

🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/

 

🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg

 

🔺 Twitter:

twitter.com/AzaadBharatOrg

 

🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan

 

🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg

 

🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Translate »