1 February 2024
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि भारत कोई पश्चिमी देश नहीं है जहाँ लिव इन रिलेशनशिप सामान्य बात हो। हाईकोर्ट ने कहा कि भारत में लोगों को अपनी संस्कृति और परंपराओं को मानना चाहिए और इस पर गर्व करना चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई करते हुई की।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने एक व्यक्ति आशीष कुमार ने याचिका डाली थी कि एक महिला, जिससे उसका 2011 से प्रेम सम्बन्ध है, उसका परिवार उसे उससे मिलने नहीं दे रहा है। उसने इस संबंध ने याचिकाकर्ता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका डाली थी। उसका कहना था कि महिला को उसके परिवार वालों ने जबरन कैद कर रखा है।
इस मामले की सुनवाई कर रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शमीम अहमद ने कहा, “अदालत का मानना है कि हम एक पश्चिमी देश नहीं हैं जहाँ एक लड़की-लड़के का लिव इन रिलेशनशिप में रहना सामान्य बात हो। हम एक ऐसे देश हैं जहाँ लोग अपनी परंपराओं और संस्कृति में विश्वास करते हैं और उस पर गर्वित हैं, ऐसे में हमें भी यही करना चाहिए।”
आशीष कुमार ने कोर्ट के समक्ष याचिका के साथ एक पत्र भी रखा था जो कि उसने दावा किया था कि लड़की ने लिखा है। याचिकाकर्ता आशीष कुमार ने कोर्ट के सामने कुछ तस्वीरें भी रखी थीं और बताया था कि वह इस लड़की के 2011 से प्रेम संबंध में हैं। हालाँकि, कोर्ट ने कहा कि यह याचिका मात्र लड़की और उसके परिवार की छवि खराब करने के उद्देश्य से डाली गई है और इससे याचिकाकर्ता उन पर दबाव डाल कर अपने मन का निर्णय करवाना चाहता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, “अदालत के सामने कोई कारण नहीं है कि वह इस तरह की याचिका की सुनवाई करे जो कि किसी लड़की और उसके परिवार वालों की छवि खराब करने के उद्देश्य से डाली गई है। अदालत अगर ऐसी याचिका को सुनता है तो इससे लड़की और उसके परिवार की छवि धूमिल होगी और उन्हें भविष्य में उसके लिए दूल्हा ढूँढने में समस्या होगी।”
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि यदि वह और लड़की जिसके विषय में याचिका डाली गई है, वह 13 साल से एक दूसरे के साथ प्रेम सम्बन्ध में हैं तो विवाह क्यों नहीं किया। कोर्ट ने इसी के साथ ही याचिका को खारिज कर दी और याचिकाकर्ता पर ₹25,000 का जुर्माना भी लगाया।
समाज को अस्थिर करने की योजना
इससे पहले इलहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा था कि, “ऊपरी तौर पर, लिव-इन का रिश्ता बहुत आकर्षक लगता है और युवाओं को लुभाता है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है और मध्यमवर्गीय सामाजिक नैतिकता/मानदंड उनके चेहरे पर नजर आने लगते हैं, ऐसे जोड़े को धीरे-धीरे एहसास होता है कि उनके रिश्ते को कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा, “लिव-इन रिलेशनशिप को इस देश में विवाह की संस्था के फेल होने के बाद ही सामान्य माना जाएगा, जैसा कि कई तथाकथित विकसित देशों में होता है जहाँ विवाह की संस्था की रक्षा करना उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। अगर हम ऐसा करें तो , हम भविष्य में अपने लिए बड़ी समस्या खड़ी करने की ओर अग्रसर हैं। इस देश में विवाह की संस्था को नष्ट करने और समाज को अस्थिर करने और हमारे देश की प्रगति में बाधा डालने की योजनाबद्ध कु नीति ( षड्यंत्र ) बनाई गई है।”
टीवी धारावाहिक विवाह संस्था को पहुँचा रहे नुकसान
जज सिद्धार्थ ने यह भी कहा, “आजकल की फिल्में और टीवी धारावाहिक , विवाह की संस्था को खत्म करने में योगदान दे रहे हैं। शादीशुदा रिश्ते में पार्टनर से बेवफाई और उन्मुक्त लिव-इन रिलेशनशिप को प्रगतिशील समाज की निशानी के तौर पर दिखाया जा रहा है। युवा ऐसे दर्शन की ओर आकर्षित हो जाते हैं , लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणामों से अनजान होते हैं।”
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