मकर संक्रांति के बारे में इतना जान लिया तो जीवन चमक उठेगा…

14 January 2024

 

हिन्दू संस्कृति अति प्राचीन संस्कृति है। इसमें मानव जीवन पर ग्रह, नक्षत्रों की दशा , दिशा व चाल से पड़ने वाले प्रभावों के अनुसार ही वार, तिथि, त्योहार ,पर्व आदि बनाये गये हैं । उसमें से एक है मकर संक्रांति..!!! इस साल 15 जनवरी 2024 सोमवार को मकर संक्रांति मनाई जायेगी ।

 

सनातन हिंदू धर्म ने माह को दो भागों में बाँटा है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष । इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है। पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है ।

 

मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव का रथ पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर बढ़ता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं ।

 

इसी दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है । कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है ।

 

सूर्य पर आधारित हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत अधिक महत्व माना गया है । वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है । होली,रक्षाबंधन, जन्माष्टमी,नवरात्रि, दीपावली, शिवरात्रि और अन्य कई त्योहार जहाँ विशेष कथा पर आधारित हैं, वहीं मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है । मकर संक्रांति का महत्व हिंदू धर्मावलंबियों के लिए वैसा ही है जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय ।

 

सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश की समयावधि को मकर संक्रांति कहा जाता है । यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसे समूचे भारत में सभी राज्यों में मनाया जाता है। चाहें इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हो, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है ।

 

विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है:

 

मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश : मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है । सूर्य की पूजा की जाती है । चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है ।

 

गुजरात और राजस्थान : उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का विशेष आयोजन किया जाता है ।

 

आंध्रप्रदेश : संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है ।

 

तमिलनाडु : किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है । घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है।

 

महाराष्ट्र : लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं।

 

पश्चिम बंगाल : हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है।

 

असम : भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है ।

 

पंजाब : एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है । धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है ।

 

इसी दिन से हमारी धरती एक नए वर्ष में और सूर्य एक नई गति में प्रवेश करता है। वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि 21 मार्च को धरती सूर्य का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है तो इसे माने तो नववर्ष तभी मनाया जाना चाहिए। इसी 21 मार्च के आसपास ही विक्रम संवत का नववर्ष शुरू होता है और गुड़ी पड़वा मनाया जाता है, किंतु 14/15 जनवरी ऐसा दिन है, जबकि धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों को ठीक नहीं माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।

 

महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। उत्तरायण में देह छोड़ने वाली पुण्यात्माएँ या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म लेकर अपना ईश्वर प्राप्ति का संकल्प पूर्ण करती हैं।

 

दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है । यह सब कुछ प्रकृति के नियम और उस जीव के कर्मों के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है ।

 

क्या करें मकर संक्रांति पर्व पर ?

 

मकर संक्रांति या उत्तरायण दान-पुण्य का पर्व है । इस दिन किया गया दान-पुण्य, जप-तप अनंतगुना फल देता है । इस दिन गरीब को अन्नदान, जैसे तिल व गुड़ का दान देना चाहिए। इसमें तिल या तिल के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थों को दान देना चाहिए । कई लोग रुपया-पैसा भी दान करते हैं।

 

मकर संक्रांति के दिन को बहुत शुभ माना जाता है,ये खरीदारी के लिए भी बेहद शुभ दिन ।

 

उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के इन नामों का जप विशेष हितकारी है ।

 

ॐ मित्राय नमः । ॐ रवये नमः ।

ॐ सूर्याय नमः । ॐ भानवे नमः ।

ॐ खगाय नमः । ॐ पूष्णे नमः ।

ॐ हिरण्यगर्भाय नमः । ॐ मरीचये नमः ।

ॐ आदित्याय नमः । ॐ सवित्रे नमः ।

ॐ अर्काय नमः । ॐ भास्कराय नमः ।

ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः ।

 

ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:। इस मंत्र से सूर्यनारायण की वंदना करनी चाहिए। उनका चिंतन करके प्रणाम करना चाहिए। इससे सूर्यनारायण प्रसन्न होंगे, निरोगता देंगे और अनिष्ट से भी रक्षा करेंगे।

 

यदि इस दिन नदी तट पर जाना संभव नहीं है, तो अपने घर के स्नानघर में पूर्वाभिमुख होकर जल पात्र में तिल मिश्रित कर के स्नान करें । साथ ही समस्त पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना,सरस्वती, नर्मदा,कावेरी, गोदावरी आदि नदियों का एवं तीर्थ का स्मरण करते हुए ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र और भगवान भास्कर का ध्यान करें । साथ ही इस जन्म व पूर्व जन्म के ज्ञात-अज्ञात मन, वचन, शब्द, काया आदि से उत्पन्न दोषों की निवृत्ति हेतु क्षमा याचना करते हुए सत्य धर्म के लिए निष्ठावान होकर सकारात्मक कर्म करने का संकल्प लें । जो संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता…. वह 7 जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है ।

 

तिल का महत्व :-

 

विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख है कि मकर संक्रांति के दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग करने पर जातक के जीवन में सुख व समृद्धि आती है ।

 

तिल के तेल से स्नान करना ।

तिल का उबटन लगाना ।

पितरों को तिलयुक्त जल अर्पण करना।

तिल की आहुति देना ।

तिल का दान करना ।

तिल का सेवन करना।

 

ब्रह्मचर्य बढ़ाने के लिए :-

 

ब्रह्मचर्य रखना हो, संयमी जीवन जीना हो, वे उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण का सुमिरन करे एवं संकल्प लेवे,जिससे ओज, तेज,बुद्धि बल बढ़े ।

ॐ सूर्याय नमः… ॐ शंकराय नमः…

ॐ गं गणपतये नमः… ॐ हनुमते नमः…

ॐ भीष्माय नमः… ॐ अर्यमायै नमः…

ॐ… ॐ… ॐ…

 

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