नवजात शिशु का ऐसे करें स्वागत

नवजात शिशु का ऐसे करें स्वागत

22 मई 2022

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🚩भारत के आयुर्वेद शास्त्रों में बताई गई शिशु प्रसव की सम्पूर्ण विधि जिसे लोग लगभग भूल चुके थे और सिजेरियन की और भाग रहे थे उसी विधि कि जानकारी पिछले 57 वर्षों से संत आशारामजी बापू अपने सत्संग प्रवचनों के माध्यम से लोगों को बताते आये है।

🚩संत श्री आशारामजी बापू की प्रेरणा से महिला उत्थान मंडल द्वारा देश भर दिव्य शिशु संस्कार अभियान चलाए जाते है।

🚩आज फ्रांस के वैज्ञानिक ने उसी विधि से प्रसव कराया और स्वाभाविक जन्म देने की इस प्रक्रिया से बच्चे की जिंदगी दिव्य प्रभावशाली हुई।

🚩फ्रांस के मनोवैज्ञानिक द्वारा बच्चे के जन्म के लिए स्वभाविक प्रक्रिया

🚩फ्रांस का एक मनोवैज्ञानिक मां के पेट से जब बच्चा पैदा होता है तो उसको कुनकुने गरम पानी के टब में रखता है–आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि बच्चा इतना प्रफुल्लित होता है कि जिसका कोई हिसाब नहीं।

🚩उसने ऐसे बच्चे का जन्म करवाया हैं, कि जो पैदा होने पर रोता नहीं हंसता हैं। हजारों बच्चे पैदा करवाए हैं उसने। वह दाई का काम करता है। उसने भारतीयों की पद्धति को अपनाया ।

🚩पहला काम कि बच्चे को पैदा होते से ही वह यह करता है कि उसे मां के पेट पर लिटा देता है, उसकी नाल नहीं काटता। साधारणतः पहला काम हम करते हैं कि बच्चे की नाल काटते हैं। वह पहले नाल नहीं काटता, वह पहने बच्चे को मां के पेट पर सुला देता है। क्योंकि वह पेट से ही अभी आया है, इतने जल्दी अभी मत तोड़ो। बाहर से भी मां के पेट पर लिटा देता है और बच्चा रोता नहीं। मां के पेट से उसका ऐसा अंतरंग संबंध है; अभी भीतर से था, अब बाहर से हुआ, मगर अभी मां से जुड़ा है। और नाल एकदम से नहीं काटता। जब तक बच्चा सांस लेना शुरू नहीं कर देता, तब तक वह नाल नहीं काटता।

🚩हमारी अब तक की आदत और व्यवस्था यह रही है कि तत्क्षण नाल काटो, फिर बच्चे को सांस लेनी पड़ती है। सांस उसे इतनी घबराहट में लेनी पड़ती है, क्योंकि नाल से जब तक जुड़ा है, तब तक मां की सांस से जुड़ा है, उसे अलग से सांस लेने की जरूरत भी नहीं है और उसके पूरे नासापुट और नासापुट से फेफड़ों तक जुड़ी हुई नालियां सब कफ से भरी होती हैं, क्योंकि उसने सांस तो ली नहीं कभी! तो एकदम से उसकी नाल काट देना, उसे डरा देना है। कुछ क्षण के लिए उसको इतनी बेचैनी में छोड़ देना है। उस बेचैनी में बच्चे रोते हैं, चिल्लाते हैं, चीखते हैं और हम सोचते हैं वे इसलिए चीख रहे हैं, चिल्ला रहे हैं कि यह सांस लेने की प्रक्रिया है, नहीं तो वे सांस कैसे लेंगे? और अगर नहीं चिल्लाता बच्चा, तो डाक्टर उसको उलटा लटकाता है कि किसी तरह चिल्ला दे। फिर भी नहीं चिल्लाता, तो उसे धौल जमाता है कि चिल्ला दे! चिल्लाना चाहिए ही बच्चे को। चिल्लाए-रोए, तो उसका कफ बह जाए, उसके नासापुट साफ हो जाएं, सांस आ जाए।

🚩मगर यह जबर्दस्ती सांस लिवाना है। यह झूठ शुरू हो गया, शुरू से ही शुरू हो गया! यह प्रारंभ से ही गलती शुरू हो गई। पाखंड शुरू हुआ। सांस तक भी तुमने स्वाभाविक रूप से न लेने दी! सांस तक तुमने कृत्रिम करवा दी, जबर्दस्ती करवा दी। घबड़ा दिया बच्चे को।

🚩यह खूब स्वागत किया! यह खूब सौगात दी! यह खूब सम्मान किया। उलटा लटकाया, धौल जमाई, रोना सिखाया; अब जिंदगी भर धौलें पड़ेंगी, उलटा लटकेगा, शीर्षासन करेगा। यह उलट-खोपड़ी हो ही गया! और जिंदगी भर रोएगा–कभी इस बहाने, कभी उस बहाने। इसकी जिंदगी में मुस्कुराहट मुश्किल हो जाएगी। झूठी होगी, थोपेगा। मगर भीतर आंसू भरे होंगे।

🚩इस मनोवैज्ञानिक ने भारतीय संस्कृति की प्रक्रिया खोजी। वह मां के पेट पर बच्चे को लिटा देता है। बच्चा धीरे-धीरे सांस लेना शुरू करता है। जब बच्चा धीरे-धीरे सांस लेने लगता है और मां के पेट की गर्मी उसे अहसास होती रहती है और मां को भी अच्छा लगता है, क्योंकि पेट एकदम खाली हो गया, बच्चा ऊपर लेट जाता है तो पेट फिर भरा मालूम होता है। वह एकदम रिक्त नहीं हो जाती।

🚩फिर सब चीजें आहिस्ता। क्या जल्दी पड़ी है? नहीं तो जिंदगी भर फिर जल्दबाजी रहेगी, भाग-दौड़ रहेगी। जब बच्चा सांस लेने लगता है, तब वह नाल काटता है। फिर बच्चे को टब में लिटा देता है ताकि उसे अभी भी गर्भ का जो रस था वह भूल न जाए; गर्भ की जो भाषा थी वह भूल न जाए। टब में वह ठीक उतने ही रासायनिक द्रव्य मिलाता है, जितने मां के पेट में होते हैं। वे ठीक उतने ही होते हैं, जितने सागर में होते हैं। सागर का पानी और मां के पेट का पानी बिलकुल एक जैसा होता है।

🚩तो उसे लिटा देता है मनोवैज्ञानिक अभी टब में और चकित हुआ यह जान कर कि अभी-अभी पैदा हुआ बच्चा टब में लेट कर बड़ा प्रफुल्लित होता है, मुस्कुराता है। एकदम से रोशनी नहीं करता कमरे में। यह सारी प्रक्रिया जन्म की बड़ी धीमी रोशनी में होती है, मोमबत्ती की रोशनी में–कि बच्चे की आंखों को चोट न पहुंचे।

🚩हमारे अस्पतालों में बड़े तेज बल्ब लगे होते हैं, टयूब लाईट लगे होते हैं। जरा सोचो तो, नौ महीने जो मां के पेट में अंधकार में रहा है, उसे एकदम टयूब लाइट…! चश्मे लगवा दोगे। आधी दुनिया चश्मे लगाई हुई है। छोटे-छोटे बच्चों को चश्मे लगाने पड़ रहे हैं। यह डाक्टरों की कृपा है! अंधे करवा दोगे न मालूम कितनों को! आंखों के तंतु अभी बच्चे के बहुत कोमल हैं। पहली बार आंख खोली है। जरा आहिस्ता से पहचान होने दो। क्रमशः पाठ सिखाओ।

🚩मोमबत्ती का दूर धीमा-सा प्रकाश। फिर आहिस्ता-आहिस्ता प्रकाश को बढ़ाता है। धीरे-धीरे, ताकि बच्चे की आंखें राजी होती जाए।

🚩यह बच्चे को स्वाभाविक जन्म देने की प्रक्रिया है। इस बच्चे की जिंदगी कई अर्थों में और ढंग की होगी। यह कई बीमारियों से बच जाएगा। इसकी आंखें शायद सदा स्वस्थ रहेंगी और इसके जीवन में एक मुस्कुराहट होगी, जो स्वाभाविक होगी…

🚩 महिला उत्थान मंडल द्वारा देशभर दिव्य शिशु संस्कार अभियान चलाए जा रहे है,उचित जानकारी के लिए संत श्री आशारामजी महिला उत्थान आश्रम में संपर्क कर सकते है।

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