काशी विश्‍वनाथ मंदिर का निर्माण कब हुआ ?

काशी विश्‍वनाथ मंदिर का निर्माण कब हुआ?

कितनी बार विधर्मियों द्वारा ध्वस्त किया गया?

और फिर कितनी बार पुनर्निर्मित हुआ…???

जानिए विस्तार से…

 

23 July 2023

 

🚩अखंड भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, इसलिए अनेक विदेशी आक्रांताओं की नजर भारत की संपत्ति पर थी। विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत को आकर लुटा लेकिन साथ में भारतीय सनातन संस्कृति को विकृत भी कर दिया और हिंदुओं का कत्ल भी किया,महिलाओं के साथ बलात्कार भी किये और भारत के मंदिरों को तोड़कर वहां मस्जिदें भी बनवा दी।

 

🚩भारत में कितने लाखों या अधिक मंदिर तोड़े गए कोई नहीं बता सकता !

लेकिन तीन मुख्य मंदिर,जो अधिक चर्चित रहे…

अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि मंदिर , मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान एवं काशी में बाबा विश्वनाथ धाम मंदिर

इन तीर्थ धामों को भी इस्लामी आक्रमणकारियों ने तोड़कर कब्जा कर लिया। आपने गत वर्षों में अयोध्या का इतिहास तो भली-भांति जान लिया होगा। फिर कभी किसी पोस्ट में हम मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भी चर्चा अवश्य करेंगे।

तो अब आज आपके साथ काशी विश्वनाथ के इतिहास के बारे में कुछ जानकारी साझा कर रहे हैं।

 

🚩द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है, इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था,कालान्तर में उसी का सम्राट विक्रमादित्य ने भी जीर्णोद्धार करवाया था। उसी हिन्दुओ के पवित्रतम पुण्य तीर्थ, ज्योतिर्लिंग धाम को 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तोड़वा दिया था।

 

🚩इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को प्रथम बार सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनवाया गया ।

लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया।

फिर कालान्तर में इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर तोड़ने के लिए सेना भेज दी। हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण वह सेना विश्वनाथ मंदिर परिसर के मुख्य केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के अन्य 63 मंदिर तोड़ दिए ।

 

🚩डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब ‘दान हारावली’ में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां विश्वनाथ ( ज्ञानवापी कूए के समीप स्थित होने से स्थान का नाम आज भी ज्ञानवापी ही है ) मंदिर तोड़कर एक मस्जिद (नाम दिया ज्ञानवापी मस्जिद) बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था।तभी तो आज के उत्तर प्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज ब्राह्मण हैं।

 

🚩सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होल्कर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया। 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया गया था।

 

🚩अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया और जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।

 

🚩सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मं‍डप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।

 

🚩मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फिट का गहरा कुआं है,जिसे ज्ञानवापी कुआं कहा जाता है। मुस्लिम आक्रांताओं ने कब्जा कर , इस कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम कर दिया।🚩स्कंद पुराण में कहा गया है, कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था। ज्ञानवापी मंदिर भगवान शिव का प्राचीन मंदिर था। मुस्लिम आक्रांता औरंगजेब ने 1669 में मंदिर तोड़कर वहां पर मस्जिद बनवाई।

वैसे तो ऐसे अनगिनत जगह है जहां मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई हुई हैं। इस घटना का वर्णन इसिहास में मिलता है तथा सर्वे के दौरान मस्जिद में मूर्तियों के अवशेष भी मिले हैं।

 

🚩अब सत्य को कोई कितना ही दबाए छुपाए , पर वह उजागर होकर ही रहता है। ज्ञानवापी परिसर के अंदर ही बाबा नंदी की प्रतिमा मौजूद है,यह प्रतिमा मस्जिद या ढांचे की तरफ देख रही है । इतिहासकारों ने दावा किया है कि, उस ढाँचे के अंदर हनुमान जी और गणेश जी की भी प्रतिमाएं हैं। ……और जिसे ज्ञानवापी का तहखाना कहा जा रहा है , दरअसल वो पुराने तोड़े गए विश्वनाथ मंदिर का गर्भगृह है । विश्वनाथ मंदिर के पक्षकार विजय शंकर रस्तोगी जी ने दावा किया है, कि मस्जिद में एक तहखाना है और तहखाने में अत्यंत विशाल शिवलिंग आज भी विद्यमान है।

अभी भी यहां देवी देवताओं के मूर्ति के चिन्ह व सनातन धर्म संबंधी अनेको चिन्ह(जैसे कमल , कलश आदि) मिलते हैं । इससे साफ होता है, कि ज्ञानवापी मस्जिद नहीं मंदिर है।

 

🚩इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं। मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब ‘विविध कल्प तीर्थ’ में लिखा है कि “बाबा विश्वनाथ धाम” को “देव क्षेत्र” कहा जाता था। लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है, कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिदों में तब्दील हुए थे। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक ‘तीर्थ चिंतामणि’ में वर्णन किया है, कि अविमुक्तेश्वर और विश्वेश्वर एक ही लिंग हैं ।

 

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