6 August 2024
कई बार शिवलिंग के ऊपर एक जल का कलश बंधा हुआ दिखाई देता है, जिसमें से बूंद-बूंद पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है।
ये दृश्य अक्सर गर्मी के दिनों में देखने को मिलता है। इस परंपरा से जुड़ी कई बातें है।
वैशाख मास में शिवलिंग के ऊपर एक जल से भरा कलश बांधने की परंपरा है। इस कलश से बूंद-बूंद पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है। इसको गलंतिका कहा जाता है। गलंतिका का शाब्दिक अर्थ है जल पिलाने का करवा या बर्तन।
इस जल के कलश में नीचे की ओर एक छोटा सा छेद होता है जिसमें से एक-एक बूंद पानी शिवलिंग पर निरंतर गिरता रहता है। ये जल का कलश मिट्टी या किसी अन्य धातु का भी हो सकता है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि इस कलश का पानी खत्म न हो।
क्या है इस परंपरा से जुड़ी कथा?
धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन करने पर सबसे पहले कालकूट नामक भयंकर विष निकला, जिससे समग्र संसार में त्राहि-त्राहि मच गई।
तब समस्त विश्व के कल्याण के लिए शिवजी ने उस कालकुट विष को अपने गले में धारण कर लिया। मान्यताओं के अनुसार, वैशाख मास में जब अत्याधिक गर्मी पड़ने लगती है तब कालकूट विष के कारण शिवजी के शरीर का तापमान में बढ़ने लगता है। उस तापमान को नियंत्रित रखने के लिए ही शिवलिंग पर गलंतिका बांधी जाती है।
जिसमें से बूंद-बूंद टपकता जल, भगवान शिव को ठंडक प्रदान करता है।
इसीसे शुरू हुई शिवजी को जल चढ़ाने की परंपरा?
शिवलिंग पर प्रतिदिन लोगों द्वारा जल चढ़ाया जाता है। इसके पीछे ही यही कारण है कि शिवजी के शरीर का तापमान सामान्य रहे।
गर्मी के दिनों तापमान अधिक रहता है इसलिए इस समय गलंतिका बांधी जाती है ताकि निरंतर रूप से शिवलिंग पर जल की धारा गिरती रहे।
वैशाख मास में लगभग हर मंदिर में शिवलिंग के ऊपर गलंतिका बांधी जाती है।
इस परंपरा में ये बात ध्यान रखने वाली है तो गलंतिका में डाला जाने वाला जल पूरी तरह से शुद्ध हो। चूंकि ये जल शिवलिंग पर गिरता है, इसलिए इसका शुद्ध होना जरूरी है।
अत : सफाई और शुद्धता का ध्यान रखना जरूरी है।
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