सनातन धर्म के पर्व एवं त्योहर – आषाढ अमावस्या – दीप अमावस्या

5 August 2024

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महाराष्ट्र में आषाढ़ अमावस्या को दीप अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन दीप पूजा की जाती है। दीप पूजा के दिन, लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते है और उसे सजाते है। फिर घर के सभी दीयों को साफ करते है और उन्हें सजाते है। मेज के चारों ओर रंगोली बनाकर दीयों को मेज पर रखते है और उन दियों की पूजा की जाती है।
कई लोग उनको जलाते है और कई लोग सिर्फ पूजा करके उनको साल भर में एक दिन आराम देते है। फिर घर में मिष्ठान बनाकर उनको भोग लगाया जाता है।
तमसो मा ज्योतिर्गमय की तर्ज पर दियों का पूजन किया जाता है ताकि दीऐं हमे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएं।
हिन्दू धर्म में दिया जलाने का बहुत महत्व है चाहे वह कोई मांगलिक कार्य हो, पितरों का तर्पण हो या फिर किसीका देहांत, दियों का स्थान तो अग्रगणी है।
हर कार्य में दिए लगाने का उद्देश अलग अलग है।
इतना ही नहीं, सनातन संस्कृति में दीयों का बुझना,या उन्हें बुझाना अशुभ माना जाता है।
इसीलिए, जन्म दिवस पर पाश्चात्य अंधानुकरण करके दिए बुझाने की बजाए , हिन्दू संस्कृति के अनुसार उन्हें जलाना चाहिए ऐसा संत श्री आशारामजी बापू कहते है।
आज, पाश्चात्य अंधनुकरण और सांस्कृतिक पतन के कारण लोग दीप अमावस्या को गटारी अमावस्या कहते है और उस दिन जमकर अभक्ष्य भक्षण और मदिरा पान करते है जो की सर्वथा अनुचित है।
आप को बता दे की हिन्दू धर्म में ऐसा कोई भी त्योहार नहीं जिस दिन,अभक्ष्य भक्षण और मदिरा पान की अनुमति दी गई हो बल्कि यह असभ्य मनुष्यों द्वारा जानबूझकर विकृति पैदा की गई है ताकि हम हमारी दिव्य संस्कृति से दूर चले जाएं।
इसीलिए, प्रत्येक हिन्दू को सजग होने की आवश्यकता है ताकि हम हमारी प्राचीन परंपराएं और त्योहार अबाधित रख सके।
सभी के जीवन में ज्ञान का प्रकाश हो,स्वास्थ्य,आनंद और यश हो, यहीं प्रार्थना करते हुए सभी दियों को मेरा शत-शत नमन
दीपज्योति परब्रह्म दीपज्योति जनार्दन ।
दीपो हरतु में पापम,संध्या दीपो नमोस्तुते  ।।
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