9 Jun 2018
हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में सही इतिहास को स्थान ही नही दिया गया है, हमारे भारत मे ऐसे #महान #क्रांतिकारी वीर हुए की आपको भी अपने पूर्वज पर गर्व होने लगेगा ।
बिरसा मुंडा के परिचय
सुगना मुंडा और करमी हातूके पुत्र बिरसा मुंडाका जन्म 15 नवंबर 1875 को #झारखंड #प्रदेशमें रांचीके #उलीहातू गांवमें हुआ था । ‘बिरसा भगवान’के नामसे लोकप्रिय थे । बिरसाका जन्म बृहस्पतिवारको हुआ था, इसलिए मुंडा जनजातियोंकी परंपराके अनुसार उनका नाम ‘बिरसा मुंडा’ रखा गया । इनके पिता एक खेतिहर मजदूर थे । वे बांससे बनी एक छोटी सी झोंपडीमें अपने परिवारके साथ रहते थे ।
The British also started trembling with the great Birsa Munda, today is the sacrifice day |
बिरसा बचपनसे ही बडे प्रतिभाशाली थे । बिरसाका परिवार अत्यंत गरीबीमें जीवन- यापन कर रहा था । गरीबीके कारण ही बिरसाको उनके मामाके पास भेज दिया गया जहां वे एक विद्यालयमें जाने लगे । विद्यालयके संचालक बिरसाकी प्रतिभासे बहुत प्रभावित हुए । उन्होंने बिरसाको जर्मन मिशन पाठशालामें पढनेकी सलाह दी । वहां पढनेके लिए ईसाई धर्म स्वीकार करना अनिवार्य था । अतः बिरसा और उनके सभी परिवार वालों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया ।
हिंदुत्वकी प्रेरणा
सन् 1886 से 1890 तक का समय बिरसाने जर्मन मिशनमें बिताया । इसके बाद उन्होंने जर्मन मिशनरीकी सदस्यता त्याग दी और प्रसिद्ध वैष्णव भक्त आनंद पांडेके संपर्क में आये । 1894 में मानसूनके छोटानागपुरमें असफल होनेके कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी । बिरसाने पूरे मनोयोगसे अपने लोगोंकी सेवा की । बिरसाने आनंद पांडेजीसे धार्मिक शिक्षा ग्रहण की । आनंद पांडेजीके सत्संगसे उनकी रुचि भारतीय दर्शन और संस्कृतिके रहस्योंको जाननेकी ओर हो गयी । धार्मिक शिक्षा ग्रहण करनेके साथ-साथ उन्होंने #रामायण, #महाभारत, #हितोपदेश, #गीता आदि धर्मग्रंथोंका भी अध्ययन किया । इसके बाद वे सत्यकी खोजके लिए एकांत स्थानपर कठोर साधना करने लगे । लगभग चार वर्ष के एकांतवासके बाद जब बिरसा प्रकट हुए तो वे एक हिंदु महात्माकी तरह पीला वस्त्र, लकडीकी खडाऊं और यज्ञोपवीत धारण करने लगे थे ।
धर्मांतरका विरोध
बिरसाने हिंदु धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार करना शुरू कर दिया । ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले वनवासी बंधुओं को उन्होंने समझाया कि ‘ईसाई धर्म हमारा अपना धर्म नहीं है । यह अंग्रेजोंका धर्म है वे हमारे देशपर शासन करते हैं, इसलिए वे हमारे हिंदु धर्मका विरोध और ईसाई धर्मका प्रचार कर रहे हैं । ईसाई धर्म अपनाने से हम अपने पूर्वजोंकी श्रेष्ठ परंपरासे विमुख होते जा रहे हैं । अब हमें जागना चाहिए । उनके विचारोंसे प्रभावित होकर बहुतसे वनवासी उनके पास आने लगे और उनके शिष्य बन गए ।
वन अधिकारी वनवासियों के साथ ऐसा व्यवहार करते थे जैसे उनके सभी अधिकार समाप्त कर दिए गए हों । वनवासियोंने इसका विरोध किया और अदालत में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने अपने पुराने पैतृक अधिकारों को बहाल करने की मांग की । इस याचिका पर सरकारने कोई ध्यान नहीं दिया । बिरसा मुंडाने वनवासी किसानोंको साथ लेकर स्थानियों अधिकारियोंके अत्याचारोंके विरुद्ध याचिका दायर की । इस याचिका का भी कोई परिणाम नहीं निकला ।
#वनवासियों का #संगठन
बिरसाके विचारोंका वनवासी बंधुओं पर गहरा प्रभाव पडा । धीरे-धीरे बडी संख्यामें लोग उनके अनुयायी बनते गए । बिरसा उन्हें प्रवचन सुनाते और अपने अधिकारों के लिए लडने की प्रेरणा देते । इस प्रकार उन्होंने वनवासियों का संगठन बना लिया । बिरसाके बढते प्रभाव और लोकप्रियताको देखकर अंग्रेज मिशनरी चिंतित हो उठे । उन्हें डर था कि बिरसा द्वारा बनाया गया वनवासियोंका यह संगठन आगे चलकर मिशनरियों और अंग्रेजी शासन के लिए संकट बन सकता है। अतः बिरसाको गिरफ्तार कर लिया गया ।
अंग्रेजी शासन को उखाड फेंकनेका संकल्प
बिरसाकी चमत्कारी शक्ति और उनकी सेवाभावना के कारण वनवासी उन्हें भगवानका अवतार मानने लगे थे। अतः उनकी गिरफ्तारीसे सारे वनांचल में असंतोष फैल गया । वनवासियोंने हजारों की संख्यामें एकत्रित होकर पुलिस थानेका घेराव किया और उनको निर्दोष बताते हुए उन्हें छोडनेकी मांग की । अंग्रेजी सरकारने वनवासी मुंडाओंपर भी राजद्रोहका आरोप लगाकर उनपर मुकदमा चला दिया । बिरसाको दो वर्षके सश्रम कारावासकी सजा सुनाई गयी और फिर हजारीबाग की जेलमें भेज दिया गया । बिरसाका अपराध यह था कि उन्होंने वनवासियोंको अपने अधिकारोंके लिए लडने हेतु संगठित किया था । जेल जानेके बाद बिरसाके मनमें अंग्रेजोंके प्रति घृणा और बढ गयी और उन्होंने अंग्रेजी शासन को उखाड फेंकनेका संकल्प लिया ।
दो वर्षकी सजा पूरी करनेके बाद बिरसाको जेलसे मुक्त कर दिया गया । उनकी मुक्तिका समाचार पाकर हजारोंकी संख्यामें वनवासी उनके पास आये । बिरसाने उनके साथ गुप्त सभाएं कीं और अंग्रेजी शासनके विरुद्ध संघर्षके लिए उन्हें संगठित किया । अपने साथियों को उन्होंने शस्त्र संग्रह करने, तीर कमान बनाने और कुल्हाडीकी धार तेज करने जैसे कार्यों में लगाकर उन्हें सशस्त्र क्रान्तिकी तैयारी करनेका निर्देश दिया । सन #1899 में इस क्रांति का श्रीगणेश किया गया । बिरसाके नेतृत्वमें क्रांतिकारियोंने रांचीसे लेकर चाईबासा तक की पुलिस चौकियोंको घेर लिया और ईसाई मिशनरियों तथा अंग्रेज अधिकारियोंपर तीरोंकी बौछार शुरू कर दी । रांचीमें कई दिनों तक कर्फ्यू जैसी स्थिति बनी रही । घबराकर अंग्रेजों ने हजारीबाग और कलकत्तासे सेना बुलवा ली ।
राष्ट्र हेतु सर्वस्व अर्पण
अब बिरसाके नेतृत्वमें वनवासियोंने अंग्रेज सेनासे सीधी लडाई छेड दी । अंग्रेजोंके पास बंदूक, बम आदि आधुनिक हथियार थे, जबकि वनवासी क्रांतिकारियोंके पास उनके साधारण हथियार तीर-कमान आदि ही थे । बिरसा और उनके अनुनायियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर अंग्रेज सेनाका मुकाबला किया। अंतमें बिरसाके लगभग चार सौ अनुयायी मारे गए । इस घटनाके कुछ दिन बाद अंग्रेजोंने मौका पाकर बिरसाको जंगलसे गिरफ्तार कर लिया । उन्हें जंजीरोंमें जकडकर रांची जेलमें भेज दिया गया, जहां उन्हें कठोर यातनाएं दी गयीं । बिरसा हंसते-हंसते सब कुछ सहते रहे और अंत में 9 जून 1900 को कारावासमें उनका देहावसान हो गया । बिरसाने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनको नयी दिशा देकर भारतीयों, विशेषकर वनवासियोंमें स्वदेश प्रेम की भावना जाग्रत की ।
बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तोंमें की जाती है । उन्होंने #वनवासियोंको #संगठित कर उन्हें #अंग्रेजी शासनके #विरुद्ध #संघर्ष करनेके लिए तैयार किया । इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय संस्कृतिकी रक्षा करनेके लिए धर्मांतरण करने वाले ईसाई मिशनरियोंका विरोध किया । ईसाई धर्म स्वीकार करनेवाले हिन्दुओंको उन्होंने अपनी सभ्यता एवं संस्कृतिकी जानकारी दी और अंग्रेजोंके षडयन्त्रके प्रति सचेत किया । आज भी झारखण्ड, उडीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेशके वनवासी लोग बिरसाको भगवानके रूपमें पूजते हैं । अपने पच्चीस वर्षके अल्प जीवनकालमें ही उन्होंने वनवासियोंमें स्वदेशी तथा भारतीय संस्कृतिके प्रति जो प्रेरणा जगाई वह अतुलनीय है । धर्मांतरण, शोषण और अन्यायके विरुद्ध सशस्त्र क्रांतिका संचालन करने वाले महान सेनानायक थे ‘बिरसा मुंडा’ ।
आज भी भारत में #वेटिकन सिटी के इशारे पर भारत मे #ईसाई मिशनरियों द्वारा पुरजोश से #धर्मान्तरण किया जा रहा है, लेकिन जनता को बिरसा मुंडा के पथ पर चलना चाहिए । जो #हिन्दू संस्कृति को #तोड़ने के लिए ईसाई मिशनरियों ने भारत मे #धर्मान्तरण रूपी #जाल बिसाया है इसमे भोले-भाले हिन्दू फस जाते है और कोई #हिन्दूनिष्ठ विरोध करता है तो उनकी #हत्या करवा दी जाती है या #मीडिया #द्वारा #बदनाम करवाकर #झूठे #केस बनाकर #जेल में #भिजवाया जाता है ।
हिन्दुस्तानी इन षडयंत्र को समजो और बिरसा मुंडा के पथ पर चलो ।
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बिरसा मुंडाजी जैसे न जाने कितने प्रसिध्द और अप्रसिध्द धर्मवीरोंके हमपर उपकार है।उन्ही की वजह से हिंदू धर्म की रक्षा हुई है।हमारेे धर्म और संस्कृति के लिए जो कुछ भी योगदान हम दे सकते है हमेे देना चाहिए।यही उनकी स्मृति को अभिवादन होगा।
Aaj bhi Bharat me dharmantaran ka kam joro se chal rha hai jin sainto ne virodh kiya unhe sadyantr karke jail me dal diya gya.