ऐसा तो भगवान श्रीराम में क्या था, जो लाखों साल के बाद भी आज उनकी लोकप्रियता अमर है ?

29  March 2023

 

🚩भगवान श्री राम का जन्म त्रेता युग में माना जाता है। धर्मशास्त्रों में, विशेषतः पौराणिक साहित्य में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक चतुर्युगी में 43,20,000 वर्ष होते हैं, जिनमें कलियुग के 4,32,000 वर्ष तथा द्वापर के 8,64,000 वर्ष होते हैं। श्री रामजी का जन्म त्रेता युग में अर्थात द्वापर युग से पहले हुआ था। चूंकि कलियुग का अभी प्रारंभ ही हुआ है (लगभग 5,102 वर्ष ही बीते हैं) और श्री रामजी का जन्म त्रेता के अंत में हुआ तथा अवतार लेकर धरती पर उनके वर्तमान रहने का समय परंपरागत रूप से 11,000 वर्ष माना गया है। अतः द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष + श्री रामजी की वर्तमानता के 11,000 वर्ष + द्वापर युग के अंत से अबतक बीते 5,102 वर्ष= कुल 8,80,102 वर्ष। अतएव परंपरागत रूप से भगवान श्री रामजी का जन्म आज से लगभग 8,80,102 वर्ष पहले माना जाता है।

🚩एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श पिता, आदर्श शिष्य, आदर्श योद्धा और आदर्श राजा के रूप में यदि किसीका नाम लेना हो तो भगवान श्रीरामजी का ही नाम सबकी जुबान पर आता है। इसलिए राम-राज्य की महिमा आज लाखों-लाखों वर्षों के बाद भी गायी जाती है।

 

🚩भगवान श्रीरामजी के सद्गुण ऐसे विलक्षण थे कि पृथ्वी के प्रत्येक धर्म, सम्प्रदाय और जाति के लोग उन सद्गुणों को अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं ।

 

🚩भगवान श्रीरामजी सारगर्भित बोलते थे। उनसे कोई मिलने आता तो वे यह नहीं सोचते थे कि पहले वह बात शुरू करे या मुझे प्रणाम करे। सामनेवाले को संकोच न हो इसलिए श्रीरामजी अपनी तरफ से ही बात शुरू कर देते थे।

 

🚩श्रीरामजी प्रसंगोचित बोलते थे। जब उनके राजदरबार में धर्म की किसी बात पर निर्णय लेते समय दो पक्ष हो जाते थे, तब जो पक्ष उचित होता श्रीरामजी उसके समर्थन में इतिहास, पुराण और पूर्वजों के निर्णय उदाहरण रूप में कहते, जिससे अनुचित बात का समर्थन करनेवाले पक्ष को भी लगे कि दूसरे पक्ष की बात सही है ।

 

🚩श्रीरामजी दूसरों की बात बड़े ध्यान व आदर से सुनते थे। बोलनेवाला जब तक स्वयं तथा औरों के अहित की बात नहीं कहता, तब तक वे उसकी बात सुन लेते थे। जब वह किसी की निंदा आदि की बात करता तब देखते कि इससे इसका अहित होगा या इसके चित्त का क्षोभ बढ़ जाएगा या किसी दूसरे की हानि होगी, तो वे सामनेवाले को सुनते-सुनते इस ढंग से बात मोड़ देते कि बोलनेवाले का अपमान नहीं होता था। श्रीरामजी तो शत्रुओं के प्रति भी कटु वचन नहीं बोलते थे ।

 

🚩युद्ध के मैदान में श्रीरामजी एक बाण से रावण के रथ को जला देते, दूसरा बाण मारकर उसके हथियार उड़ा देते फिर भी उनका चित्त शांत और सम रहता था। वे रावण से कहते : ‘लंकेश! जाओ, कल फिर तैयार होकर आना। ऐसा करते-करते काफी समय बीत गया तो देवताओं को चिंता हुई कि रामजी को क्रोध नहीं आता है, वे तो समता-साम्राज्य में स्थिर हैं, फिर रावण का नाश कैसे होगा? लक्ष्मणजी, हनुमानजी आदि को भी चिंता हुई, तब दोनों ने मिलकर प्रार्थना की: ‘प्रभु ! थोड़े कोपायमान होईए। तब श्रीरामजी ने क्रोध का आह्वान किया: क्रोधं आवाहयामि। ‘क्रोध! अब आ जा।’

 

🚩श्रीरामजी क्रोध का उपयोग तो करते थे, किंतु क्रोध के हाथों में नहीं आते थे। श्रीरामजी को जिस समय जिस साधन की आवश्यकता होती थी, वे उसका उपयोग कर लेते थे। श्रीरामजी का अपने मन पर बड़ा विलक्षण नियंत्रण था। चाहे कोई सौ अपराध कर दे फिर भी रामजी अपने चित्त को क्षुब्ध नहीं होने देते थे।

 

🚩श्रीरामजी अर्थव्यवस्था में भी निपुण थे। “शुक्रनीति” और “मनुस्मृति” में भी आया है कि जो धर्म, संग्रह, परिजन और अपने लिए- इन चार भागों में अर्थ की ठीक से व्यवस्था करता है वह आदमी इस लोक और परलोक में सुख-आराम पाता है।

 

🚩श्रीरामजी धन के उपार्जन में भी कुशल थे और उपयोग में भी। जैसे मधुमक्खी पुष्पों को हानि पहुँचाए बिना उनसे परागकण ले लेती है, ऐसे ही श्रीरामजी प्रजा से ऐसे ढंग से कर (टैक्स) लेते कि प्रजा पर बोझ नहीं पड़ता था। वे प्रजा के हित का चिंतन तथा उनके भविष्य का सोच-विचार करके ही कर लेते थे।

 

🚩प्रजा के संतोष तथा विश्वास-सम्पादन के लिए श्रीरामजी राज्यसुख, गृहस्थसुख और राज्यवैभव का त्याग करने में भी संकोच नहीं करते थे। इसलिए श्रीरामजी का राज्य आदर्श राज्य माना जाता है।

 

🚩राम-राज्य का वर्णन करते हुए ‘श्री रामचरितमानस में आता है :

बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग ।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग।।

 

🚩‘राम-राज्य में सब लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर रहते हुए सदा वेद-मार्ग पर चलते हैं और सुख पाते हैं। उन्हें न किसी बात का भय है, न शोक और न कोई रोग ही सताता है।’

🚩राम-राज्य में किसीको आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं ।

 

🚩धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं।

स्रोत: ऋषि प्रसाद पत्रिका: मार्च, 2010

 

🚩देश के नेता भी भगवान श्री रामजी से कुछ गुण ले लें तो प्रजा के साथ-साथ उन नेताओं का भी कितना कल्याण होगा, यह अवर्णनीय है और सदियों तक यश भी फैला रहेगा।

 

🚩रामनवमी को रामराज्य की स्थापना का संकल्प करेंगे…

 

🚩रामराज्य में प्रजा धर्माचरणी थी इसीलिए उनको भगवान श्रीराम जैसे सात्त्विक राज्यकर्ता मिले और वे आदर्श रामराज्य का उपभोग कर पाए।

इसके साथ यदि हम भी धर्माचरणी और ईश्‍वर का भक्त बनें, तो पहले के समान ही रामराज्य (धर्माधिष्ठित हिन्दूराष्ट्र) अब भी अवतरित होगा।

 

🚩नित्य धर्माचरण और धर्माधिष्ठित राज्यकार्य भार से आदर्श राज्यकार्य करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात प्रभु श्रीराम। प्रजा का जीवन संपन्न करनेवालेे, अपराध भ्रष्टाचार आदि के लिए कोई स्थान नहीं- ऐसे रामराज्य की ख्याति थी। ऐसे आदर्श राज्य “हिन्दूराष्ट्र” स्थापना का निर्धारण (निश्‍चय) करेंगे!!

 

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