रामचरितमानस को UNESCO ने अपनी सूची में दिया खास स्थान

रामचरितमानस को UNESCO ने अपनी सूची में दिया खास स्थान

19 May 2024

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भारत में मानवता के विरोधी रामचरितमानस का भी विरोध करते रहते है, वास्तव में यह रामचरितमानस का विरोध नही है यह मानवता को खत्म करने का प्रयास हैं क्योंकि रामचरितमानस ग्रंथ अद्भुत है, उसके पढ़ने से मानव स्वथ्य, सूखी और सम्मानित, भक्तिमय, त्यागमय जीवन जी सकता हैं और यहां तक कि अपना इह लोक और परलोक दोनों भी सुधार सकता है रामचरितमानस में इतनी शक्ति हैं।

आपको बता दे की भारत की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत को यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर’ में जगह मिली है। भारत के राम चरित मानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन को इस खास रजिस्टर में शामिल किया गया है। रामचरितमानस’, ‘पंचतंत्र’ और ‘सहृदयलोक-लोकन’ ने भारत के सामाजिक, धार्मिक एवं जीवन दर्शन पर गहरा असर डाला है और भारतीय साहित्य और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया है, देश के नैतिक ताने-बाने और कलात्मक अभिव्यक्तियों को आकार दिया है।

इन साहित्यिक कृतियों ने समय और स्थान से परे जाकर भारत के भीतर और बाहर दोनों जगह पाठकों और कलाकारों पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उल्लेखनीय है कि ‘सहृदयालोक-लोकन’, ‘पंचतंत्र’ और ‘रामचरितमानस’ की रचना क्रमशः पं. आचार्य आनंदवर्धन, विष्णु शर्मा और गोस्वामी तुलसीदास ने की थी।

रामचरितमानस : भगवान राम के जीवन चरित – रामचरितमानस को तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी में हिंदी भाषा की अवधी बोली में लिखा था। यह रामायण से भिन्न है जिसे ऋषि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में लिखा था। रामचरितमानस चौपाई रूप में लिखा गया ग्रंथ है। रामकथा को देश दुनिया में प्रसारित करने में रामचरितमानस को सबसे अहम माना जाता है। आज भी रामचरितमानस का पाठ सामूहिक रूप से भी किया जाता है।

पंचतंत्र की कथाएँ: पंचतंत्र दुनिया की दंतकथाओं के सबसे पुराने संग्रहों में से एक है जो संस्कृत में लिखा गया था। विष्णु शर्मा जो महिलारोप्य के राजा अमर शक्ति के दरबारी विद्वान थे, उन्हें पंचतंत्र का श्रेय दिया जाता है। इसकी रचना संभवतः 300 ईसा पूर्व के आसपास हुई थी। इसका अनुवाद 550 ईसा पूर्व में पहलवी (ईरानी भाषा) में किया गया था।

‘सहृदयालोक-लोकन: ‘सहृदयालोक-लोकन’ की रचना आचार्य आनंदवर्धन ने संस्कृत में की थी। आचार्य आनंदवर्धन,10वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 11वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के दौरान कश्मीर में रहते थे।

इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमेटी फॉर एशिया एंड द पैसिफिक (एमओडब्ल्यूसीएपी) की 10वीं बैठक के दौरान एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उलानबटार में हुई इस सभा में, सदस्य देशों के 38 प्रतिनिधि, 40 पर्यवेक्षकों और नामांकित व्यक्तियों के साथ एकत्र हुए। तीन भारतीय नामांकनों की वकालत करते हुए, आईजीएनसीए ने ‘यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर’ में उनका स्थान सुनिश्चित किया।

आईजीएनसीए में कला निधि प्रभाग के डीन (प्रशासन) और विभाग प्रमुख प्रोफेसर रमेश चंद्र गौड़ ने भारत से इन तीन प्रविष्टियों- राम चरित मानस, पंचतंत्र और सहृदयालोक-लोकन को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया। प्रो. गौर ने उलानबटार सम्मेलन में नामाँकनों का प्रभावी ढंग से समर्थन किया। यह उपलब्धि भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए आईजीएनसीए के समर्पण को प्रदर्शित करती है, साथ ही वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण और भारत की साहित्यिक विरासत की उन्नति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है।

बता दें कि यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर के बारे में 2008 में ही सहमति बना ली गई थी, लेकिन पहली बार इसके लिए नामाँकन जमा किए गए। गहन विचार-विमर्श से गुजरने और रजिस्टर उपसमिति (आरएससी) से सिफारिशें प्राप्त करने और बाद में सदस्य देशों के प्रतिनिधियों द्वारा मतदान के बाद, सभी तीन नामांकनों को शामिल किया गया, जिससे 2008 में रजिस्टर की स्थापना से पहले की महत्वपूर्ण भारतीय प्रविष्टियों को चिह्नित किया गया।

जो प्राणिमात्र का कल्याण करने का सामर्थ रखता है ऐसे पवित्र ग्रंथ श्री रामचरितमानसके मानस के बारे में गलत बोलना भी भयंकर पाप है इसलिए इस पवित्र ग्रंथ का जितना आदर करो उतना कम है क्योंकि सही जीवन जीने की राह यही ग्रंथ देता है और मरने के बाद मोक्ष तक की यात्रा करवा देता हैं।

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