भारत का विभाजन: धार्मिक आधार और राष्ट्र की चुनौती

29th September 2024

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▪भारत का विभाजन: धार्मिक आधार और राष्ट्र की चुनौती

 

 

▪1947 में जब सीरिल जॉन रेडक्लिफ ने अविभाजित भारत के नक्शे पर दो रेखाएं खींची, तब भारत और पाकिस्तान का जन्म हुआ। भारत का आधार उन इलाकों पर रखा गया, जहां मुसलमान बहुसंख्यक नहीं थे। वहीं, मुसलमान बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान बनाया गया। यह विभाजन एक धार्मिक विभाजन था, जिसमें भारत और पाकिस्तान को धर्म के आधार पर अलग किया गया।

 

▪विभाजन का सिद्धांत और भारत की नींव पर संकट :

विभाजन का मूल सिद्धांत यही था कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक होंगे, वे पाकिस्तान का हिस्सा बनेंगे। इसलिए, अगर आज भारत के किसी राज्य में आबादी की धार्मिक संरचना बदलती है, तो यह भारत के संविधान और उसकी नींव पर सीधा हमला है। यह केवल धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा नहीं है, बल्कि भारत की सभ्यता और उसके अस्तित्व का प्रश्न है।

 

▪यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे हर भारतीय नागरिक को गंभीरता से लेना चाहिए। यह केवल राजनीतिक दलों के बीच की प्रतिस्पर्धा नहीं है, बल्कि राष्ट्र के भविष्य से जुड़ा सवाल है। यह भारतीय लोकतंत्र और एकता के सिद्धांतों को कमजोर करने का प्रयास है।

 

▪ 1946 के चुनाव और मुस्लिम लीग का दबदबा :

विभाजन से पहले के घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए यह समझना जरूरी है कि 1946 के चुनावों में मुस्लिम लीग ने बड़े पैमाने पर समर्थन हासिल किया था, यहां तक कि उन इलाकों से भी जहां यह स्पष्ट था कि वे पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनेंगे। तमिलनाडु और केरल के मुसलमानों ने भी मुस्लिम लीग के उम्मीदवारों को जीताया, जबकि जिन्ना ने कभी यह दावा नहीं किया कि ये क्षेत्र पाकिस्तान का हिस्सा बनेंगे।

 

▪यह मुस्लिम समुदाय द्वारा धर्म के आधार पर लिया गया निर्णय था, जिसने भारत के

विभाजन की नींव रखी। भारतीय मुसलमानों ने धर्म के आधार पर मुस्लिम लीग के थोक भाव उम्मीदवार जिताए, जिससे विभाजन की मांग और भी मजबूत हो गई।

 

▪मुस्लिम लीग का दबदबा और पाकिस्तान का निर्माण :

विभाजन से पहले,अविभाजित पंजाब और बंगाल के मुसलमानों में मुस्लिम लीग का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ा। हालांकि, मुस्लिम लीग का दबदबा बहुत देर से शुरू हुआ, लेकिन इसका प्रभाव गहरा था। इससे अंग्रेजों को यह साबित करने में मदद मिली कि मुसलमान और हिंदू एक ही राष्ट्र में नहीं रह सकते। यही कारण था कि 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का गठन हुआ।

 

▪संविधान सभा और सरदार पटेल की दृढ़ता :

विभाजन के बाद, मुस्लिम लीग के कई प्रतिनिधि पाकिस्तान जाने के बजाए भारत की संविधान सभा में शामिल हो गए। इन 28 प्रतिनिधियों ने संविधान सभा में मांग की कि मुसलमानों को फिर से “सैपरेट इलैक्टोरेट” दिया जाए, ताकि मुस्लिम सांसद और विधायक केवल मुस्लिम वोटों से चुने जा सकें।

 

▪यह उस विचारधारा का प्रतीक था, जिसने विभाजन को बढ़ावा दिया था। लेकिन इस मांग के खिलाफ सरदार वल्लभभाई पटेल ने दृढ़ता से अपना विरोध जताया। 28 अगस्त 1947 को संविधान सभा में दिए गए अपने प्रसिद्ध भाषण में पटेल ने कहा, “अगर ये सब चाहिए तो पाकिस्तान चले जाओ! यहां हम ‘एक राष्ट्र’ बना रहे हैं। इसमें मैं किसी को बाधा नहीं डालने दूंगा।”

 

▪भारत की एकता और भविष्य की दिशा :

पटेल के इस वक्तव्य ने स्पष्ट कर दिया कि भारत एक राष्ट्र है और यहां धर्म के आधार पर किसी को विशेष अधिकार नहीं दिए जाएंगे। भारत का निर्माण एक ऐसे राष्ट्र के रूप में हुआ था, जहां सभी धर्मों, जातियों और समुदायों के लोग एक साथ मिलकर रह सकें।

 

▪हालांकि,आज भी कुछ तत्व भारतीय समाज में विभाजन की भावना को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। यह राष्ट्र की एकता के लिए गंभीर चुनौती है और इसे सख्ती से रोकने की आवश्यकता है।

 

▪निष्कर्ष :

1947 में भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आज भी हम उस विभाजनकारी मानसिकता को आगे बढ़ने दें। हमें यह समझना होगा कि भारत का निर्माण एक समावेशी राष्ट्र के रूप में हुआ था, जहां सभी धर्मों और समुदायों के लोग साथ रह सकें।

 

▪धार्मिक संरचना में कोई भी बदलाव, जो भारी है कि वह अपने राष्ट्र की सुरक्षा और उसकी एकता के प्रति सचेत रहे।

 

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