जातीय जनगणना और भारत का सामाजिक भविष्य

30 सितंबर 2024

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जातीय जनगणना और भारत का सामाजिक भविष्य

 

जातीय जनगणना का मुद्दा आजकल काफी चर्चा में है। यह एक ऐसा विषय है जिसे लेकर देश में अलग-अलग राजनीतिक दलों के बीच बहस छिड़ी हुई है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर जातीय जनगणना की आवश्यकता क्यों है और इसे कब तक टाला जा सकता है?

 

जातीय जनगणना की आवश्यकता : जातीय जनगणना केवल आंकड़ों का संग्रहण नहीं है, यह समाज के विभिन्न वर्गों के जीवनस्तर को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। अगर, जातीय जनगणना आज नहीं होगी तो कल होगी, अगर कल नहीं होगी तो परसों होगी, लेकिन एक दिन यह अवश्य होगी। इसे टालने का प्रयास केवल देश की वास्तविक समस्याओं से आंखें मूंदने जैसा है।

 

यह जनगणना एक बंद मुट्ठी की तरह है, जो यदि खुल गई, तो उससे देश की सामाजिक और आर्थिक असमानताओं का सच सामने आ सकता है। कांग्रेस जैसे दल इस मुद्दे से बचने का प्रयास कर रहे है क्योंकि इसका घाटा उन्हें ही होगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातीय सर्वे कराकर इसे सार्वजनिक कर दिया, लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस ने जातीय सर्वे कराया था और आज तक उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं दिखाई।

 

जातीय जनगणना का राजनीतिक आयाम : जो नेता भाजपा के इसके विरोध में बयानबाजी कर रहे है , वे या तो सामाजिक ज्ञान से अज्ञानी हैं या फिर मूर्खता कर रहे है।वास्तविकता यह है कि, जातीय जनगणना भाजपा ही कराएगी। भाजपा ने हर मौके पर सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण फैसले किए है। पहले एक राष्ट्रवादी मुस्लिम को राष्ट्रपति बनाया, फिर दलित को और तीसरी बार आदिवासी को यह सम्मान मिला। भाजपा ने बाबा साहब अम्बेडकर और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर उनके योगदान को सराहा, जो कि कांग्रेस कभी नहीं कर सकी।

 

कांग्रेस ने पीढ़ी दर पीढ़ी प्रधानमंत्री पद को अपने परिवार के पास ही रखा और जब अन्य लोगों को मौका मिला भी, तो वे उच्च वर्ग के ही थे। कांग्रेस का वास्तविक उद्देश्य यथास्थितिवाद को बनाए रखना है, जो देश की प्रगति में सबसे बड़ा बाधक है।

 

भाजपा की नीतियां और यथास्थितिवाद से संघर्ष : जब तक अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री नहीं बने थे, देश में बुनियादी सुविधाओं की स्थिति बेहद खराब थी। दो लेन की सड़क को ही हाईवे माना जाता था और गांवों में बिजली पहुंचाना ग्रामीणों का अधिकार नहीं बल्कि एक कृपा समझा जाता था।भाजपा ने सत्ता में आते ही इन यथास्थितिवादी धारणाओं को तोड़ा और लोगों को उनके अधिकारों का एहसास कराया।

 

गैस सिलेंडर,फोन कनेक्शन,ट्रांसफॉर्मर लगवाना, इंदिरा आवास,शौचालय निर्माण – ये सब कांग्रेस के समय में लोगों को एहसान लगते थे। लेकिन भाजपा ने इन्हें जनता के अधिकारों के रूप में प्रस्तुत किया। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें बनवाईं, बिजली पहुंचाई और हर जरूरतमंद के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ सुनिश्चित किया।

 

जातीय जनगणना का महत्व : जातीय जनगणना का मुख्य उद्देश्य सामाजिक असमानताओं को दूर करना और समाज के सभी वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना है। यह कांग्रेस के यथास्थितिवाद के जड़मूल को हिला देगा। जातीय जनगणना से सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस और गांधी परिवार को होगा। पी चिदंबरम का यह बयान कि “जैसे-जैसे इस देश में लोकतंत्र गहरा होता जाएगा, वैसे-वैसे कांग्रेस कमजोर होती जाएगी”, शत-प्रतिशत सत्य प्रतीत होता है।

 

निष्कर्ष : जातीय जनगणना से समाज में कोई भूकंप नहीं आएगा, बल्कि यह सामाजिक संतुलन और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इसे आज नहीं तो कल भाजपा ही पूरा करेगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आग्रह है कि वे इस जनगणना को उत्तर प्रदेश में शुरू कर इसे आगे बढ़ाएं और समाज में व्याप्त असमानताओं को दूर करने का मार्ग प्रशस्त करें।

 

जातीय जनगणना का होना केवल समय की बात है और यह समाज को नए सिरे से परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

 

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