जो अंडे अभी तक सिर्फ अंडे थे जिसे शाकाहार कि श्रेणी में नहीं रखा जा रहा था अब वो अचानक से आयुर्वेदिक हो गये। अंडे के फायदे, नुकसान और उपयोग को लेकर भले ही सबके अपने-अपने दावे और तर्क हों, पर सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुक्कुट अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र के अनुसार उनके अंडे को आयुर्वेदिक इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इस प्रक्रिया में मुर्गियों को जो आहार दिया जाता है उसमें आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है। मतलब मुर्गियों को मुनक्खा, किशमिश बादाम और छुआरे आदि परोसे जा रहे तो उनसे पैदा होने वाले अंडे आयुर्वेदिक कहे जा रहे है|
असल में आयुर्वेदिक अण्डो कि बिक्री शुरू भी हो चुकी है। तेलगु समाचार पत्र इनाडु में प्रकाशित खबर कि माने तो आयुर्वेदिक अंडे कि बिक्री तेलगु भाषी कई राज्यों के साथ बेंगलुरु में भी कि जा रही है। सौभाग्य पोल्ट्री द्वारा इसे आयुर्वेदिक बताकर दक्षिण भारत में बेचा जा रहा है। बात सिर्फ अंडे तक सीमित नहीं हैं समाचार पत्र का दावा है कि अंडे ही नहीं बल्कि आयुर्वेदिक मुर्गियों का मीट भी हैदराबाद में उपलब्ध है।
इसे कुछ दुसरे तरीके से भी समझा जा सकता हैं कि अभी तक मुर्गियों से ज्यादा से ज्यादा अंडे प्राप्त करने के लिए स्टेरॉयड्स, हार्मोन्स और एंटी-बायोटिक्स (प्रतिजैविक पदार्थ) का इंजेक्शन दिया जाता है। लेकिन इन मुर्गियों को दिया जाने वाला आहार पूरी तरह आयुर्वेदिक है तो उनके अनुसार अंडे भी आयुर्वेदिक हो गये और उसका मांस भी।
बकरी भैंस भी घास-पात खेतों में खड़ी जड़ी बूटियां खाती है तो इस तरह उसका मांस भी आयुर्वेदिक हो जायेगा? क्या ऐसा हो सकता है कि कोई महिला शाकाहारी हैं। उसका खान-पान प्राकृतिक है और बच्चें को आयुर्वेदिक बच्चा कहा जाये ? हो सकता है कल कहा जाये कि काजू, मखाने, पिस्ता खाने वाली और शरबत पीने वाली गाय का बीफ भी आयुर्वेदिक है? क्योंकि जब बाजार पर पूंजीवाद हावी हो जाएँ तो आगे ऐसी खबरें लोगों के लिए सुनना और पढना कोई नई बात नहीं रह जाएगी।
आयुर्वेद के संदर्भ में बात जब होती है तो मन में अपने आप उसकी महानता का आध्यात्मिक और धार्मिक भाव पैदा हो जाता है। विश्व कि सभी संस्कृतियों में अपने देश कि संस्कृति न सिर्फ प्राचीन ही है बल्कि सर्वश्रेष्ठ और बेजोड़ भी है। हमारी सभ्यता संस्कृति और सभ्यता के मूल स्रोत और आधार हैं वेद, जो कि मानव जाति के पुस्तकालय में सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं और इन्हीं कि एक शाखा को आयुर्वेद भी कहा जाता है। आयुर्वेद के जनक के तौर पर जिन तीन आचार्यो कि गणना मुख्यरूप से होती है उनमें महर्षि चरक, सुश्रुत के बाद महर्षि वाग्भट का नाम आता है। इस ग्रन्थ का निर्माण वेदों और ऋषियों के अभिमतों तथा अनुभव के आधार पर किया गया है। कहा जाता है इस ग्रन्थ के पठन-पाठन, मनन एवं प्रयोग करने से निश्चय ही दीर्घ जीवन आरोग्य धर्म, अर्थ, सुख तथा यश कि प्राप्ति होती है।
आयुर्वेद का ज्ञान बहुत ही विशाल है। इसमें ही ऐसी प्रणाली का ज्ञान है, जो मानव को निरोगी रहते हुए स्वस्थ लम्बी आयु तक जीवित रहने की लिये मार्ग प्रशस्त कराता है जबकि मांसाहारी भोजन में तमतत्त्व की अधिकता होने के कारण मानव मन में अनेक अभिलाषाऐं एवं अन्य तामसिक विचार जैसे लैंगिक विचार, लोभ, क्रोध आदि उत्पन्न होते हैं। शाकाहारी भोजन में सत्त्व तत्त्व अधिक मात्रा में होने के कारण वह आध्यात्मिक साधना के लिए पोषक होता है।
आयुर्वेद के आध्यात्मिक संदर्भ में यदि गहराई से झांके तो अंडे खाने से मन पूरी तरह से आध्यात्मिकता प्राप्त करने का विरोध करता है। क्योंकि आध्यात्मिकता के दृष्टिकोण से आयुर्वेद कि अपने आप में एक पवित्रता है! आयुर्वेद के अनुसार अंडे प्राकृतिक है खाद्य पदार्थ नहीं हैं। अंडे मुर्गियों के बच्चों कि तरह हैं क्या किसी का बच्चा खाना आध्यात्म कि दृष्टि से पवित्र हो सकता है? आयुर्वेद में अपवित्र खाद्य पदार्थों की अनुमति नहीं है! और कोई मुर्गी स्वाभाविक रूप से अंडे नहीं देती है अंडा पाने के लिए मुर्गियों के कुछ हार्मोनों को उत्तेजित करने के लिए इंजेक्ट किया जाता है जो कि निसंदेह अप्राकृतिक है।
भोजन के लिए बेचे जाने वाले अंडे आध्यात्मिकता को विकसित करने के बजाय मुनाफा कमाने के लिए आयुर्वेद के नाम का सिर्फ घूंघट ओढ़ाया जा रहा हैं। आयुर्वेद के नाम पर संतुलित भोजन बताकर बेचने वाले वेदो उपवेदो का अपमान ही नहीं बल्कि पाप भी कर रहें है। मांस के समान अंडे तामसिक खाद्य पदार्थ है आयुर्वेद अंडे खाने पर रोक लगाता है क्योंकि यह शारीरिक और भावनात्मक उग्रता को बढ़ाता है। आयुर्वेद में जब कहीं भी मांस को भोजन या दवा कि श्रेणी में नहीं रखा है तो आयुर्वेद में अंडे कहाँ से आ गये?… विनय आर्य
Companies can make fool to anyone for money. There motto is only making huge profits & they can speak lies to any extent for this.
Customers should think by their own brain & should boycott such products.
Paiso ke liye kuchh bhi marketing karte hai log.Deshvasi apne vivek ka upyog kare aur aise logo ke bahkave me na aye.