भारत में विधर्मी आक्रमणकारियों ने बड़ी संख्या में हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस किया । स्वतन्त्रता के बाद भी सरकार ने मुस्लिम वोटों के लालच में मस्जिदों, मजारों आदि को बना रहने दिया ।
इनमें से श्रीराम जन्मभूमि मंदिर (अयोध्या), श्रीकृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) और काशी (विश्वनाथ मंदिर) के सीने पर बनी मस्जिदें सदा से हिन्दुओं को उद्वेलित करती रही हैं। इनमें से श्रीराम मंदिर के लिए विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष स्वर्गीय श्री अशोक सिंघल की अध्यक्षता और शिवसेना के बाला साहब की अध्यक्षता में देशव्यापी #आन्दोलन किया गया, जिससे 6 दिसम्बर, 1992 को वह #बाबरी ढाँचा धराशायी हो गया।
Know the breakdown of Sri Ram Mandir and the history of the sacrifice and sacrifice of lakhs of Hindus
बाबरी मस्जिद विध्वंस का 6 दिसंबर को हर साल #हिन्दू शौर्य दिवस मानते हैं
मुस्लिम शासक आक्रमणकारी बाबर 1527 में फरगना से भारत आया था, बाबर के आदेश से उसके #सेनापति मीर बाकी ने 1528 ई. में श्रीराम मंदिर को गिराकर वहाँ एक मस्जिद बना दी थी । मंदिर तोड़ रहे थे उस समय इस्लामी आक्रमणकारियों से मंदिर को बचाने के लिए रामभक्तों ने 15 दिन तक लगातार संघर्ष किया, जिसके कारण आक्रांता मंदिर पर चढ़ाई न कर सके और अंत में मंदिर को तोपों से उड़ा दिया। इस संघर्ष में 1,36,000 रामभक्तों ने मंदिर रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति दी।
भगवान श्री राम मंदिर टूटने के बाद #हिन्दू समाज एक दिन भी चुप नहीं बैठा। वह लगातार इस स्थान को पाने के लिए #संघर्ष करता रहा ।
1528 से 1949 ईस्वी तक के कालखंड में श्रीरामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु 76 बार संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया।
संघर्ष करने के बाद 23 दिसम्बर,1949 को आखिर हिन्दुओं ने वहाँ #रामलला की #मूर्ति स्थापित कर पूजन एवं अखण्ड कीर्तन शुरू कर दिया।
मंदिर पर ताला
कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचे को आपराधिक दंड संहिता की धारा 145 के तहत रखते हुए प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने मंदिर के द्वार पर ताले लगा दिए।
पहली धर्म संसद
अप्रैल, 1984 में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) में आयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव पारित किया।
विश्व हिन्दू परिषद्’ द्वारा इस विषय को अपने हाथ में लेने से पूर्व तक 76 हमले हिन्दुओं ने किये; जिसमें देश के लाखों हिन्दू नर नारियों का #बलिदान हुआ; पर पूर्ण #सफलता उन्हें कभी नहीं मिल पायी।
विश्व हिन्दू परिषद ने लोकतान्त्रिक रीति से जनजागृति के लिए #श्रीराम #जन्मभूमि मुक्ति #यज्ञ समिति का गठन कर 1984 में श्री रामजानकी रथयात्रा निकाली, जो सीतामढ़ी से प्रारम्भ होकर #अयोध्या पहुँची।
श्री राम मंदिर के लिए जनता का आक्रोश देखकर #हिन्दू नेताओं ने शासन से कहा कि #श्री रामजन्मभूमि मंदिर पर लगे अवैध ताले को खोला जाए। #न्यायालय के आदेश से 1 फरवरी 1986 को ताला खुल गया।
अयोध्या में भव्य मंदिर बनाने के लिए 1989 में देश भर से श्रीराम शिलाओं को पूजित कर अयोध्या लाया गया और बड़ी धूमधाम से 9 नवम्बर, 1989 को #श्रीराम मन्दिर का #शिलान्यास कर दिया गया। जनता के दबाव के आगे #प्रदेश और #केन्द्र शासन को झुकना पड़ा। पर #मन्दिर निर्माण तब तक सम्भव नहीं था, जब तक वहाँ खड़ा ढाँचा न हटे। हिन्दू नेताओं ने कहा कि यदि मुसलमानों को इस ढाँचे से मोह है, तो वैज्ञानिक विधि से इसे स्थानान्तरित कर दिया जाए; पर शासन मुस्लिम वोटों के लालच से बँधा था। वह हर बार न्यायालय की दुहाई देता रहा। #विहिप #शिवसेना आदि हिन्दू कार्यकर्ताओं का तर्क था कि आस्था के विषय का निर्णय #न्यायालय नहीं कर सकता आंदोलन और तीव्र कर दिया।
आंदोलन के अन्तर्गत 1990 में वहाँ #कारसेवा का निर्णय किया गया। तब #उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी। उन्होंने घोषणा कर दी कि #बाबरी परिसर में एक परिन्दा तक पर नहीं मार सकता । पर हिन्दू युवकों ने #शौर्य दिखाते हुए 29 अक्तूबर को गुम्बदों पर #भगवा फहरा दिया। बौखला कर 2 नवम्बर को #मुलायम सिंह ने गोली चलवा दी, जिसमें कोलकाता के दो सगे भाई #राम और शरद कोठारी सहित सैकड़ों कारसेवकों का #बलिदान हुआ।
कारसेवकों के बलिदान के बाद #प्रदेश में #भाजपा की सरकार बनी। #केन्द्र की #कांग्रेस सरकार के इस आश्वासन पर कि नवंबर में #न्यायालय का निर्णय आ जाएगा एक बार फिर #गीता जयंती के शुभ दिन (6 दिसम्बर, 1992 ) को #कारसेवा की तिथि निश्चित की गयी। परन्तु जानबूझ कर सब सुनवाई पूरी होने के बाद भी निर्णय की तिथि आगे से आगे बढ़ाकर 6 दिसंबर के बाद की कर दी गई ।
विहिप की योजना तो तब भी #केन्द्र शासन पर दबाव बनाने की ही थी । पर #युवक आक्रोशित हो उठे। उन्होंने वहाँ लगी तार बाड़ के खम्भों से प्रहार कर #बाबरी ढाँचे के तीनों गुम्बद गिरा दिये। इसके बाद विधिवत वहाँ श्री रामलला को भी विराजित कर दिया गया।
मंदिर के अवशेष मिले
ध्वस्त ढांचे की दीवारों से 5 फुट लंबी और 2.25 फुट चौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों ने बताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत में लिखीं 20 पंक्तियां उत्कीर्ण थीं। पहली पंक्ति की शुरुआत “ओम नम: शिवाय” से होती है। 15वीं, 17वीं और 19वीं पंक्तियां स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि यह मंदिर “दशानन (रावण) के संहारक विष्णु हरि” को समर्पित है। मलबे से करीब ढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईं जो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं।
पंकज निगम (तत्कालीन विहिप नगर प्रमुख) ” जो की 1992 को कार सेवक थे की आंखो देखी – संक्षिप्त मे : “हम लोग 1992 को बाबरी विध्वंस के दिन ही अयोध्या पहुचे थे, किन्तु जब लोटे तब तक आधे से भी कम बचे थे, 6 दिसम्बर के बाद तिब्बत पुलिस ने सरयू नदी को लाशों से पाट दिया था, जिसमे सभी लाशे कर सेवको की थी, सभी बसे जो भी आजा रही थी सभी लाशों से भरी थी, रात के समय तिब्बत पुलिस फ़ाइरिंग करती थी जो भी उसके बीच मे आगया उसका राम नाम सत्य का मोका भी नही मिलता था, लाशे नदी मे बहा दी जाती थी।
हम लोगो ने गिरफ्तारी दे दी थी, और हमे 18 दिनो तक 1 जेल मे रखा गया, जहा उन 18 दिनो मे हमारे कई साथी भूख और बीमारी से मर गए, क्यू की जेल मे ना तो कुछ खाने को दिया जाता था, ना दिसम्बर की ठंड से बचाने की कोई व्यवस्था थी, 15 दिनो से भूखे होने के बाद भी हम 5 लोग जेल से भागने मे कामयाब हुये, और जंगलो से रास्ते पैदल दिल्ली पहुचे, वह पर हमारे कुछ अन्य लोग थे, उनकी मदद से नागदा पहुचे ।”
सोचें, श्री राम मन्दिर के पीछे कितने #बलिदान हुए, कितनी #माताओं ने अपने #पुत्र खोये , कितनी #पत्नियों ने अपने #सुहाग खोये! क्या बीती होगी उस #बाप पर, जब उसने अपने दो-दो #बेटों की गोलियों से छलनी हुई लाश को देखा होगा!
ये सब किया तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस और उत्तर प्रदेश की सपा सरकार ने!
रामभक्तों को गोलियो से छलनी कर उनके शरीर में बालू के बोरे बांध कर उनकी लाश #सरयू मे फेंक दी गयी । सोचिए, क्या बीती होगी उस #परिवार पर जब उन्होंने अपनों की सड़ी-गली और जानवरो से खाई हुई लाशें यमुना से कई हफ्तों बाद निकाली होगी !
कारसेवकों को हेलीकाप्टर से चुन चुन कर निशाना बनाया गया और गोली आँख में या सिर में मारी गयी । आखिर क्यों…??? क्योंकि #हिन्दू सहनशील हैं! अयोध्या जो #बाबर की औलादों के चंगुल में थी, लाखों हिन्दू पुरुषों और हजारों #नारियों ने बलिदान देकर उसे मुक्त कराया ।
अमर बलिदानी कारसेवक गोली लगने के बाद मरते-मरते भी “जय श्री राम” बोलते रहें । इस प्रकार वह बाबरी कलंक नष्ट हुआ पर तत्कालीन केंद्र सरकार ने सारी जमीन अधिग्रहीत कर ली ।
देश मे 98 करोड़ हिन्दू है पर अभीतक बाबर ने तोड़ा हुआ श्री राम मंदिर नही बन पाया वे हिन्दुओ के लिए शर्म की बात है ।
अब मामला #सर्वोच्च #न्यायालय में लंबित है । 100 करोड़ हिन्दुओ का पूर्ण विश्वास है कि हिंदूवादी #वर्तमान #केंद्र #सरकार तथा उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार भव्य मंदिर निर्माण का मार्ग शीघ्र प्रशस्त करेगी । जय श्री राम!!
2 thoughts on “जानिए श्री राम मंदिर तोड़ने और लाखों हिंदुओ के बलिदान व शौर्य दिवस का इतिहास”
1528 से 1949 ईस्वी तक के कालखंड में श्रीरामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु 76 बार संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया।
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