यदि आप अपने बच्चों को संस्कारवान और ओजस्वी-तेजस्वी बनाना चाहते हैं, तो इतना अवश्य करें…

20 Apirl 2023

🚩कुछ माता-पिता अपने बच्चे को खूब लाड़-लड़ाते हैं। वे सोचते हैं , कि बेटे को बढ़िया स्कूल में पढ़ाएंगे,डॉक्टर, इंजीनियर,पायलट आदि बनाएंगे। इसके लिए बच्चे को छात्रावास में भी रखते हैं। किंतु कई बार विपरीत परिणाम होते हैं। बच्चा ऐसा हो जाता है कि,न अपने परिवार का रह जाता है, न छात्रावास में ठीक तरह अध्ययन ही करता है और न ही उसका भविष्य उज्ज्वल बन पाता है, वरन् वह फुटपाथी(आवारा) होकर रह जाता है।

 

🚩कुछ माँ-बाप बच्चों को खूब रोकते टोकते हैं। क्योंकि माँ-बाप जैसा चाहते हैं,अक्सर बच्चे वैसा नहीं कर पाते। अभिभावक यह भूल ही जाते हैं कि,बच्चों में अपनी ही उमंगे हैं,उनकी अपनी भी तो कुछ ख्वाहिशें होती हैं। ज्यादा टोका-टाकी से बच्चा बेचारा भीतर ही भीतर सिकुड़ता रहता है। फिर वह छुपकर गलती करता है और उसमें बेईमानी करने की आदत पनपती है।

🚩कभी माता-पिता की टोका-टाकी हितकारक होती है, तो कभी गड़बड़ी भी कर देती है। माता-पिता या कुटुम्बी के लिए उचित है, कि वे बच्चे को इतना विश्वास में लें, कि बच्चे से कोई गलती हो जाए, तो अपने कुटुम्बी को बता दे। फिर अभिभावक को चाहिए कि गलती का पता चलने पर भी उसको ज्यादा टोकें नहीं, गलती का मूल खोजें तथा उस मूल को ही हटा दें। बच्चा फिर गलती नहीं करेगा।

 

🚩बालक पैदा होता है तब से लेकर 7 साल तक उसका मूलाधार केन्द्र विकसित होता है। इन 7 सालों तक बालक बीमार न हो, इसकी सावधानी बरतें। 2-3 साल का होने पर साल में एक – दो बार 3-4 दिन पपीता और उसके बीज खिलाएं, ताकि उसका पेट ठीक रहे।

 

🚩बालक इधर-उधर की चीजें खाता है, भोजन के समय ठीक से नहीं खाता तो आगे चलकर उसका पाचनतंत्र खराब हो जाएगा। माता-पिता को चाहिए कि खान-पान में ज्यादा लाड़ न लड़ाएं व खान-पान की सलाह किसी वैद्य या जानकार से लें।

 

🚩7 से 14 वर्ष की उम्र में स्वाधिष्ठान केन्द्र विकसित होता है। अगर इस उम्र में ध्यान न दिया गया तो उसमें गंदी भावनाओं और गंदी आदतों वाले बच्चों के संस्कार पड़ेंगे। इस समय वह जैसा देखेगा और जैसी भावनाएँ उसके चित्त में आ गयीं वे सब उसे जीवन भर नचाती रहेंगी। माता-पिता के लिए उचित है , कि उसकी अच्छी भावनाओं का पोषण करें तथा धैर्यपूर्वक बुरी भावनाओं को निकालने के लिए उसे प्रोत्साहित करें… लेकिन दबाव न डालें !!

 

🚩14 से 21 साल तक मणिपुर केन्द्र विकसित होता है। इस समय में वासनाओं, भावनाओं के आवेग और भय-चिंता आदि के कारण बच्चों से जो गलतियाँ होती हैं,संयम-पालन व सूर्यनमस्कार आदि करने से उनपर वे स्वयं नियंत्रण पाने में सफल हो जाते हैं और बुद्धिपूर्वक अच्छे इरादे से कर्म करके ऊँचे उठ सकते हैं।

 

🚩भ्रूमध्य को अनामिका से हलका-सा रगड़ते हुए ʹૐ गं गणपतये नम: ‘ ʹૐ श्री गुरुभ्यो नमःʹ जपकर तिलक की भवना करें फिर वज्रासन में बैठकर दोनों हाथ ऊपर करते हुए धीरे-धीरे झुकते हुए प्रणाम की मुद्रा में सिर जमीन पर लगाकर 2-3 मिनट रखें। इससे निर्णयशक्ति, बौद्धिक शक्ति में जादुई लाभ होता है।साथ ही क्रोध, आवेश तथा वैरभाव आदि पर नियंत्रण पाने वाले रसों का भीतर विकास होता है।

 

🚩शवासन में आत्मिक शक्तियाँ खींचकर पाँचों शरीरों में लाने की व्यवस्था है। बाह्य शरीर का मोटा हो जाना, वांछनीय नहीं है, मजबूत हो जाना वांछनीय है। बाह्य शरीर के साथ प्राणमय शरीर भी विकसित होना चाहिए। प्राणबल कमजोर है, मनोबल कमजोर है तो दूसरे के प्राणबल व मनोबल के आगे आपका मन सिकुड़ जायेगा। आपकी विचारशक्ति कमजोर है तो दूसरा आपको पटा लेगा। अतः बालक के पाँचों शरीर विकसित हों इसपर ध्यान दें।

 

🚩”बापू जी ! बच्चे बहुत परेशान करते हैं। क्या करें ?”

 

🚩ज्याद टोकें नहीं किंतु उस उछलकूद को वे सुव्यवस्थित कर सकें-ऐसा उपाय करें। ज्यादा टोकेंगे तो वह छुपकर करेगा अथवा उसका मन दब जायेगा या विरोधी हो जायेगा। इस तरह उसका हित चाहते हुए भी आप अनजाने में अहित कर बैठते हैं।

 

🚩बच्चे चंचल हैं, तो उन्हें ज्यादा न रोकें-टोकें। उनकी यह अवस्था है ही उछलकूद करने की। माता-पिता ज्यादा रोकेंगे-टोकेंगे तो उनके मन में माता-पिता के लिए जो आदर, मान और स्नेह होना चाहिए वह नहीं होगा। 12 साल के दिमागवाले को बलात् 60 साल वाले जैसा रहने-करने के लिए कहें तो उसके लिए वैसा कर पाना सम्भव नहीं है।

 

🚩क्या बच्चा जैसा करना चाहे, उसे करने दिया जाए…!?

 

🚩हाँ, कुछ तो करने दिया जाय और कुछ मोड़ दिया जाय। अगर अत्यन्त अऩुचित करता है तो दबाव से अनुचित छोड़े इसकी अपेक्षा सुझाव से छोड़े… ऐसा प्रयत्न करना चाहिए ।

 

🚩ʹचाय न पियो….. कॉफी न पियो….ʹ ऐसा कहने की जगह उससे कहो , ʹकेवल दूध पियो।ʹ इनकार की अपेक्षा बच्चे को मोड़ने की कला माता-पिता को सीखनी चाहिए।

 

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