हिंदी भाषा 132 देशों में फैल चुकी है, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी अपनाई हिंदी

11 January 2024

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हिन्दी भाषा का दायरा 132 से भी अधिक देशों में फैला हुआ है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी अपने कार्यों और अनिवार्य संदेशों को हिन्दी में प्रेषित करने की घोषणा की हैं।

 

भारत विविधताओं से परिपूर्ण देश है। हमने पूरी दुनिया को ‘अनेकता में एकता’ का एक अभूतपूर्व संदेश दिया है। आज विश्व में हमारी एक अनोखी सांस्कृतिक और पारंपरिक पहचान है। हमारी यह विविधता हमारी भाषाओं और बोलियों में भी झलकती है। हमारे देश के लोग अपनी सुविधा और संस्कृति के अनुसार अपनी भाषा का चयन करते हैं, लेकिन इन भाषाओं में हिन्दी सर्वोपरि है।

 

हिन्दी एक ऐसी भाषा है, जो न केवल हमारे देश के आधे से ज्यादा भू-भाग को जोड़ती है, बल्कि यह पूरे विश्व में फैले भारतवासियों को भी एकसूत्र में पिरोने का काम करती है। हिन्दी के इन्हीं महत्वों और उपलब्धियों को देखते हुए, हम हर वर्ष 10 जनवरी को “विश्व हिन्दी दिवस” के रूप में मनाते हैं, जिसका आयोजन विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है।

 

हिन्दी केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों का एक अभिन्न अंग है। विश्व हिन्दी दिवस हमें हिन्दी के प्रति अपने समर्पण को बढ़ाने का एक महान अवसर प्रदान करता है।

 

दरअसल, यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आज हिन्दी पूरे विश्व में अपना पैर पसारती जा रही है। अनेकानेक देशों में हिन्दी अच्छी तरह बोली जा रही है और कई देशों की संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है।

 

हालांकि, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी की यात्रा अत्यंत कठिन रही है। राजनीतिक कारणों के कारण हमारी प्यारी हिन्दी, राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल नहीं कर पाई, लेकिन बीते 9 वर्षों में हिन्दी ने वैश्विक स्तर पर एक नई ऊंचाई को हासिल किया है।

 

आज के समय में हिन्दी को सामान्य जनामानस के अलावा, सरकारी विभागों, मण्डलों और समितियों में भी बढ़ावा देने के लिए गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग द्वारा अथक प्रयास किए जा रहे हैं।

 

भारत प्राचीन काल से ही विविध भाषाओं का देश रहा है और आज हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। ‘हिन्दी’ ने हमारे इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को एक-सूत्र में पिरोने का महान कार्य किया है। इसने हमारे विविध क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के अलावा, कई वैश्विक भाषाओं के साथ घुल-मिल कर पूरे विश्व में अपनी एक अनूठी पहचान बनाई है।

 

हिन्दी ने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी एक ‘संवाद भाषा’ के तौर पर समाज को पुनर्जागृत करने में एक उल्लेखनीय भूमिका निभाई। इतिहास साक्षी है कि हमारे देश में ‘स्वराज’ प्राप्ति और ‘स्वभाषा’ के आन्दोलन एक साथ चले।

 

हालांकि, हिन्दी के प्रति सम्मान और इसके प्रसार को बढ़ावा कुछ लोगों को रास नहीं आता है। उन्हें लगता है कि हम आधुनिकता केवल अंग्रेजियत से हासिल कर सकते हैं, लेकिन हमें यह समझना होगा कि किसी भी समाज में मौलिक और सृजनात्मक अभिव्यक्ति को केवल और केवल अपनी भाषा के माध्यम से ही विकसित किया जा सकता है। यह एक शाश्वत सत्य है कि हमारी अपनी मातृभाषा में भी हमारी उन्नति का मूल छिपा हुआ है।

 

हमारी भाषाएं, हमारी बोलियां, हमारी अमूल्य विरासत हैं। यदि हमें आगे बढ़ना है, तो इसे हमें साथ लेकर चलना ही होगा। इसी संकल्प के साथ बीते 9 वर्षों के दौरान भारत सरकार ने हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए आधुनिक तकनीक के माध्यम से सार्वजनिक, प्रशासन, शिक्षा और वैज्ञानिक प्रयोग के अनुकूल उपयोगी बनाने का प्रयास किया है।

 

हमें इस वास्तविकता को समझना होगा कि आज जब हमने स्वंय को वर्ष 2047 तक एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए ‘पंच प्रण’ का संकल्प लिया है, तो ऐसे में यह निश्चित है कि हिन्दी हमारे पारंपरिक ज्ञान, ऐतिहासिक मूल्यों और आधुनिक प्रगति के बीच, एक महान सेतु की भूमिका निभाएगी इसलिए हमें हिन्दी भाषा को अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रचारित और प्रसारित करने की आवश्यकता है।

 

यह देखना सुखद है कि हर वर्ष हिन्दी दिवस का आयोजन वैश्विक स्तर पर घटित हो रहा है। साथ-साथ यह समय की महती मांग भी है कि हम विश्व के जन-जन तक हिन्दी को प्रचारित और प्रसारित करने के लिए एक आंदोलन के रूप में हिंदी दिवस को एकजुट होकर सफल बनाएं।

 

हमें हिन्दी दिवस पर विश्व के वैसे सभी देशों में विविध प्रकार के आयोजनों को शामिल करना होगा, जहां भारतवंशी जहां अधिकाधिक हैं साथ ही, हमें आज लॉर्ड मैकाले द्वारा भारत पर थोपी गई उस शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने की भी आवश्यकता है, जो सामाजिक और सांस्कृतिक विरासतों को सदियों से धूल-धूसरित कर रहे हैं।

 

इसके लिए हमें एकजुट होकर हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के उत्थान और विकास के लिए एक जन-आंदोलन को अंज़ाम देते हुए, अंग्रेज़ियत से मुक्त पाने की कोशिश करने होगी, क्योंकि एक विदेशी भाषा को अंगीकार कर हम चाहें जितनी भी आर्थिक प्रगति कर लें, लेकिन सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता हमें अपनी भाषाओं से ही हासिल हो सकती है। अंत में, समस्त भारतवासियों को विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।

 

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