क्या आप इतने महान क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के के बारे में जानते हैं ?

17 February 2024

 

अगर बात करे भारतीय स्वतंत्रता की क्रांति और उन क्रांतिकारियों की जिनकी वजह से देश को आजादी मिली तो इतिहास की रेत में शायद हज़ारों नाम दबे मिले। पर हम सिर्फ कुछ नामों से ही रु-ब-रु हुए हैं। वैसे तो भारत माँ के इन सभी सपूतों के बारे में जानकारी सहेजने की कोशिश जारी है ताकि आने वाली हर पीढ़ी इनके बलिदान को जान-समझ सके।

ऐसा ही एक महान क्रांतिकारी और भारत माँ का सच्चा बेटा था वासुदेव बलवंत फड़के! फड़के ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले भारत के प्रथम क्रान्तिकारी थे। उनका जन्म 4 नवंबर, 1845 को महाराष्ट्र के रायगड जिले के शिरढोणे गांव में हुआ था।

साल 1857 की क्रांति की विफलता के बाद एक बार फिर भारतीयों में संघर्ष की चिंगारी फड़के ने ही जलाई थी।

वासुदेव बलवन्त फड़के बचपन से ही बड़े तेजस्वी और बहादुर बालक थे। उन्हें वनों और पर्वतों में घूमने का बड़ा शौक़ था। कल्याण और पुणे में उनकी शिक्षा पूरी हुई। फड़के के पिता चाहते थे कि वह एक व्यापारी की दुकान पर दस रुपए मासिक वेतन की नौकरी कर लें। लेकिन फड़के ने यह बात नहीं मानी और मुम्बई आ गए।

 

उन्होंने 15 साल पुणे के मिलिट्री एकाउंट्स डिपार्टमेंट में नौकरी की। इस सबके दौरान फड़के लगातार अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के सम्पर्क में रहे। उन पर खास प्रभाव महादेव गोविन्द रानाडे का था। फड़के के मन में पहले ही ब्रिटिश राज के खिलाफ बग़ावत के बीज पड़ चुके थे।

 

ऐसे में एक और घटना हुई और इस घटना ने फड़के के पुरे जीवन को ही बदल दिया। साल 1871 में, एक शाम उनकी माँ की तबियत खराब होने का तार उनको मिला। इसमें लिखा था कि ‘वासु’ (वासुदेव बलवन्त फड़के) तुम शीघ्र ही घर आ जाओ, नहीं तो माँ के दर्शन भी शायद न हो सकेंगे।

 

इस तार को पढ़कर वे विचलित हो गये और अपने अंग्रेज़ अधिकारी के पास अवकाश का प्रार्थना-पत्र देने के लिए गए। किन्तु अंग्रेज़ तो भारतीयों को अपमानित करने के लिए तैयार रहते थे। उस अंग्रेज़ अधिकारी ने उन्हें छुट्टी नहीं दी, लेकिन फड़के दूसरे दिन अपने गांव चले आए।

पर गांव जाकर देखा कि माँ तो अपने प्यारे वासु को देखे बिना ही इस दुनिया को छोड़ गयीं। इस बात का उनके मन पर बहुत आघात हुआ और उन्होंने तभी वह अंग्रेजी नौकरी छोड़ दी।

 

देश में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर उन्होंने भी ब्रिटिश राज के खिलाफ जंग की तैयारी शुरू कर दी। उन्हें देशी राज्यों से कोई सहायता नहीं मिली तो फड़के ने शिवाजी का मार्ग अपनाकर आदिवासियों की सेना संगठित करने की कोशिश शुरू की।

 

साल 1879 में उन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दी। उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में घूम-घूमकर नवयुवकों से विचार-विमर्श किया, और उन्हें संगठित करने का प्रयास किया।  महाराष्ट्र की कोळी, भील तथा धांगड जातियों को एकत्र कर उन्होने ‘रामोशी’ नाम का क्रान्तिकारी संगठन खड़ा किया। अपने इस मुक्ति संग्राम के लिए धन एकत्र करने के लिए उन्होने धनी अंग्रेज साहुकारों को लूटा।

 

महाराष्ट्र के सात ज़िलों में वासुदेव फड़के की सेना का ज़बर्दस्त प्रभाव फैल चुका था। जिससे अंग्रेज़ अफ़सर डर गए थे। इस कारण एक दिन बातचीत करने के लिए वे विश्राम बाग़ में इकट्ठा हुए। वहाँ पर एक सरकारी भवन में बैठक चल रही थी।

 

13 मई, 1879 को रात 12 बजे वासुदेव बलवन्त फड़के अपने साथियों सहित वहाँ आ गए। अंग्रेज़ अफ़सरों को मारा तथा भवन को आग लगा दी। उसके बाद अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने पर पचास हज़ार रुपए का इनाम घोषित किया। किन्तु दूसरे ही दिन मुम्बई नगर में वासुदेव के हस्ताक्षर से इश्तहार लगा दिए गए कि जो अंग्रेज़ अफ़सर ‘रिचर्ड’ का सिर काटकर लाएगा, उसे 75 हज़ार रुपए का इनाम दिया जाएगा। अंग्रेज़ अफ़सर इससे और भी बौखला गए।

 

फड़के की सेना और अंग्रेजी सेना में कई बार मुठभेड़ हुई, पर उन्होंने अंग्रेजी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। लेकिन फड़के की सेना का गोला-बारूद धीरे-धीरे खत्म होने लगा। ऐसे में उन्होंने कुछ समय शांत रहने में ही समझदारी मानी और वे पुणे के पास के आदिवासी इलाकों में छिप गये।

 

20 जुलाई, 1879 को फड़के बीमारी की हालत में एक मंदिर में आराम कर रहे थे। पर किसी ने उनके यहाँ होने की खबर ब्रिटिश अफसर को दे दी। और उसी समय उनको गिरफ्तार कर लिया गया। उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी।

 

लेकिन एक बहुत ही विख्यात वकील महादेव आप्टे ने उनकी पैरवी की। जिसके बाद उनकी मौत की सजा को कालापानी की सजा में बदल दिया गया और उन्हें अंडमान की जेल में भेजा गया। 17 फरवरी, 1883 को कालापानी की सजा काटते हुए जेल के अंदर ही देश का यह वीर सपूत बलिदान हो गया।

 

साल 1984 में भारतीय डाक सेवा ने उनके सम्मान में एक पोस्टल स्टैम्प भी जारी की। दक्षिण मुंबई में उनकी एक मूर्ति की स्थापना भी की गयी।

देश के इस महान क्रांतिकारी को कोटि-कोटि नमन!

 

* Follow on*

 

Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/

 

Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg

 

Twitter:

twitter.com/AzaadBharatOrg

 

Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan

 

http://youtube.com/AzaadBharatOrg

 

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Translate »