05 July 2025
चातुर्मास महात्म्य: एक आध्यात्मिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण
(Chaturmas Mahatmya – Importance, Scientific and Spiritual Significance in Hindu Culture)
प्रस्तावना
हिंदू धर्म में चातुर्मास (चार महीनों की अवधि) का विशेष महत्व है। यह अवधि आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) तक होती है। इसे देवताओं की योगनिद्रा का काल माना गया है।
इस अवधि में धार्मिक, मानसिक और शारीरिक साधना को विशेष प्राथमिकता दी जाती है।
चातुर्मास की धार्मिक मान्यता
वेद और पुराणों के अनुसार, जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं, तब यह काल आरंभ होता है। इस समय सभी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ आदि स्थगित किए जाते हैं।
स्कंद पुराण:
“चातुर्मास्यं हि देवस्य विष्णोर्निद्रायै कल्पितम्।
तस्मात् कर्तव्यमेवैतच्चातुर्मास्यव्रतम् द्विजाः॥”
(अर्थ: यह चातुर्मास भगवान विष्णु की योगनिद्रा का समय है, अतः इसका पालन आवश्यक है।)
संत-महात्मा इस काल में एक ही स्थान पर रहते हैं और प्रव्रज्या नहीं करते। वे सत्संग, ध्यान, सेवा और साधना में लीन रहते हैं।
चातुर्मास का आध्यात्मिक महत्व
- व्रत उपवास: अन्न, नमक, प्याज, लहसुन आदि का त्याग।
- सत्संग व स्वाध्याय: गीता, रामायण, भागवत का श्रवण।
- ध्यान व साधना: मानसिक शुद्धि हेतु।
- दान व सेवा: अन्नदान, गौसेवा, गरीबों की सेवा।
♀️ इस काल में किया गया जप, तप व सेवा अन्य समय से कई गुना फलदायक होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
भारतीय ऋषियों ने ऋतु परिवर्तन को ध्यान में रखकर यह काल निर्धारित किया।
- ❇️ वर्षा ऋतु में पाचन कमजोर होता है — उपवास व हल्का भोजन उपयोगी।
- ❇️ कीटाणुओं का प्रसार — प्याज, मांस, शराब आदि का त्याग स्वास्थ्यवर्धक।
- ❇️ यात्रा में रोग फैलने की आशंका — एक स्थान पर रुकना सुरक्षात्मक उपाय।
निष्कर्ष
चातुर्मास केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, यह जीवन को शुद्ध करने का अवसर है। जैसे वर्षा धरती को शुद्ध करती है, वैसे ही यह काल मन और आत्मा को निर्मल करता है।
अंतिम सूत्र:
“संयम ही साधना का मूल है और चातुर्मास संयम की साधना का समय है।”
सामाजिक व पारिवारिक पक्ष