आजाद भारत
Date: 06 July 2025
देवशयनी एकादशी (आषाढ़ी एकादशी): धर्म, विज्ञान और महात्म्य
हिंदू धर्म की परंपराएं केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि प्रकृति, ब्रह्मांड और मानव मन के गहरे रहस्यों की कुंजी भी हैं। ऐसी ही एक रहस्यमयी और गहन तिथि है — देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ी एकादशी या हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
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देवता की नींद: एक आध्यात्मिक प्रतीक
“भगवान सो गए” — यह प्रतीक है आत्मा के जागरण का। इस एकादशी से चातुर्मास आरंभ होता है जो साधना, ब्रह्मचर्य और मौन का समय है।
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वामन अवतार और राजा बलि की कथा
भगवान विष्णु का वामन अवतार, राजा बलि का समर्पण और ब्रह्मांडीय प्रतीकों की अद्भुत कथा — यह दर्शाता है कि पूर्ण समर्पण पर ईश्वर भी भक्त के अधीन हो जाते हैं।
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चातुर्मास: आत्मा का ऋतु परिवर्तन
देवशयनी एकादशी से देवोत्थानी एकादशी तक का काल चातुर्मास कहलाता है। यह समय शारीरिक विश्राम नहीं, चेतना के शुद्धिकरण का होता है।
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चावल का त्याग: धार्मिक आस्था या विज्ञान?
एकादशी के दिन चावल न खाने का कारण आयुर्वेद और विज्ञान दोनों से जुड़ा है। यह शरीर को हल्का, मन को सजग और ध्यान में सहायक बनाता है।
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वेदों की दृष्टि में एकादशी
यजुर्वेद में एकादशी को ऊर्जा संचय का दिन बताया गया है। उपवास, जप और ध्यान इस दिन ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने का साधन हैं।
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लोक भक्ति की धारा: पंढरपुर वारी
महाराष्ट्र में वारकरी संतों की पंढरपुर यात्रा, विठोबा की भक्ति और आत्मा के विराट प्रेम का उत्सव — यह चलती-फिरती साधना का रूप है।
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अंतर्नाद का जागरण: जब देवताओं का विश्राम होता है, तब आत्मा जागती है
देवशयनी एकादशी केवल त्यौहार नहीं, एक आत्मिक आमंत्रण है। यह वह क्षण है जब बाहरी देवता सोते हैं और भीतर परमात्मा जागता है।
“जब बाहरी देवता विश्राम करते हैं, तब आपकी आत्मा के द्वार पर परमात्मा दस्तक देता है — क्या आप उसे सुनने को तैयार हैं?”
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