19 August 2024
भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा के लिए फूहड़ TV धारावाहिकों का बहिष्कार आवश्यक
भारतीय संस्कृति, जिसे “भाई-बहन संस्कृति” के रूप में भी जाना जाता है, हमारी सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें परिवार के हर सदस्य के प्रति सम्मान, प्रेम, और आदर का विशेष स्थान होता है। भाई-बहन का रिश्ता भारतीय संस्कृति में स्नेह, देखभाल, और आपसी जिम्मेदारी का प्रतीक है। यह रिश्ता केवल खून का नहीं, बल्कि एक भावना का है जो पूरे समाज में सद्भाव और सहयोग का संदेश फैलाता है।
भाई-बहन संस्कृति और उसके मूल्य:
रिश्तों में सम्मान: भारतीय समाज में, भाई-बहन का रिश्ता अत्यधिक महत्व रखता है। इसमें एक-दूसरे के प्रति गहरा सम्मान और स्नेह होता है, जो पारिवारिक एकता को मजबूत करता है। यह रिश्ता न केवल परिवार की नींव को मजबूत करता है, बल्कि समाज में भी आपसी सहयोग और समझ को बढ़ावा देता है।
– परिवार की मजबूती: भाई-बहन का रिश्ता परिवार की मजबूती का एक प्रमुख आधार है। भाई अपनी बहन की रक्षा करता है और बहन अपने भाई की देखभाल करती है। यह एक ऐसा रिश्ता है जो जीवन के हर पड़ाव पर साथ देता है, चाहे कोई भी परिस्थिति हो। इस रिश्ते का महत्व राखी जैसे त्योहारों में विशेष रूप से दिखता है, जहाँ भाई अपनी बहन की सुरक्षा का वचन देता है।
– सामाजिक संरचना का आधार: भाई-बहन संस्कृति भारतीय समाज की संरचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह संस्कृति पारिवारिक एकता को बढ़ावा देती है और समाज को एक साथ जोड़े रखने में मदद करती है। हमारे समाज में यह विश्वास किया जाता है कि मजबूत परिवार ही एक मजबूत समाज का निर्माण करते हैं।
धारावाहिकों का नकारात्मक प्रभाव:
आजकल टीवी धारावाहिकों ने भारतीय समाज में एक गहरी और नकारात्मक छाप छोड़ी है। यह धारावाहिक न केवल हमारे पारिवारिक मूल्यों को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि हमारे समाज के नैतिक आधार को भी हिला रहे हैं। भारतीय संस्कृति, जो हमेशा से अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और पारिवारिक मूल्यों के लिए जानी जाती रही है, अब इन धारावाहिकों की वजह से खतरे में है।
आजकल के अधिकांश धारावाहिकों में अवैध संबंधों और अनैतिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन कहानियों में रिश्तों की पवित्रता को तोड़ा जा रहा है और पारिवारिक संबंधों को विकृत रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। जहाँ एक ओर, बच्चे अपनी माँ की दूसरी शादी की तैयारी में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर, पिता का ध्यान किसी और महिला पर केंद्रित है। ऐसी कहानियाँ समाज के ताने-बाने को कमजोर कर रही हैं और एक विकृत विचारधारा को बढ़ावा दे रही हैं।
यह केवल पारिवारिक संबंधों तक ही सीमित नहीं है। आधुनिकता के नाम पर, इन धारावाहिकों ने नैतिकता और शीलता की सभी सीमाओं को पार कर दिया है। इनके माध्यम से समाज में बेशर्मी और अनैतिकता को सामान्य बना दिया गया है। धारावाहिकों के निर्माता TRP की लालच में ऐसे विषयों को परोस रहे हैं जो न केवल भारतीय समाज के मूल्यों को धूमिल कर रहे हैं, बल्कि नई पीढ़ी को भी गलत दिशा में ले जा रहे हैं।
इसलिए, यह आवश्यक है कि हम ऐसे धारावाहिकों का बहिष्कार करें जो भारतीय पारिवारिक मूल्यों का विध्वंस कर रहे हैं। हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ऐसे सीरियलों को अपने घरों में जगह नहीं देंगे। अगर हम समय रहते नहीं जागे, तो हमारी भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्य पूरी तरह से नष्ट हो सकते हैं।
अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर यह निर्णय लें कि हम उन धारावाहिकों को नहीं देखेंगे जो हमारे समाज और संस्कृति को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं। हमारे पारंपरिक मूल्य और रीति-रिवाज हमारी धरोहर हैं, और हमें उन्हें बचाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। ऐसे धारावाहिकों का बहिष्कार कर हम न केवल अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और नैतिक समाज का निर्माण भी करेंगे।
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