भादवे का घी

18 August 2024

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भादवे का घी

 

भारतीय देसी गाय का घी, विशेष रूप से भाद्रपद मास में प्राप्त भादवे का घी, एक अनमोल वस्तु है। भाद्रपद के आते ही, घास पक जाती है जो वास्तव में अत्यंत दुर्लभ औषधियाँ होती है। इनमें धामन,जो गायों को बेहद प्रिय होता है,खेतों और मार्गों के किनारे उगता है। सेवण और गंठिया भी इन घासों में शामिल है।मुरट,भूरट,बेकर,कण्टी,ग्रामणा, मखणी,कूरी,झेर्णीया,सनावड़ी,चिड़की का खेत,हाडे का खेत,लम्प जैसी वनस्पतियाँ इस समय पककर लहलहाने लगती है।

 

यदि समय पर वर्षा हुई हो,तो ये घासें रोहिणी नक्षत्र की तप्त से संतृप्त उर्वरकों से तेजी से बढ़ती है।इन घासों में विचरण करती गायें, पूंछ हिला-हिलाकर चरती रहती है और सफेद बगुले भी उनके साथ इतराते हुए चलते है। यह दृश्य अत्यंत स्वर्गिक होता है।

 

जब इन जड़ी बूटियों पर दो शुक्ल पक्ष बीत जाते है, तो चंद्रमा का अमृत इनमें समा जाता है, जिससे इनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है।गायें कम से कम 2 कोस चलकर,घूमते हुए इन्हें चरकर शाम को लौटती है और रातभर जुगाली करती है। इस जुगाली के दौरान वे अमृत रस को अपने दूध में परिवर्तित करती है।यह दूध अत्यंत गुणकारी होता है और इससे बना दही भी अत्यंत पीलापन लिए नवनीत निकलता है।

 

5 से 7 दिनों में एकत्र मक्खन को गर्म करके घी बनाया जाता है, जिसे भादवे का घी कहते है। इस घी में अतिशय पीलापन होता है और ढक्कन खोलते ही 100 मीटर दूर तक इसकी मादक सुगंध हवा में तैरने लगती है।

 

भादवे का घी मृतकों को जीवित करने के अलावा सब कुछ कर सकता है। इसे अधिक मात्रा में खा सकते है, कम हो तो नाक में चुपड़ सकते है, हाथों में लगाकर चेहरे पर मल सकते है, बालों में लगा सकते है, दूध में डालकर पी सकते है, सब्जी या चूरमे के साथ खा सकते है। बुजुर्गों के घुटनों और तलुओं पर मालिश कर सकते है। गर्भवतियों के खाने का मुख्य पदार्थ यही था।

 

इस घी को बिना किसी अतिरिक्त चीज के इस्तेमाल किया जाता है। यह औषधियों का सर्वोत्तम सत्व होता है। हवन, देवपूजन और श्राद्ध करने से यह अखिल पर्यावरण,देवता और पितरों को तृप्त कर देता है।

 

मारवाड़ में इस घी की धाक थी। कहा जाता है कि इसे सेवन करने वाली विश्नोई महिला 5 वर्ष के उग्र सांड की पिछली टांग पकड़ लेती थी और वह चूं भी नहीं कर पाता था। एक अन्य घटना में, एक व्यक्ति ने एक रुपये के सिक्के को केवल उँगुली और अंगूठे से मोड़कर दोहरा कर दिया था।

 

आधुनिक विज्ञान घी को वसा के रूप में परिभाषित करता है,जबकि पारखी लोग यह पहचान लेते थे कि यह फलां गाय का घी है।यही घी था,जिसके कारण युवा जोड़े कठोर परिश्रम करने के बावजूद थकते नहीं थे। इसमें इतनी ताकत होती थी कि सिर कटने पर भी धड़ लड़ते रहते थे।

 

घी को घड़ों या घोड़े की चर्म से बने विशाल मर्तबानों में इकट्ठा किया जाता था, जिन्हें ‘दबी’ कहते थे। घी की गुणवत्ता और भी बढ़ जाती थी यदि गाय स्वयं गौचर में चरती, तालाब का पानी पीती और मिट्टी के बर्तनों में बिलौना किया जाता हो।

 

देसी घी की पहचान के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते है:

 

हाथ से परीक्षण: हाथ को उल्टा करके उसमें घी लगाएं और उंगलियों को रगड़ें। अगर घी में दाने महसूस होते है, तो यह नकली हो सकता है।

 

आयोडीन परीक्षण: एक चम्मच घी में चार-पांच बूंदें आयोडीन की मिलाएं। अगर रंग नीला हो जाता है, तो इसका मतलब घी में उबले आलू की मिलावट है।

 

उबालकर परीक्षण: मार्केट से खरीदे हुए घी में से चार-पांच चम्मच घी निकाले और उसे किसी बर्तन में डालकर उबाले। फिर इस बर्तन को लगभग 24 घंटे के लिए अलग रख दें। अगर 24 घंटे बाद भी घी दानेदार और महकदार हो, तो घी असली है। यदि ये दोनों लक्षण गायब है, तो घी नकली हो सकता है।

 

नमक और हाइड्रोक्लोरिक एसिड का परीक्षण: एक बर्तन में दो चम्मच घी, 1/2 चम्मच नमक और एक चुटकी हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाएं। इस मिश्रण को 20 मिनट के लिए अलग रख दें। 20 मिनट बाद, घी का रंग चेक करें। यदि घी ने कोई रंग नहीं बदला है, तो घी असली है। लेकिन अगर घी लाल या किसी अन्य रंग का हो गया है, तो समझें कि घी नकली हो सकता है।

 

पानी में घी का परीक्षण: एक ग्लास में पानी भरें और एक चम्मच घी उसमें डालें। अगर घी पानी के ऊपर तैरने लगे, तो यह असली है। अगर घी पानी के नीचे बैठ जाता है, तो यह नकली हो सकता है।

 

आज भी वही गायें, वही भादवे और वही घासें मौजूद है। यदि इस महान रहस्य को जानने के बावजूद यह व्यवस्था भंग हो जाती है, तो किसे दोष दें? जब गाय नहीं होगी, तो घी कहां होगा, यह एक विचारणीय प्रश्न है।

 

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