21 March 2024
जोधपुर हाईकोर्ट का ड्रामे का 11 मार्च का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। हिंदू संत आशारामजी बापू की मरणासन्न स्थिति में भी हाईकोर्ट की व्यवस्था और उसके बाबू केवल भारत के संत आशारामजी का ही नहीं बल्कि उनके 12 करोड़ से अधिक शिष्यों का भी अपनी कार्यशैली से अपमान कर रहे हैं। हाईकोर्ट के बाबू की गंभीर लापरवाही है कि किसी याचिका की जगह दूसरी याचिका कम्प्यूटर में फीड कर दी, वो भी उस महापुरुष की जो गंभीर हृदयरोगी है।
आपको बता दे कि बापू आशारामजी को 3 बार हार्ट अटैक आ चुका है। ऐसी स्थिति में कोई और मरीज रहता है तो अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर कह देता है, सोरी आप 30 मिनट पहले आ जाते तो शायद मरीज की जान बच जाती। जहां मिनटों की कीमत होनी चाहिये, वहां घंटों तो ठीक है, दिनों की कीमत नहीं हो रही। ऐसी गंभीर हालत में कभी सुप्रीम कोर्ट तो कभी हाईकोर्ट इधर से उधर भटका रहे हैं। खुद कोर्ट की गलतियों का खामियाजा भी मरीज ही भुगतने को मजबूर हैं।
जोधपुर हाईकोर्ट ने 11 तारीख को डबल बेंच लगाकर भी पता नहीं क्या प्रदर्शन करने की कोशिश की। बापू आशारामजी ने याचिका में आयुर्वेदिक इलाज ही तो मांगा था। उस याचिका में जो पेज लगाये गये हाईकोर्ट के बाबू ने, वो पेज ही बदल दिये। उसके बाद बापू आशारामजी की ओर से लगे वकील ने अगली तारीख मांगी उसी याचिका को संशोधित करने के लिये तो भी उसे खारिज कर दिया। जबकि सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार ने एक केस में टाइपिंग की ग़लती के नाम पर पूरे का पूरा जवाब पेश करने के लिये समय ले लिया था और पूरा जबाब नया टाईप करके कोर्ट में दिया था।
न्यायालय जनता को न्याय देने के नाम पर बनाये गये हैं। न्यायाधीशों के वेतन से लेकर आर्डर सीट के कागज तक का खर्च जनता के उस खून पसीने की कमाई से आता है, जो प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से टैक्स के रूप में सरकारी खजाने में जमा होता है। उस पर अगर भारत के 12 करोड़ लोगों के देश-भर में प्रदर्शन, देश के जाने-माने सुप्रीम कोर्ट के वकील हाईकोर्ट की डबल बेंच से एक गंभीर हृदयरोगी के लिये आयुर्वेदिक इलाज की याचना या प्रार्थना कर रहे हैं तो उन वकीलों को न्यायाधीशों द्वारा कुत्तों की तरह दुत्कारा जा रहा है।
क्या यह न्याय है या अन्याय भारत की जनता खुद ही फैसला करे,क्योंकि भविष्य में आपके परिवार का कोई सदस्य भी इसी तरह झूठे केस में फंसकर जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा होगा तो, इस तरह की न्याय व्यवस्था में आप कितना पैसा, कितने वकील और कितना धैर्य रख पायेंगे ? क्या आपको नहीं लगता बाबा राम रहीम को बार बार पैरोल इस लिये दी जा रही है कि कहीं सरदार इंदिरा गांधी कांड न दोहरा दें? क्या इस देश के हिन्दू और सनातनी लोगों को देश की निचली अदालतें, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट नपुंसक समझती है ? – सैनिक गर्जना समाचार पत्र
आपको बता दे कि जोधपुर हाईकोर्ट में बापू आशारामजी को महाराष्ट्र पुणे स्थित माधव बाग अस्पताल में इलाज के लिए अपील पर 20 मार्च को सुनवाई हुई उसमे भी महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट में बताया कि हम लो एंड ऑर्डर नही संभाल सकते हैं। इसलिए इलाज के लिए कोर्ट ने मना कर दिया, इससे तो साफ होता है की कोर्ट और सरकार मिली भगत है, क्योंकी हिंदू संत आशाराम बापू की उम्र 87 वर्ष की है, 11 साल से जेल में रहने से मूलभूत सुविधाएं नही मिलने पर आज उनके शरीर में गंभीर बीमारियां हो गई हैं। फिर भी उनको आयुर्वेद इलाज के लिए भी जमानत नही मिल पा रही हैं,ये कैसा कानून और सरकार है ?
बस उनका कसूर यही है कि वे हमेशा जनता के पक्ष लेते है, सरकार के गलत निर्णयों पर टोकते है, जिसके कारण सरकार नही चाहती है की बापू बाहर आएं और मीडिया और न्यायलय किसके इशारे पर कार्य कर रही है आप सभी को अच्छे से पता है, बस कहने का तात्पर्य यही है कि बापू आशारामजी ने 70 साल तक समाज, राष्ट्र और संस्कृती की सेवा किया , कांग्रेस सरकार के समय में जब कोई हिंदुत्व के लिए बोलता नही था, उस समय बापू ने लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई, करोड़ो लोगों को में सनातन धर्म की लो जगाई, करोड़ो लोगों के व्यसन और व्यभिचार छुड़ाए, मिशनरी और विदेशी कंपनियों को उखाड़ फेके और उनके पास निर्दोष होने के कई प्रमाण है, फिर जूठा केस लगाकर प्रताड़ित किया जा रहा है और आज तक जमानत तक नही मिल रही ये कैसा न्याय हैं ? जबकि नेता अभिनेता और आतंकवादियों तक को रिहा किया जा रहा हैं।
बापूजी के अनुकूल आयुर्वेद इलाज के लिए देशभर में पिछले 2 महीनो से महिला मंडलों द्वारा लगातार रेलियां निकाली गई है फिर भी 87 वर्षीय हिंदू संत श्री आशारामजी बापूजी को न्याय तो दूर बेल तक नही मिल रही है,ये इस सदी का सबसे बड़ा अन्याय है।
करोड़ो लोगों की मांग है कि सरकार बापू आशारामजी को शीघ्र रिहा करवाए।
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