27 September 2018
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 के बाद अब धारा 497 पर फैसला सुनाया गया है । इस धारा के अंतर्गत व्यभिचार करते हुए कोई व्यक्ति पाया जाता तो दण्डित किया जा सकता था । इस धारा को हटाने के लिए हमारे देश में एक विशेष गुट कार्य कर रहा है । यह गुट देशवासियों को पशुतुल्य आचरण करने की छूट देना चाहता है । विडंबना यह है कि इस गिरोह के सुनियोजित षड़यंत्र को जानते हुए भी हम एकजुट होकर इनका विरोध नहीं कर पा रहे हैं । पिछले 15-20 वर्षों में इस गिरोह की हरकतें अनेक प्रकार से सामने आ रही हैं । जैसे मीडिया के माध्यम से बढ़ी अश्लीलता, लिव-इन-रिलेशनशिप, समलैंगिकता, पिंजरातोड़, विवाहेत्तर सम्बन्ध, विवाहपूर्व सम्बन्ध, विद्यालयों में सेक्स एजुकेशन । जिसके परिणाम निर्भया बलात्कार, छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाओं से बलात्कार, बच्चों का यौन शोषण, सनकी आशिक के नाम पर लड़कियों पर हमला, एसिड अटैक, युवाओं में बढ़ते तलाक, कोर्ट-केस आदि के रूप में सामने आ रहे हैं । ऐसे समाज में परिवार समाप्त हो जाएंगे । सभी पशुतुल्य हो जाएंगे । समाज में विघटन हो जाएगा । यही विदेशी ताकतें चाहती हैं ।
हमारे देश की संस्कृति के प्राण ही संयम और सदाचार रूपी आचरण में हैं । समलैंगिकता और स्वछंद व्यभिचार पर खुली छूट इसी सदाचार रूपी आचरण के विपरीत व्यवहार हैं । इसका परिणाम न केवल सामाजिक है अपितु आध्यात्मिक भी है । आत्म संयम धर्म का प्रदाता ईश्वर है । वेद इसी सन्देश को बड़े भव्य रूप से समझाते हैं ।
After Section 377, removal of Section 497 is a well-planned conspiracy … |
मनुष्य आत्म संयम धर्म की प्राप्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है ।
हे (ईश्वर) मित्रा वरुणो आपके बताये हुए सत्य मार्ग से चलकर नौका से नदी की तरह पापरूपी नदी को हम तैर जाएँ। – ऋग्वेद 7/65/3
इसी प्रकार वेद पाप रूपी आचरण से दूर रहने के लिए और चरित्र रक्षा के लिए उपदेश इस प्रकार से देते हैं: -यजुर्वेद 4/28 – हे ज्ञान स्वरुप प्रभु ! मुझे दुश्चरित्र या पाप के आचरण से सर्वथा दूर करो तथा मुझे पूर्ण सदाचार में स्थिर करो ।
ऋग्वेद 8/48/5-6 – वे मुझे चरित्र से भ्रष्ट न होने दें ।
वेद सामान्य व्यवहार में भी पापकर्म से बचने का उपदेश देते हैं :-
यजुर्वेद 3/45- ग्राम, वन, सभा और वैयक्तिक इन्द्रिय व्यवहार में हमने जो पाप किया है, उसे हम अपने से अब सर्वथा दूर कर देते हैं ।
यजुर्वेद 20/15-16– दिन, रात्रि, जागृत और स्वप्न में हमारे अपराध और दुष्ट व्यसन से हमारे अध्यापक, आप्त विद्वान, धार्मिक उपदेशक और परमात्मा हमें बचाएँ ।
वेद मनुष्य को मर्यादा पूर्ण जीवन यापन करने का उपदेश देते हैं :-
ऋग्वेद 10/5/6- ऋषियों ने सात मर्यादाएं बनाई हैं । उनमें से जो एक का भी उल्लंघन करता है, वह पापी है । चोरी, व्यभिचार, श्रेष्ठ जनों की हत्या, भ्रूण हत्या, सुरापान, दुष्ट कर्म को बार-बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लिए झूठ बोलना ।
वेद मन से पापकर्म की इच्छा से भी रक्षा के लिए ईश्वर को प्रार्थना का उपदेश देते हैं :-
अथर्ववेद 6/45/1- हे मेरे मन के पाप ! मुझसे बुरी बातें क्यों करते हो ? दूर हटों, मैं तुझे नहीं चाहता ।
अथर्ववेद 11/5/19 – देवताओं (श्रेष्ठ पुरुषों) ने ब्रम्हचर्य और तप से मृत्यु (दुःख) का नष्ट कर दिया है ।
वेद का सन्देश स्पष्ट है कि दुराचारी व्यक्ति कभी ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर सकता :-
ऋग्वेद 7/21/5- दुराचारी व्यक्ति कभी भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता ।
कल्पना कीजिए आप स्वयं एवं अपनी आने वाली संतति को कैसा समाज देना चाहेंगे ?
सदाचारी श्रेष्ठ उच्च आचरण वाले लोगों का समाज अथवा व्यभिचारी, चरित्रहीन, पशुतुल्य बलात्कारियों से भरा समाज । भारतवासियों को एकजुट होकर इस षड़यंत्र को नाकाम करने के लिए रणनीति बनानी चाहिए । अन्यथा देर न हो जाए । – ( लेखक : डॉ विवेक आर्य )
पाश्चात्य भोगवादी सभ्यता के दुष्प्रभाव से देश की संस्कृति का ह्रास होता जा रहा है । विदेशी चैनल, चल-चित्र, अश्लील साहित्य आदि प्रचार माध्यमों के द्वारा युवक-युवतियों को गुमराह किया जा रहा है । विभिन्न सामयिकों और समाचार-पत्रों में भी तथाकथित पाश्चात्य मनोविज्ञान से प्रभावित मनोचिकित्सक और ‘सेक्सोलॉजिस्ट’ युवा छात्र-छात्राओं को चरित्र, संयम और नैतिकता से भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं । ऊपर ये ऐसा कानून बन जाए कि व्यभिचार करना कानून अपराध नहीं है तो फिर भगवान ही रक्षा करें ।
भारतवासियों को एकजुट होकर भारतीय संस्कृति को खत्म करने वाले कानूनो का विरोध करना चाहिए ।
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व्यभिचार धारा हटाने पर पशुतुल्य जीवन हो जाएगा।*
हमारी संस्कृति के प्राण ही संयमव सदाचार हैं। व्यभिचार पर खुली छूट समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।*
कहीं षड़यंत्र के तहत तो ये धाराएं नहीं हटाई गई हैं?* https://t.co/bU5dxkFEFU