10 मार्च 2022
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हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से ना जलने का वरदान प्राप्त था,इसलिए उन्होंने प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में जा बैठी। लेकिन भगवान की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर भष्म हो गई,तभी से ये होली का त्योहार मनाने जाने लगा।
होली की बौछार लाये जीवन में बहार, वैदिक, प्राचीन एवं विश्वप्रिय होली उत्सव
यह होलिकोत्सव प्राकृतिक, प्राचीन व वैदिक उत्सव है । साथ ही यह आरोग्य, आनंद और आह्लाद प्रदायक उत्सव भी है, जो प्राणिमात्र के राग-द्वेष मिटाकर, दूरी मिटाकर हमें संदेश देता है कि हो… ली… अर्थात् जो हो गया सो हो गया।
🚩यह वैदिक उत्सव है। लाखों वर्ष पहले भगवान रामजी हो गये। उनसे पहले उनके पिता, पितामह, पितामह के पितामह दिलीप राजा और उनके बाद रघु राजा… रघु राजा के राज्य में भी यह महोत्सव मनाया जाता था। बापू भी होली खेलते हैं लाखों-लाखों प्यारे भक्तों के साथ !
पलाश का रंग, केसर, चंदन और गुलाब के फूल रगड़कर अकबर भी अपने महल में होली खेलता था लेकिन रानियों के साथ, जहाँगीर भी खेलता था और कई मुसलमान राजा भी होली का उपयोग लेते थे।
अभी अमेरिका में और अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से इस उत्सव का लाभ लोग उठाते हैं । स्पेन में लोग टमाटरों से होली खेलते हैं । लाखों टन टमाटर इकट्ठे होते हैं और ‘दे धमाधम… दे धमाधम…’ बकरियों और गायों के लिए तो भंडारा होता होगा लेकिन टमाटर की सब्जी महँगी हो जाती होगी ! लेकिन मैंने न टमाटर से और न ही रासायनिक रंगों से होली खेलना चालू किया बल्कि पलाश के फूलों से चालू किया।
सवास्थ्यप्रदायक होली
रासायनिक रंगों का तन-मन पर बड़ा दुष्प्रभाव होता है। काले रंग में लेड ऑक्साइड पड़ता है, वह किडनी को खराब करता है। लाल रंग में कॉपर सल्फेट पड़ता है, वह कैंसर की बीमारी देता है। बैंगनी रंग से दमा और एलर्जी की बीमारी होती है। सभी रासायनिक रंगों में कोई-न-कोई खतरनाक बीमारी को जन्म देने का दुष्प्रभाव है।
लकिन पलाश की अपनी एक सात्त्विकता है। पलाश के फूलों का रंग रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है। गर्मी को पचाने की, सप्तरंगों व सप्तधातुओं को संतुलित करने की क्षमता पलाश में है। पलाश के फूलों से जो होली खेली जाती है, उसमें पानी की बचत भी होती है। रासायनिक रंगों को मिटाने के लिए कई बाल्टियाँ पानी लगता है। सूखा रंग, काला रंग या सिल्वर रंग लगायें तो उसको हटाने के लिए साबुन और पानी बहुत लगता है लेकिन पलाश के फूलों के रंग के लिए न कई बाल्टियाँ पानी लगता है न कई गिलास पानी लगता है। और पलाश वृक्ष की गुणवत्ता सर्वोपरि है । पित्त और वायु मिलकर हृदयाघात (हार्ट-अटैक) का कारण बनता है लेकिन जिस पर पलाश के फूलों का रंग छिड़क देते हैं उसका पित्त शांत हो जाता है तो हार्ट-अटैक कहाँ से आयेगा ?
वायुसंबंधी 80 प्रकार की बीमारियों को भगाने की शक्ति इस पलाश के रंग में है।
इस मौसम में सुबह-सुबह 20 से 25 नीम के कोमल पत्ते और एक काली मिर्च चबा के खानेवाला व्यक्ति वर्षभर निरोग रहने का प्रमाणपत्र ले लेता है, बाहर नहीं भीतर ही । होली के बाद 20-25 दिन तक बिना नमक अथवा कम नमकवाला भोजन करना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है । इन दिनों में सर्दियोंवाला (पचने में भारी) भोजन करना वर्जित है।
होली के दिन चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य हुआ था । इन दिनों में हरिनाम कीर्तन करना-कराना चाहिए। लट्ठी-खेंच कार्यक्रम करना चाहिए, यह बलवर्धक है। नाचना, कूदना-फाँदना चाहिए जिससे जमे हुए कफ की छोटी-मोटी गाँठें भी पिघल जायें और वे ट्यूमर कैंसर का रूप न ले लें और कोई दिमाग या कमर का ट्यूमर भी न हो। तुम्हारे शरीर में जो कुछ अस्त-व्यस्तता है, वह गर्मी से तथा नाचने, कूदने-फाँदने से ठीक हो जाती है और फिर होली जले तो गर्मी का भी थोड़ा फायदा लेना, लावा का फायदा लेना और पलाश के फूलों का रंग एक-दूसरे पर छिड़क के अपने चित्त को आनंदित व उल्लसित करना।
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