साकार होता एक सपना जो आज से 50 साल पहले अमेरिका ने देखा था। और एक सपना जो आज चीन देख रहा है….भारत को टुकड़े टुकड़े करने का !

साकार होता एक सपना जो आज से 50 साल पहले अमेरिका ने देखा था।

और एक सपना जो आज चीन देख रहा है….भारत को टुकड़े टुकड़े करने का !

 

9 मार्च 2022

azaadbharat.org

पढ़िए पूरा लेख

दवितीय विश्वयुद्ध के बाद से 45 वर्षों तक शायद ही कोई अवसर आया हो जब रूस और अमेरिका की किसी वैश्विक मुद्दे पर आम सहमति बनी हो। दोनो महाशक्ति हर मौके पर अपनी ताल ठोकते रहे…चाहे चांद पर कदम हो या भारत चीन पाकिस्तान के रिश्ते तय करने हो, वियतनाम हो या फिर अफगानिस्तान…. दोनो महाशक्ति 36 के आंकड़े के साथ दुनिया के सामने खड़े रहे और यूँ 1945 से चले शीत युद्ध के साए में 46 सालों तक तीसरी दुनिया के देश अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए किसी एक का दामन पकड़ पीछे पीछे चलते रहे…जब तक कि दिसम्बर 1991 में रूस टुकड़े टुकड़े ना हो गया।

 

 

अकेले महाशक्ति बनकर पूरी दुनिया को हांकने के लिए यह जरूरी था कि अमेरिका रूस को छिन्न भिन्न कर दे।

 

1917 में साम्यवाद के सिद्धांत पर बने रूस को टुकड़े टुकड़े करना अमेरिका के लिए कोई मुश्किल राह न थी। पर समस्या थी रूस का बड़ा आकार।

 

आधे यूरोप और एशिया को घेरे विशाल रूस को तोड़ना आसान ना था।

 

ऐसे में 1985 में रूस के राष्ट्रपति बने मिखाइल गोर्बाचेव।

 

गोर्बाचेव ने रूस में आर्थिक क्रांति लाने का प्रयास किया।

 

अफगानिस्तान की लड़ाई में जर जर हो चुकी रूस की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए गोर्बाचेव ने साम्यवाद के छत्ते में हाथ डालने की गलती कर दी।

 

भारत की तरह सैद्धांतिक और मूल विचारों से रूस भी कभी भी एक विचारधारा को मानने वाला नहीं था। जैसे भारत में बंगाली, उड़िया, केरलिस्ट, तमिल, कश्मीरी, बिहारी, मराठी पहले हैं और भारतीय बाद में

 

ऐसे ही रूस में कम से कम 100 अलग-अलग विचारधारा के लोग शामिल थे। सोवियत संघ में कुल 15 राज्य शामिल थे, सबकी अलग अलग विचारधारा थी।

 

इनमें मध्य एशिया के मुस्लिम राज्य भी थे, जैसे उज़्बेकिस्तान, कज़ाकिस्तान, तजाकिस्तान और किर्गिज़स्तान।

 

इसके अलावा पूर्वी यूरोप के भी कुछ राज्य थे….जहां की 90 प्रतिशत आबादी ईसाई धर्म के लोगों की थी। ये देश थे लताविया, एस्टोनिया, यूक्रेन, बेलारूस और जॉर्जिया।

 

रस क्षेत्रफल के मामले में सबसे बड़ा, सबसे अमीर और सबसे ताक़तवर राज्य था।

 

🚩इन्हीं सब विविधताओं का अमेरिका और यूरोप ने फायदा उठाया।

 

लोगो और राज्यों को स्वतंत्र होने के लिए उकसाया जाने लगा।

 

घी का काम किया गोर्बाचेव की आर्थिक नीतियों ने, और अन्ततः रूस के टुकड़े टुकड़े कर दिए गए। अब अमेरिका अकेला था। अकेला सुपर पावर। एकमात्र महाशक्ति। ये तो चीन का उदय हो गया नहीं तो अभी तक तीसरी दुनिया के अधिकतर देश अमेरिका के उपनिवेश बन चुके होते।

 

अब आज के भारत और भारत में रहने वाले आज के लोगो की बात करते हैं….

 

पिछले बजट सत्र में राहुल गांधी ने संसद में एक चौंकाने वाला बयान दिया….

“भारत कोई राष्ट्र नहीं बल्कि अलग अलग राज्यों का समूह है!”

 

हम राहुल गांधी की इस सोच की प्रामाणिकता या संवैधानिकता पर प्रश्न नहीं उठाते । किंतु ये सोच उसी थ्योरी का बेस है जिस पर खड़े होकर रूस के टुकड़े टुकड़े किये गए थे।

 

भारत में भी तत्कालीन रूस की तरह सैकडों विचारधाराओं के अलग अलग लोग रहते हैं। अलग अलग राज्य हैं। अलग अलग समूह हैं।अलग अलग रीति रिवाज मानने वाले लोग हैं। अलग अलग धर्म, मजहब वाले लोग हैं। अलग अलग भाषाएं और जाति में बंटे लोग हैं।

 

य सब तो है, ठीक है। ये तत्कालीन रूस और भारत में समानता है। किंतु पिछले सात आठ वर्षों में एक और समानता ने जन्म लिया है…. बल्कि कहे तो फली फूली है। और वो है भारत का आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर बढ़ते कदम।

 

आज जब हम रूस और अमेरिका के शीत युद्ध के हालातों को याद देखते हैं तो लगभग वही परिदृश्य आज हम भारत और चीन के मध्य देख रहे है

 

अपने शानदार एवरेज प्राकृतिक मौसम और वर्तमान सरकार की बेहतर आर्थिक नीतियों के चलते पिछले 8 वर्षों में भारत चीन को हर मोर्चे पर टक्कर दे रहा है। और यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले 25 वर्षों में चीन को पछाड़ भारत को दुनिया की नम्बर एक आर्थिक महाशक्ति बनने से कोई रोक नहीं सकेगा।

 

भला यह चीन कैसे बर्दाश्त कर सकता है ?

 

इसलिए चीन ने अपनी समस्त नीतियाँ और एफर्ट्स भारत को रोकने में लगा दिए हैं। बेहतर होगा कहा जाए कि भारत को रोकने में नहीं तोड़ने में लगा दिए हैं और इसके लिए केरल से लेकर पंजाब तक, असम से लेकर बंगाल तक भारत की विभिन्न विचारधाराओं के लोगो को केंद्र के विरुद्ध भड़काया जा रहा है। कभी सिखों को सामने करके, कभी शाहीन बाग बना कर, कभी टिकैत को सड़कों पर बिठाकर तो कभी ममता बनर्जी से संविधान के तार तार करवाकर।

विदेशों से भारत को तोड़ने के अभियान चलाए जाते हैं। कभी अमेरिका की रिहाना को, तो कभी ग्रेटा थनबर्ग को भारत की लोकप्रिय सरकार की आलोचना करने के लिए मीडिया के थ्रू भारत में लांच किया जाता है।

 

“भारत तेरे टुकड़े होंगे….इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह”….

चिल्लाने वालो को विदेशों से फंडिंग की जाती है।

 

राज्यों के अधिकारों के नाम पर अलग अलग राज्यो की जनता को भड़काया जाता है।

 

कल मिलाकर बस एक चिंगारी की देर है। और चीन का सपना साकार होने में देर नहीं लगेगी कि भारत भी रूस की तरह टुकड़े टुकड़े बंट जाए।

 

और तब दिल्ली की सर्जिकल स्ट्राइक इस्लामाबाद पर नहीं…..

हैदराबाद की जयपुर पर होगी,

बंगलुरू की भोपाल पर होगी

बंगाल की बिहार पर होगी।

मराठे मारवाड़ को भेदेगें और कश्मीरियत पंजाबियत का इम्तिहान लेगी।

 

रस यूक्रेन युद्ध भारत के लिए वो आईना है जिसमें भविष्य में होने वाली घटनाओं को साफ साफ देखा जा सकता है। बस आवश्यकता है ऐसी घटनाओं को न घटित होने देने के संकल्प की।

 

 

दनिया को लग रहा होगा कि रूस एक दूसरे देश यूक्रेन को मटियामेट कर रहा है। पर ध्यान से सोचो रूस कभी रूस रहे अपनी भूमि यूक्रेन को ही जला रहा है और अमेरिका अपने 50 साल पुराने सपने को साकार होते देख खुशी में नाच रहा है।

 

कया बात है जमीं भी रूस की, माचिस भी रूस की, सड़कों पर बहता खून भी रूस का, चीखें भी रूस की, कत्ल भी रूस का और कातिल भी रूस का….पर सपना अमेरिका का।

 

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