मद्रास हाईकोर्ट : मंदिर की जमीन का केवल धार्मिक कार्यों में उपयोग होना चाहिए

08 नवंबर 2020

 
वर्तमान में देश भर में 4 लाख से अधिक मंदिरों पर सरकारी कब्जा है। एक भी चर्च या मस्जिद पर नहीं। कम से कम 15 राज्य सरकारें उन लाखों मंदिरों पर नियंत्रण रखती हैं। मंदिरों के प्रशासक नियुक्त करती है। वे जैसे ठीक समझें व्यवस्था चलाते हैं। राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार अलग। इस बीच, जैसा सरकारी विभागों में प्रायः होता है, मंदिरों के कोष और संपत्ति के मनमाने उपयोग, दुरूपयोग के समाचार आते रहते हैं।
 

 

 
आपको बता दें कि मद्रास उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि राज्य सरकार धार्मिक कार्यों के अलावा किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए मंदिर की भूमि का उपयोग नहीं कर सकती है। तमिलनाडु में दो मंदिरों की भूमि को अलग करने के संबंध में भक्तों द्वारा की गई शिकायतों का जवाब देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि मंदिर की भूमि का उपयोग केवल मंदिर के लाभकारी उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
 
उच्च न्यायालय ने यह भी माना कि तमिलनाडु में मंदिर न केवल प्राचीन संस्कृति की पहचान का स्रोत हैं बल्कि यह कला, विज्ञान और मूर्तिकला के क्षेत्र में प्रतिभा के गौरव और ज्ञान का प्रमाण भी है।
 
अदालत ने हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त विभाग को निर्देश दिया कि वह समय-समय पर रिपोर्ट दर्ज करने के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति कर सभी मंदिर भूमि की पहचान और अतिक्रमणकारियों से उनकी सुरक्षा करे।
 
हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग तमिलनाडु सरकार के विभागों में से एक है जो राज्य के भीतर मंदिर प्रशासन के प्रबंधन और विनियमन के लिए जिम्मेदार है।
 
बता दें यह मामला नीलकंरई के पास श्री शक्ति मुथम्मन मंदिर और सलेम में कोट्टई मरियम्मन मंदिर की भूमि के अतिक्रमण से संबंधित है। अदालत ने मंदिर के भूमि के अतिक्रमण के खिलाफ भक्तों द्वारा दायर कई याचिकाओं के जवाब में अपने आदेशों की घोषणा की।
 
गौरतलब है कि यह याचिका राज्य के मत्स्य विभाग द्वारा श्री शक्ति मुथम्मन मंदिर से संबंधित कुछ भूमि पर एक आधुनिक मछली बाजार, मछली भोजनालय और कार्यालय भवन विकसित करने के बाद दायर की गई थी। विभाग ने भक्तों द्वारा की गई आपत्तियों की अवहेलना की थी।
 
इसी तरह, अरुलमिघु कोट्टई मरियम्मन थिरुकोइल से संबंधित कुछ जमीन बिना किसी लिखा पढ़ी के क्षेत्रीय परिवहन विभाग को हस्तांतरित कर दी गई। साथ ही पुल बनाने के लिए मंदिर की कुछ जमीनों को राजमार्ग विभाग ने भी अपने कब्जे में ले लिया था।
 
धार्मिक संस्थानों को ठीक से बनाए रखा जाना चाहिए : मद्रास HC
 
न्यायमूर्ति आर महादेवन ने अपने आदेश में निर्देश दिया कि धार्मिक संस्थानों, विशेष रूप से मंदिरों की संपत्तियों का रखरखाव ठीक से किया जाना चाहिए। अदालत ने तमिलनाडु सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, एचआर एंड सीई डिपार्टमेंट, जो मंदिर की संपत्तियों का संरक्षक है, ने मंदिर की संपत्तियों का रखरखाव ठीक से नहीं किया, यह विषय इस विभाग के दायरे में आता है। इस तरह का रवैया बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
 
न्यायाधीशों ने मंदिर की भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया, उन्होंने मत्स्य विभाग को भी बुलाया, जिसने एचआर और सीई विभाग के साथ एक समझौते के तहत नीलकंरई के पास एक इमारत का निर्माण किया है, जिसके लिए किराया एकत्र किया जाएगा।
 
इसके अलावा न्यायमूर्ति आर महादेवन ने एचआर एंड सीई डिपार्टमेंट के आयुक्त को सभी अतिक्रमणों को वापस से हटाने और भूमि पुनः प्राप्त करने के लिए कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
 
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “एचआर और सीई विभाग भूमि की सुरक्षा के लिए एक दीवार लगाकर निर्माण शुरू करने के लिए कदम उठाएगा। मंदिर संबंधी उद्देश्यों को छोड़कर भूमि का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा। एचआर और सीई विभाग के कमिश्नर द्वारा प्राधिकृत अधिकारी मंदिरों और इसके गुणों के वित्तीय पहलुओं के संबंध में एक उचित रजिस्टर बनाए रखेगा और नियमित अंतराल पर संबंधित प्राधिकरण के समक्ष उसे दाखिल करेगा।”
 
किसी चर्च अथवा मस्जिद को सरकार कभी नहीं छूती। क्या इस से बड़ा धार्मिक अन्याय और संविधान में मौजूद ‘नागरिक समानता’ का मजाक संभव है? जो दलीलें हिन्दू मंदिरों पर सरकारी कब्जा रखने के पक्ष में दी जाती हैं, वह सब मस्जिदों, चर्चों पर भी लागू हैं। किन्तु केवल हिन्दू मंदिरों पर कब्जा है, शेष सभी समुदाय अपने-अपने धर्म-स्थान स्वयं चलाने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं। हिंदू मंदिरों को भी सरकारी नियंत्रण मुक्त करना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।
 
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