बिहार विधान परिषद सदस्य गुलाम गौस बोले भारत के सभी मुस्लिम पहले हिन्दू थे।

28 November 2022

azaadbharat.org

🚩नीतीश कुमार की पार्टी ‘जनता दल यूनाइटेड (JDU)’ के नेता और बिहार विधान परिषद सदस्य (MLC Ghulam Gaus) गुलाम गौस ने कहा कि हिंदुस्तान के सभी मुस्लिम पहले हिंदू थे।

🚩इस बात को भले कोई माने या न माने लेकिन यह सच बात है, हिंदू धर्म केवल हिंदुस्तान में ही नही बल्कि पूरे विश्व मे फैला हुआ था, क्योंकि यह सनातन धर्म हैं।

🚩मानव की उत्पत्ति के पहले से है हिन्दू धर्म

🚩हिन्दू धर्म सनातन धर्म है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत, नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसके अलावा सूरीनाम, फिजी इत्यादि में भी हैं । इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म माना जाता है।

🚩इसे ‘वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म’ भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।

🚩वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये ‘सनातन धर्म’ नाम मिलता है। ‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।

🚩सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है, जो किसी समय पूरे बृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है। विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मान्तरण के बाद भी विश्व के सभी देशों में आज भी हिन्दू धर्म के मानने वाले है।

🚩हिन्दू धर्म को दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। कुछ लोग इसे मूर्तिपूजकों, प्रकृति पूजकों या हजारों देवी-देवताओं के पूजकों का धर्म मानकर इसकी आलोचना करते हैं, कुछ लोग इसको जातिवादी धारणा को पोषित करने वाला धर्म मानते हैं, लेकिन यह उनकी सतही सोच या नफरत का ही परिणाम है।

🚩हिन्दू धर्म मानता है कि जीवन ही है प्रभु। जीवन की खोज करो। जीवन को सुंदर से सुंदर बनाओ। इसमें सत्यता, शुभता, सुंदरता, खुशियां, प्रेम, उत्सव, सकारात्मकता और ऐश्‍वर्यता को भर दो। लेकिन इन सभी के लिए जरूरी नियमों की भी जरूरत होती है अन्यथा यही सब अनैतिकता में बदल जाते हैं।

🚩कृण्वन्तो विश्वमार्यम’अर्थात सारी दुनिया को श्रेष्ठ, सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाएंगे।

🚩स्वतंत्रता : संसार में मुख्यतः दो प्रकार के धर्म हैं । एक कर्म-प्रधान दूसरे विश्वास-प्रधान। हिन्दू धर्म कर्म-प्रधान है, अहिन्दू धर्म विश्वास-प्रधान,जैन, बौद्ध, सिख ये तीनों हिन्दू धर्म के अंतर्गत हैं । इस्लाम, ईसाई, यहूदी ये तीनों अहिन्दू धर्म के अंतर्गत हैं। हिन्दू धर्म लोगों को निज विश्वासानुसार ईश्वर या देवी-देवताओं को मानने व पूजने की और यदि विश्वास न हो तो न मानने व न पूजने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है। अहिन्दू धर्म में ऐसी स्वतंत्रता नहीं है। अहिन्दू धर्म अपने अनुयायियों को किसी विशेष व्यक्ति और विशेष पुस्तक पर विश्वास करने के लिए बाध्य या विवश करता है। विद्वान व दूरदर्शी लोग भली-भांति जानते हैं कि सांसारिक उन्नति और आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति के लिए स्वतंत्र विचारों की कितनी बड़ी आवश्यकता रहती है।

🚩हिन्दू धर्म व्यक्ति स्वतंत्रता को महत्व देता है, जबकि दूसरे धर्मों में सामाजिक बंधन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लागू हैं। आप ईशनिंदा नहीं कर सकते और आप समाज के नियमों का उल्लंघन करके अपने तरीके से जीवन-यापन भी नहीं कर सकते। मनुष्यों को सामाजिक बंधन में किसी नियम के द्वारा बांधना अनैतिकता और अव्यावहारिकता है। ऐसा जीवन घुटन से भरा तो होता ही है और समाज में प्रतिभा का भी नाश हो जाता है।

🚩इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं कि हिन्दुओं ने दुनिया के कई देशों से समय-समय पर सताए और भगाए गए शरणार्थियों के समूह को अपने यहां शरण दी। समंदर के किनारे होने के कारण मुंबई और कोलकाता में जितने विदेशी समुदाय आकर रहे, उतने शायद पूरे भारत में कहीं नहीं आए होंगे। दूसरी ओर अखंड भारत का एक छोर अफगानिस्तान (गांधार) भी कई विदेशियों की युद्ध और शरणस्थली था।

🚩हिन्दुओं ने अपने देश में यूनानी, यहूदी, अरबी, तुर्क, ईरानी, कुर्द, पुर्तगाली, अंग्रेज आदि सभी को स्वीकार्य किया और उनको रहने के लिए जगह दी। जहां तक शक, हूण और कुषाणों का सवाल है की तो यह हिन्दुओं की ही एक जाति थी। हालांकि इस पर अभी विवाद है।

🚩उदारता और सहिष्णुता : सहिष्णुता का अर्थ है सहन करना और उदारता का अर्थ है खुले दिमाग और विशाल हृदय वाला। जो स्वभाव से नम्र और सुशील हो और पक्षपात या संकीर्णता का विचार छोड़कर सबके साथ खुले दिल से आत्मीयता का व्यवहार करता हो, उसे ‘उदार’ कहा जाता है। दूसरों के विचारों, तर्कों, भावनाओं और दुखों को समझना ही उदारता है। अनुदारता पशुवत होती है।

🚩अपनी रुचि, मान्यता, इच्छा, विचार, धर्म को दूसरों पर लादना, अपने ही गज से सबको नापना, अपने ही स्वार्थ को साधते रहना ही अनुदारता है। दुनिया के दूसरे धर्मों में यह प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

🚩सहिष्णुता और उदारता हिन्दू धर्म के खून में है तभी तो पिछले सैकड़ों वर्षों से उनका खून बहाया जाता रहा है। तभी तो हिन्दुओं का धर्मांतरण किया जाता रहा है। हिन्दू धर्म में उदारता और सहिष्णुता का कारण यह है कि इस धर्म में परहित को पुण्य माना गया है। न्याय और मानवता (इंसाफ और इंसानियत) को धर्म से भी ऊंचा माना गया है। न्याय और मानवता की रक्षा के लिए सबकुछ दांव पर लगा देने के लिए हिन्दुओं को प्रेरित किया जाता रहा है।

🚩यही कारण है कि इस धर्म में प्राचीनकाल से ही कभी कट्टरता नहीं रही और इस उदारता, सह-अस्तित्व और सहिष्णुता की भावना के चलते ही हिन्दुओं ने कभी भी किसी दूसरे धर्म या देश पर किसी भी प्रकार का कोई आक्रमण नहीं किया। इसका परिणाम यह रहा कि आक्रांताओं ने समय-समय पर गुलाम बनाकर हिन्दुओं को धर्म, जाति और पंथों में बांट दिया, उनका कत्लेआम किया गया और उन्हें उनकी ही भूमि से बेदखल कर दिया गया।

🚩हिन्दुओं ने कभी किसी राष्ट्र पर आगे रहकर आक्रमण नहीं किया और न ही किसी राज्य या राष्ट्र को अपने अधीन किया जबकि इसके विपरीत यहां पर आक्रमणकारी आए और उन्होंने रक्त की नदियां बहाकर इस देश की संस्कृति को खंडित कर दिया। भारत की कभी भी अपने राज्य विस्तार की इच्छा नहीं रही तथा सभी धर्मों को अपने यहां फलते-फूलने की जगह दी।

🚩हिन्दू धर्म में होली जहां रंगों का त्योहार है वहीं दीपावली प्रकाश का त्योहार है। नवरात्रि में जहां नृत्य और व्रत को महत्व दिया जाता है, वहीं गणेश उत्सव और श्राद्ध पक्ष में अच्छे-अच्छे पकवान खाने को मिलते हैं।

🚩उन्होंने कभी उपनिषदों या गीता का अध्ययन नहीं किया। आलोचना का अधिकार उसे होना चाहिए, जिसने सभी धर्मों का गहन रूप से अध्ययन किया हो। समालोचना सही है लेकिन धर्मान्तरण करने हेतु आलोचना क्षमायोग्य नहीं मानी जाएगी।

🚩हिन्दू धर्म को जातिवाद के नाम पर तोड़े जाने का कुचक्र सैकड़ों वर्षों से जारी है। हालांकि जो लोग खुद को ऊंचा या नीचा समझते हैं उनको जातियों के उत्थान और पतन का इतिहास नहीं मालूम है। उन्होंने मुगल और अंग्रेजों के काल का इतिहास अच्छे से पढ़ा नहीं है। वे तो 70 वर्षों की विभाजनकारी राजनीति के शिकार हो चले हैं। इतिहास की जानकारी अच्छे से नहीं होने के कारण ही राजनीतिज्ञों ने नफरत फैलाकर हिन्दुओं को धर्म, जाति और पार्टियों में बांट रखा है। यह बहुत आसान है। आज हम बताएंगे आपको कि क्यों हिन्दू धर्म दुनिया का महान धर्म है।

🚩हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है इसका सबूत है वेद। वेद दुनिया की प्रथम पुस्तक है। वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। सर्वप्रथम ईश्वर ने 4 ऋषियों को इसका ज्ञान दिया- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। ये ऋषि न तो ब्राह्मण थे और न दलित, न क्षत्रिय थे और न वैश्य। वेदों के आधार पर ही दुनिया के अन्य धर्मग्रंथों की रचना हुई। जिन्होंने वेद पढ़े हैं, वे ये बात भली-भांति जानते हैं और जिन्होंने नहीं पढ़े हैं उनके लिए नफरत ही उनका धर्म है।

🚩मोक्ष और ध्यान : ध्यान और मोक्ष हिन्दू धर्म की ही देन है। मोक्ष, मुक्ति या परमगति की धारणा या विश्वास का जनक वेद ही है। जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान, बौद्ध धर्म में निर्वाण या बुद्धत्व का आधार वेदों का ज्ञान ही है। योग में इसे ‘समाधि’ कहा गया है। इस्लाम में मग़फ़िरत, ईसाई में सेल्वेसन कहा जाता है, लेकिन वेदों के इस ज्ञान को सभी ने अलग-अलग तरीके से समझकर इसकी व्याख्या की।

🚩मोक्ष प्रा‍प्ति हेतु ध्यान को सबसे कारगर और सरल मार्ग माना जाता है। अमृतनादोपनिषद में मोक्ष का सरल मार्ग बताया गया है। हिन्दू ऋषियों ने मोक्ष की धारणा और इसे प्राप्त करने का पूरा विज्ञान विकसित किया है। यह सनातन धर्म की महत्वपूर्ण देनों में से एक है। मोक्ष का मतलब सिर्फ यह नहीं कि जन्म और मृत्यु से छुटकारा पाकर परम आनंद को प्राप्त करना। ऐसे बहुत से भूत, प्रेत या संत आत्माएं हैं, जो जन्म और मृत्यु से दूर रहकर जी रहे हैं। मोक्ष एक बृहत्तर विषय है। ‘मोक्ष’ का अर्थ है गति का रुक जाना, स्वयं प्रकाश हो जाना। वर्तमान में आत्मा नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति, देव गति नामक आदि गतियों में जीकर दुख पाती रहती है। जिन्होंने भी मोक्ष के महत्व को समझा, वह सही मार्ग पर है।

🚩जीवन जीने की कला : जिंदगी जीना एक महत्वपूर्ण विद्या है। अनाड़ी ड्राइवर के हाथ में यदि कीमती गाड़ी दे दी जाए तो उसकी दुर्गति ही होगी। दरअसल, यह शतरंज और सांप-सीढ़ी के खेल की तरह भी है। इस खेल में आपके ज्ञान, बुद्धि, विश्वास के अलावा आपकी इच्छा का योगदान होता है। सही ज्ञान और पूर्ण विश्वास के साथ सकारात्मक इच्‍छा नहीं है तो आप हारते जाएंगे।

🚩यही कारण है कि बहुत से लोग जीवन को एक संघर्ष मानते हैं जबकि हिन्दू धर्म के अनुसार जीवन एक उत्सव है। संघर्ष तो स्वत: ही सामने आते रहते हैं या तुम अपने जीवन को संघर्षपूर्ण बना लेते हो। लेकिन जीवन को उत्सवपूर्ण बनाना ही जीवन जीने की कला का हिस्सा है। गीत, भजन, नृत्य, संगीत और कला का धर्म में उल्लेख इसीलिए मिलता है कि जीवन एक उत्सव है जबकि कुछ धर्मों में नृत्य, संगीत और कला पर रोक है। ऐसा माना जाता है कि इससे समाज बिगाड़ का शिकार हो जाता है। इस डर से लोगों से उनका वह आनंद छीन लो, जो उनको परमात्मा ने या इस प्रकृति ने दिया है।

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