बहुत सारे भक्त गुप्त नवरात्रि के बारे में नही जानते होंगे,22 से शुरू हो रही है लाभ जरूर उठाए….

21 January 2023

azaadbharat.org

🚩देवी भागवत के अनुसार वर्ष में चार बार नवरात्रि आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।

🚩इस बार माघ की गुप्त नवरात्रि 22 जनवरी 2023, रविवार से शुरू होगी और इसका समापन 30 जनवरी 2023 को होगा। इन नो दिनों में सभी भक्त व्रत करें, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए,संयम,नियम,जप,ध्यान, पाठ करते हुए बिताए।

🚩घटस्थापना मुहूर्त – सुबह 07 बजकर 15 मिनट से लेकर 10 बजकर 58 मिनट तक,
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त -दोपहर 12 बजकर 28 मिनट से लेकर 01 बजकर 12 तक

🚩जो भक्त व्रत-उपवास करते है उन्हें व्रत-उपवास के दिनों में साबुदाने,आलू,गाजर,गोभी, शलजम, पालक, नही खाना चाहिए।

🚩व्रत-उपवास करने वालों को दूध, फल,आम,अंगूर,केला,बादाम,पिस्ता,मखाना, चारोली,मखाने की खीर,गुड़-मूंगफली की चिक्की,मूंगफली का सेवन करना चाहिए, जो इनका सेवन नही कर पाते,वे सिंघाड़े या राजगरे के आटे की नमकीन रोटी,पूरी,पकोड़े, कड़ी बनाकर कड़ी-पूरी भी खा सकते है। व्रत में नमकीन व्यजनों में सेंधा नमक का उपयोग करें।

🚩नवरात्रि की तिथि

🚩प्रतिपदा (मां शैलपुत्री): 22 जनवरी 2023
द्वितीया (मां ब्रह्मचारिणी): 23 जनवरी 2023
तृतीया (मां चंद्रघंटा): 24 जनवरी 2023
चतुर्थी (मां कुष्मांडा): 25 जनवरी 2023
पंचमी (मां स्कंदमाता): 26 जनवरी 2023
षष्ठी (मां कात्यायनी): 27 जनवरी 2023
सप्तमी (मां कालरात्रि): 28 जनवरी 2023
अष्टमी (मां महागौरी): 29 जनवरी 2023
नवमी (मां सिद्धिदात्री): 30 जनवरी 2023

🚩गुप्त नवरात्रि पूजन विधि

🚩गुप्त नवरात्रि में नौ दिन के लिए कलश स्थापना की जा सकती है,अगर कलश की स्थापना की है तो दोनों सुबह-शाम मंत्र जाप, चालीसा या सप्तशती का पाठ करें,दोनों ही समय आरती करना भी अच्छा होगा,मां को दोनों समय भोग भी लगाएं,सबसे सरल और उत्तम भोग है लौंग और बताशा, मां के लिए लाल फूल सर्वोत्तम होता है, ध्यान रखें इस दौरान मां को आक, मदार, दूब और तुलसी बिल्कुल न चढ़ाएं,पूरे नौ दिन अपना खान-पान और आहार सात्विक रखें।

🚩नवरात्रि में देवी शक्ति मां दुर्गा के भक्त उनके नौ रूपों की बड़े विधि-विधान के साथ पूजा करते हैं, नवरात्र के समय घरों में कलश स्थापित कर दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू किया जाता है, इसके दौरान मंदिरों में जागरण किए जाते हैं, नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा करने से लोगों को हर मुश्किल परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है,इन नौ दिनों को बहुत पवित्र माना जाता है और भक्त नवरात्रि के दौरान उपवास रखते हैं।

🚩गुप्त नवरात्र उसी प्रकार मान्य हैं, जिस प्रकार ‘शारदीय’ और ‘चैत्र नवरात्र’। आषाढ़ और माघ माह के नवरात्रों को “गुप्त नवरात्र” कह कर पुकारा जाता है। बहुत कम लोगों को ही इसके ज्ञान या छिपे हुए होने के कारण इसे ‘गुप्त नवरात्र’ कहा जाता है। गुप्त नवरात्र मनाने और इनकी साधना का विधान ‘देवी भागवत’ व अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। श्रृंगी ऋषि ने गुप्त नवरात्रों के महत्त्व को बतलाते हुए कहा है कि- “जिस प्रकार वासंतिक नवरात्र में भगवान विष्णु की पूजा और शारदीय नवरात्र में देवी शक्ति की नौ देवियों की पूजा की प्रधानता रहती है, उसी प्रकार गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं की सिद्धि की होती हैं। यदि कोई इन महाविद्याओं के रूप में शक्ति की उपासना करें, तो जीवन धन-धान्य, राज्य सत्ता और ऐश्वर्य से भर जाता है।

🚩गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऎश्वर्य की प्राप्ति होती है। “दुर्गावरिवस्या” नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में भी माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं।

🚩 “शिवसंहिता” के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति माँ पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से कई बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।

जैसे:-

🚩विवाह बाधा
वे कुमारी कन्याएँ जिनके विवाह में बाधा आ रही हो, उनके लिए गुप्त नवरात्र बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। कुमारी कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इन नौ दिनों में माता कात्यायनी की पूजा-उपासना करनी चाहिए। “दुर्गास्तवनम्” जैसे प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि इस मंत्र का 108 बार जप करने से कुमारी कन्या का विवाह शीघ्र ही योग्य वर से संपन्न हो जाता है-
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नम:।।

🚩इसी प्रकार जिन पुरुषों के विवाह में विलम्ब हो रहा हो, उन्हें भी लाल रंग के पुष्पों की माला देवी को चढ़ाकर निम्न मंत्र का 108 बार जप पूरे नौ दिन तक करने चाहिए-
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।

🚩देवी की महिमा

🚩शास्त्र कहते हैं कि आदिशक्ति का अवतरण सृष्टि के आरंभ में हुआ था। कभी सागर की पुत्री सिंधुजा-लक्ष्मी तो कभी पर्वतराज हिमालय की कन्या अपर्णा-पार्वती। तेज, द्युति, दीप्ति, ज्योति, कांति, प्रभा और चेतना और जीवन शक्ति संसार में जहाँ कहीं भी दिखाई देती है, वहाँ देवी का ही दर्शन होता है। ऋषियों की विश्व-दृष्टि तो सर्वत्र विश्वरूपा देवी को ही देखती है, इसलिए माता दुर्गा ही महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में प्रकट होती है।

🚩 ‘देवीभागवत’ में लिखा है कि- “देवी ही ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का रूप धर संसार का पालन और संहार करती हैं। जगन्माता दुर्गा सुकृती मनुष्यों के घर संपत्ति, पापियों के घर में अलक्ष्मी, विद्वानों-वैष्णवों के हृदय में बुद्धि व विद्या, सज्जनों में श्रद्धा व भक्ति तथा कुलीन महिलाओं में लज्जा एवं मर्यादा के रूप में निवास करती है। ‘मार्कण्डेयपुराण’ कहता है कि- “हे देवि! तुम सारे वेद-शास्त्रों का सार हो। भगवान विष्णु के हृदय में निवास करने वाली माँ लक्ष्मी-शशिशेखर भगवान शंकर की महिमा बढ़ाने वाली माँ तुम ही हो।”

🚩सरस्वती पूजा महोत्सव
माघी नवरात्र में पंचमी तिथि सर्वप्रमुख मानी जाती है। इसे ‘श्रीपंचमी’, ‘वसंत पंचमी’ और ‘सरस्वती महोत्सव’ के नाम से कहा जाता है। प्राचीन काल से आज तक इस दिन माता सरस्वती का पूजन-अर्चन किया जाता है। यह त्रिशक्ति में एक माता शारदा के आराधना के लिए विशिष्ट दिवस के रूप में शास्त्रों में वर्णित है। कई प्रामाणिक विद्वानों का यह भी मानना है कि जो छात्र पढ़ने में कमज़ोर हों या जिनकी पढ़ने में रुचि नहीं हो, ऐसे विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से माँ सरस्वती का पूजन करना चाहिए। देववाणी संस्कृत भाषा में निबद्ध शास्त्रीय ग्रंथों का दान संकल्प पूर्वक विद्वान् ब्राह्मणों को देना चाहिए।

🚩महानवमी को पूर्णाहुति*
*गुप्त नवरात्र में संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए सप्तमी,अष्टमी और नवमी तिथि को आवश्यक रूप से देवी के पूजन का विधान शास्त्रों में वर्णित है। माता के संमुख “ज्योत दर्शन” एवं कन्या भोजन करवाना चाहिए।

🚩स्त्री रूप में देवी पूजा

🚩’कूर्मपुराण’ में पृथ्वी पर देवी के बिंब के रूप में स्त्री का पूरा जीवन नवदुर्गा की मूर्ति के रूप से बताया गया है। जन्म ग्रहण करती हुई कन्या “शैलपुत्री”, कौमार्य अवस्था तक “ब्रह्मचारिणी” व विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से “चंद्रघंटा” कहलाती है। नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने से “कूष्मांडा” व संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री “स्कन्दमाता” होती है। संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री “कात्यायनी” व पतिव्रता होने के कारण पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से “कालरात्रि” कहलाती है। संसार का उपकार करने से “महागौरी” व धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार को सिद्धि का आशीर्वाद देने वाली “सिद्धिदात्री” मानी जाती हैं।

🚩वैसे तो 22 जनवरी 2023 से 30 जनवरी 2023 तक नो दिनों तक सम्पूर्ण नवरात्र व्रत का पालन संयम-नियम ,जप-ध्यान,पाठ करते हुए करना चाहिए, पर किसी कारण से कोई नो दिनों तक व्रत नहीं कर कर पाता हैं, उसे 28 जनवरी 2023 से 30 जनवरी 2023 तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, संयम, नियम,जप,ध्यान,पाठ करते हुए सप्तमी, अष्टमी और नवमी को दुधाहर, फलाहार करते हुए उपवास करना चाहिए और नवमी तिथि के अंतिम काल मे उपवास खोलना चाहिए।

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