छत्रपति शिवाजी महाराज का पराई स्त्री के प्रति कैसा नजरिया था?

19 फरवरी 2022

azaadbharat.org

🚩भारतीय सभ्यता और संस्कृति में ‘माता’ को इतना पवित्र स्थान दिया गया है कि यह मातृभाव मनुष्य को पतित होते-होते बचा लेता है। श्री रामकृष्ण एवं अन्य पवित्र संतों के समक्ष जब कोई स्त्री कुचेष्टा करना चाहती तब वे सज्जन, साधक, संत यह पवित्र मातृभाव मन में लाकर विकार के फंदे से बच जाते। यह मातृभाव मन को विकारी होने से बहुत हद तक रोके रखता है। जब भी किसी स्त्री को देखने पर मन में विकार उठने लगे, उस समय सचेत रहकर इस मातृभाव का प्रयोग कर ही लेना चाहिए।

🚩शिवाजी महाराज के सामने जब किसी सुंदर स्त्री को प्रस्तुत किया गया तब शिवाजी महाराज के यही शब्द थे कि काश ऐसी सुंदर मेरी जननी माता होती तो मैं भी ऐसा सुंदर रूप पाता … शब्दों का तात्पर्य वह हर पराई स्त्री को अपनी बहन व माता के समान मानते थे।

छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में कभी भी किसी औरत का नाच-गाना नहीं हुआ। महिलाओं का हमेशा सम्मान किया जाता था चाहे वह दुश्मन की पत्नी भी क्यों ना हो। उन्होंने महिलाओं की गरिमा हमेशा बनाए रखी, बेशक वह महिला किसी भी जाति या धर्म से हो क्यों ना हो।

🚩28 फरवरी 1678 को सुकुजी नामक सरदार ने बेलवाड़ी किले की घेराबंदी की। इस किले की किलेदार एक स्त्री थी।

उसका नाम सावित्रीबाई देसाई था। इस बहादुर महिला ने 27 दिनों तक किले के लिए लड़ाई लड़ी। लेकिन अंत में, सुकुजी ने किले को जीत लिया और सावित्रीबाई से बदला लेने के लिए उसका अपमान किया l
जब राजे ने यह समाचार सुना, तो वह क्रोधित हो गए।
राजे के आदेशानुसार सुकुजी की आंखें फोड कर उसे आजीवन कैद कर दिया गया।
🚩24 अक्टूबर 1657 को छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश पर सोने देव ने जब कल्याण के किले पर घेराबंदी की और उसको जीत लिया, उस समय मौलाना अहमद की पुत्रवधू यानी औरंगजेब की बहन और शाहजहां की बेटी रोशनआरा जो एक अभूतपूर्व सुंदरी थी उसको किले में कैद कर लिया गया। उसके बाद सैनिकों ने उस रोशनआरा को जब छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने पेश किया तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों को यह कहा था कि यह तुम्हारी पहली और आखरी गलती है। इसके बाद अगर ऐसा अपमानित करने का कार्य किसी भी जाति और धर्म की औरत के साथ किया तो इसकी सजा मौत होगी और एक पालकी सजा कर रोशनआरा को उसके कहने पर उसके महल में भेज दिया गया। इसी प्रकार से शाइस्ता खान ने सन 1663 ईस्वी में कोंकण को जीतने के लिए अपने सेनापति दिलेर खान के साथ एक ब्राह्मण उदित राज देशमुख की पत्नी राय बाघिन (शेरनी) को भेजा तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने राय बाघिन और मुगल दिलेर खान को रात में कोल्हापुर में ही घेर लिया और दिलेर खान अपनी जान बचा कर भाग गया। उस समय राय बाघिन को एक सजी हुई पालकी में बैठा कर वापस उसके घर भेज दिया था।

अगर किसी दुश्मन की पत्नी भी चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से हो लड़ाई में फंस जाती है, तो उसे परेशानी नहीं होना चाहिए- महाराज के इस तरह के आदेश पत्थर की लकीर होते थे।

🚩पर स्त्री के प्रति मातृभाव रखने का यह एक सुंदर उदाहरण है। ऐसा ही एक उदाहरण वाल्मीकि कृत रामायण में भी आता है। भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण को जब सीताजी के गहने पहचानने को कहा गया तो लक्ष्मण जी बोले: हे तात! मैं तो सीता माता के पैरों के गहने और नूपुर ही पहचानता हूँ, जो मुझे उनकी चरणवन्दना के समय दृष्टिगोचर होते रहते थे। केयूर-कुण्डल आदि दूसरे गहनों को मैं नहीं जानता।” यह मातृभाव वाली दृष्टि ही इस बात का एक बहुत बड़ा कारण था कि लक्ष्मणजी इतने काल तक ब्रह्मचर्य का पालन किये रह सके; तभी रावणपुत्र मेघनाद को, जिसे इन्द्र भी नहीं हरा सका था, लक्ष्मणजी हरा पाये। पवित्र मातृभाव द्वारा वीर्यरक्षण का यह अनुपम उदाहरण है जो ब्रह्मचर्य की महत्ता भी प्रकट करता है।

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