22 जुलाई 2020
PETA यानी पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स। यह संस्था खुद को पशुओं के अधिकार का संरक्षक कहती है। लेकिन इस मुखौटे के पीछे कई चेहरे छिपे हैं। हिंदुओं से घृणा करने वाली यह संस्था जानवरों की निर्ममता से हत्या भी करती है। दीपावली पर ज्ञान देती है कि पटाखे नही फोड़े नही तो पशु पक्षी डर जाते है लेकिन यही पेटा बकरी ईद पर बता रही है कैसे पशु हत्या करनी चाहिए, पूरा विधि बता रही हैं।
PETA ने जानवरों की हत्या करते समय क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस सम्बन्ध में सलाह जारी की हुई है। हिन्दुओं को शाकाहारी बनने की शिक्षा देने वाला PETA मुसलमानों को जानवरों को किन विधियों से मारने की सलाह दी है, वो देखिए:
जानवरों को मारते समय एकदम सावधानी से हैंडल करें। किसी भी प्रकार का तनाव या क्रूरता हराम है। इससे गलत तरीके से खून निकलने लगेगा और माँस भी ठीक तरह का नहीं मिलेगा। एक जानवर को मारते समय वहाँ दूसरे जानवर को न रखें, ताकि वो एक-दूसरे की हत्या को देख नहीं पाएँ।
चाकू की धार को एकदम तेज़ कर के रखें। उसे बार-बार धार दें। उसकी लम्बाई ठीक रखें। इसकी लम्बाई 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए। चाकू को जानवरों को न देखने दें, नहीं तो वो डर जाएँगे।
जानवर को ‘क्विब्ला’ की दिशा में रखें। उसकी गर्दन को किसी छेद या नाले में रख कर उसे मारें ताकि खून वहीं बह जाए। जानवर के ऊपर खड़ा नहीं हों। अगर जानवर बड़े आकार का है तो उसकी हत्या करते समय लोगों की मदद लें, जो उसके पाँवों को पकड़ सकते हैं।
काफी अच्छे तरीके से जानवर की हत्या करें। तीन से ज्यादा बार वार न करें। गले के पास जितनी भी नसें हैं, उन सबको काट डालें। साँस और भोजन की नली को काट डालें। उस समय ‘क़ुर्बानी की दुआ’ पढ़ते रहें। जानवर को हाथ-पाँव मारने दें, ताकि खून जल्दी-जल्दी निकल जाए।
ये याद रखें कि किसी की भी जान लेना सिर्फ अल्लाह के हाथ में है। हम अल्लाह द्वारा बनाई गई दुनिया का एक हिस्सा हैं, इसीलिए ज़िंदा रहने के लिए हम ऐसा करते हैं। दूसरे जीवों की तरह हमें भी अपना अस्तित्व बचाना है।
जानवर को काटने के बाद 6 मिनट तक उसका खून बहने दें। भेंड़ या बकरों के मामले में 5 मिनट तक ब्लीडिंग होने दें।
दूसरे जानवर को काटने से पहले खून को एकदम साफ़ कर दें क्योंकि खून की गंध से दूसरे जानवरों को तनाव होता है।
याद रखें कि ये जानवर अल्लाह द्वारा बनाए हुए हैं और जन्नाह (जन्नत) जाते हैं। अगर हम उसके साथ बुरा व्यवहार करते हैं तो इसके लिए हमें जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस संस्था पर अमेरिका में मासूम जानवरों की जान लेने के आरोप लगते रहे हैं। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि यह संस्था पशुओं को बचाने के नाम पर खुद इन पशुओं की हत्या कर देती है।
वर्जीनिया डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर एंड कंज्यूमर सर्विसेज (VDACS) की रिपोर्ट के मुताबिक PETA ने पिछले साल यानी 2019 में 1,593 कुत्तों, बिल्लियों और अन्य पालतू जानवरों को मार दिया था। वहीं 2018 में 1771 जानवरों की हत्या कर दी गई। इसी तरह 2017 में 1809, 2016 में 1411 और 2015 में 1456 जानवरों को मार दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार 1998 से लेकर 2019 तक PETA ने 41539 जानवरों की हत्या कर दी।
इस संबंध में HUFFPOST नामक एक अमेरिकी वेबसाइट पर वर्ष 2017 में एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें तथ्यों के साथ यह दावा किया गया था कि PETA ना सिर्फ खुद जानवरों को मारता है, बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है। इसके लिए PETA पशुओं से संबन्धित क़ानूनों का दुरुपयोग करता है। इस लेख के मुताबिक PETA ने अमेरिका के वर्जीनिया में वर्ष 2014 में एक पालतू कुत्ते को बिस्किट का लालच देकर अपने पास बुलाया और उसे पकड़ लिया।
वर्जीनिया के कानून के मुताबिक PETA जैसी संस्थाओं को सिर्फ आवारा पशुओं को ही अपने कब्जे में लेने की आज़ादी है, लेकिन PETA ने यहाँ साफ तौर पर इस कानून का उल्लंघन किया था। जिस कुत्ते को PETA के कर्मचारियों ने कब्जे में लिया था, वह पालतू था। इसके अलावा कानून के मुताबिक विशेष परिस्थितियों में PETA जैसी संस्थाओं के पास कम से कम जानवरों को 5 दिन अपने पास रखने के बाद उन्हें जान से मारने का अधिकार है।
हालाँकि, PETA ने उस कुत्ते को अपने कब्जे में लेने के महज़ कुछ घंटों में ही मार दिया। इसके बाद उस कुत्ते को पालने वाले परिवार ने PETA पर केस किया और PETA को उस परिवार को 50 हज़ार डॉलर का मुआवजा देना पड़ा।
इस लेख के मुताबिक वर्ष 2014 में PETA ने सिर्फ उस कुत्ते को ही नहीं, बल्कि 2324 पशुओं को मौत के घाट उतार दिया था। जितने भी पशुओं को PETA ने अपने कब्जे में लिया था, उनमें से सिर्फ 1 प्रतिशत पशुओं को ही लोगों ने गोद लिया।
इसमें कहा गया है कि PETA के कार्यकर्ता धोखे से, चोरी से या झूठ बोलकर जानवरों को उठाते हैं और उन्हें जहर देकर मार देते हैं। PETA ये दावा करता है कि जिन पशुओं को वह मारता है, उनमें से अधिकतर गोद लेने के लायक नहीं होते हैं, लेकिन तथ्य इस बात का समर्थन नहीं करते हैं। आगे इस लेख में यह तक दावा किया गया है कि जिन पशुओं को PETA अपने कब्जे में लेता है, उनमें से अधिकतर स्वस्थ होते हैं, लेकिन उन्हें भी कब्जे में लेकर जहर देकर मार दिया जाता है।
साल 2012 में PETA के मीडिया अधिकारी जेन डॉलिंगर ने द डेली कॉलर से कहा था कि संस्था की निगरानी में मौजूद कई जानवर चोट, बीमारी, बुढ़ापा, उत्तेजना या “अच्छे आवास के अभाव” में मर जाते हैं।
द डेली कॉलर की 2012 की रिपोर्ट के अनुसार PETA के दो कर्मचारियों को अमेरिकी पुलिस ने 2005 में जानवरों के शव को नार्थ कैरोलिना डंपस्टर में फेंकते हुए पकड़ा था। इन जानवरों की PETA कर्मचारियों ने संस्था की वैन में “हत्या” की थी। PETA के खिलाफ अभियान चलाने वाली संस्था सेंटर फॉर कंज्यूमर फ्रीडम (सीसीएफ) का आरोप है कि PETA कुत्ते-बिल्लियों के लिए जरूरी आवास के निर्माण के बजाय मीडिया और विज्ञापन पर ज्यादा खर्च करती है। सीसीएफ के अनुसार PETA का सालान बज़ट 3.74 करोड़ डॉलर (करोड़ 254 करोड़ रुपए) है।
साल 2011 में एक इंटरव्यू में PETA ने कहा था कि वो जानवरों को उत्पीड़ित् करने, भूखे रखने या शोध के लिए बेचने” के बजाय उन्हें “दर्दरहित” मौत देना बेहतर समझती है।
बता दें कि यह वही PETA है जो भारत में हिंदुओं के त्योहारों को लेकर हल्ला मचाता है और उन्हें पशुओं के अधिकारों का हनन करने वाला बताता है। उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु में हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले जलीकट्टू त्योहार के खिलाफ PETA ने सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जमकर हल्ला मचाया था।
वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था और इसमें ‘एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया’ और PETA इंडिया की सबसे बड़ी भूमिका थी। इसके बाद जब वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर दोबारा से जलीकट्टू के आयोजन को मँजूरी दी थी, तब भी यह PETA ही था जिसने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में इस अधिसूचना के खिलाफ याचिका दायर की थी।
हाल ही में PETA इंडिया ने रक्षा बंधन को गाय की रक्षा से जोड़ दिया। इस संगठन ने लोगों से अपील की कि ‘चमड़ा-मुक्त बनो।’ अब सोशल मीडिया पर पेटा से सवाल किया जा रहा है कि राखी का चमड़े से क्या लेना-देना? सोशल मीडिया पर उससे यही पूछा जा रहा है, “आपका मतलब है कि राखियाँ चमड़े से बनती हैं? एक ऐसे त्योहार को क्यों चुना, जिसका जानवरों की हत्या से कोई लेना-देना नहीं है।”
वहीं एक यूजर ने लिखा, “ऐसा लगता है कि पेटा इंडिया तभी नींद से जागता है, जब हिंदुओं का कोई त्योहार आता है और तुमने कहाँ देखा है लोगों को चमड़े की राखी पहनते हुए?? रक्षा बंधन के पवित्र त्योहार पर तो हम मीट या अंडे भी नहीं खाते।”
बता दें कि PETA एक गैर-सरकारी संगठन है जिसका कहना है कि पशुओं का भोजन, वस्त्र, प्रयोग या मनोरंजन के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। पेटा के अनुसार संस्था पशुओं के “कल्याण और पुनर्वास” के लिए काम करती है। – रचना कुमारी
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