24 July 2022
🚩बाजीप्रभु देशपांडे छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे विश्वसनीय सरदारों में से एक थे।
🚩बाजीप्रभु देशपांडे ने अफ़जल खान को मारने के लिए ऐसी रणनीति बनाई जो सफल हुई, कई मुग़लों को हराया…
🚩बाजी प्रभु देशपांडे का नाम मराठा इतिहास में हमेशा अमर रहेगा। इन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया और सदा के लिए अमर हो गए।
🚩बाजीप्रभू देशपांडे माहिती मराठी के पिता हिरडस और मावल के कुलकर्णी थे। युवावस्था से ही बाजी प्रभु देशपांडे साहसी, निडर, आत्मविश्वासी, दूरदर्शी,उच्च व्यक्तित्व के धनी और देशभक्ति से परिपूर्ण थे।
🚩छत्रपति शिवाजी महाराज को इनकी वीरता और कौशलता की जानकारी होते ही उन्होंने, इन्हें अपनी सेना में शामिल किया और उच्च पद प्रदान किया।
🚩वीर मराठा सरदार बाजी प्रभु देशपांडे ने मुगलों के खिलाफ लड़े गए युद्ध में, अपनी वीरता का अद्वितीय परिचय देते हुए 100 से अधिक मुगल सैनिकों का सिर धड़ से अलग किया था।
🚩कोई भी अकेला सैनिक इनका सामना करने के लिए तैयार नहीं था, यही थी, वीर बाजी प्रभु देशपांडे की असली योग्यता और कौशलता।
🚩स्वयं छत्रपति शिवाजी महाराज इनकी की प्रशंसा करने से नहीं चूकते थे। मराठा सेना की एक टुकड़ी जोकि दक्षिण दिशा अर्थात कोल्हापुर के आसपास का क्षेत्र जो था,उसकी जिम्मेदारी छत्रपति शिवाजी महाराज ने बाजी प्रभु देशपांडे के हाथों में सौंप रखी थी। इन्हें वीरता का पर्याय माना जाता है।
🚩सेनापति अफ़ज़ल ख़ान को मात-
आदिल शाह का सेनापति था,अफजल खान जो कि कद काठी में लंबा-चौड़ा, युद्ध विद्या में निपुण और बहुत बलशाली था।
🚩छत्रपति शिवाजी महाराज एक ऐसे सेनापति की तलाश में है,जो अफजल खान जैसे बाहुबली को मात दे सके। यह सभी विशेषताएं छत्रपति शिवाजी महाराज को बाजी प्रभु देशपांडे में दिखी ।
🚩छत्रपति शिवाजी महाराज को बाजी प्रभु देशपांडे जैसे सरदार की सख्त आवश्यकता थी और उन्होंने अफजल खान के विरुद्ध युद्ध में सेना का नेतृत्व बाजी प्रभु देशपांडे के हाथों में सौंपा।
🚩अफजल खान के विरुद्ध द्वंद युद्ध का अभ्यास शुरू हुआ। बाजी प्रभु देशपांडे के एक और साथी थे,जिनका नाम विसाजी मुरांबाक था। ये भी कद काठी में अफजल खान को टक्कर देते थे।
🚩बाजी प्रभु देशपांडे और छत्रपति शिवाजी महाराज के नेतृत्व में मराठी सेना ने अपने शौर्य का परिचय देते हुए अफजल खान को मौत के घाट उतार दिया।
🚩मराठा सेना की युद्ध करने की दो प्रणालियां “छापामार युद्ध प्रणाली और घात लगाकर युद्ध करने वाली प्रणाली” सबसे अधिक प्रचलित थी और इन्हीं दोनों की वजह से मुगल सेना बार-बार मात खा जाती थी।
🚩हिंदुत्व और सनातन धर्म को मानने वाले लोगों पर होने वाले अत्याचार और शोषण का जवाब देने के लिए मराठी सेना पूरी तरह कटिबद्ध थी और मराठी सेना ने समय-समय पर इस्लामिक आक्रांताओं को धूल चटाई।
🚩पन्हाला दुर्ग पर हमला-
मराठी सेना “पन्हाला दुर्ग” के समीप अपना डेरा डाले हुए थी। मुगल शासक आदिल शाह को गुप्तचरों की मदद से यह खबर मिली की मराठी सेना इस दुर्ग के आसपास मौजूद हैं।
🚩यह खबर सुनते ही आदिल शाह ने बिना देरी किए मराठी सेना पर हमला करने की योजना बनाई। लगभग 10,000 जेहादी सैनिकों के साथ आदिल शाह पन्हाला दुर्ग की ओर निकल पड़ा।
🚩मराठी सेना पर हमले से पहले आदिल शाह ने गुप्त रास्तों का सहारा लिया ताकि मराठों को इस हमले की भनक भी ना लगे।
🚩आदिल शाह की सेना का प्रतिनिधित्व उनका सेनापति “सिद्दी जोहर” कर रहा था। मराठी सैनिक स्वतंत्र रूप से बिना किसी पूर्वाभास के वहां पर मौजूद थे, तभी अचानक 10,000 सैनिकों के साथ आदिल शाह और सिद्दी जोहर ने मराठों पर हमला कर दिया।
🚩हालांकि वीर मराठी सैनिकों ने तुरंत ही मोर्चा संभाला,एक ऐसा भीषण युद्ध शुरू हो गया जिसकी कल्पना छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी नहीं की थी।
🚩छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके सरदार बाजी प्रभु देशपांडे युद्ध मैदान में कूद पड़े। युद्ध मैदान में बिजली की तरह तलवारे चमक रही थी, मेघ की तरह गर्जना हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे पूरा वातावरण इस युद्ध का साक्षी बन रहा हो।
🚩मुगलों ने पूर्व रणनीति के अनुसार मराठी सेना के राशन-पानी को निशाना बनाया ताकि जल्दी से मराठों को पराजित किया जा सके।
🚩कई महीनों तक यह युद्ध चलता रहा छत्रपति शिवाजी महाराज को अब यहां से बच निकलना ही एकमात्र उपाय लग रहा था।
🚩“नेताजी पालकर” भी एक छोटी सी मराठी सेना की टुकड़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, लेकिन संख्या में अधिक होने की वजह से मुगलों ने मराठों को काफी नुकसान पहुंचाया।
🚩छत्रपति शिवाजी महाराज और बाजी प्रभु देशपांडे ने एक रणनीति के तहत आदिलशाह को एक संदेश भेजा कि हम समझौता करने के लिए तैयार हैं।
🚩इस संदेश के प्राप्त होते ही आदिलशाह और उसकी सेना ढीली पड़ गई। मुगल सेना के बदले हुए रुख को देखते ही मराठी सेना पीछे हट गई और छत्रपति शिवाजी महाराज, नेताजी पालकर और बाजी प्रभु देशपांडे अपनी सेना के साथ वहां से निकल गए।
🚩छद्म युद्ध-
छत्रपति शिवाजी महाराज, बाजी प्रभु देशपांडे और शिवा नवी तीनों लगभग छः सौ सक्षम सैनिकों के साथ युद्ध का प्लान किया।
🚩दरअसल यह युद्ध मुगलों पर बदला लेने के लिए और छिन्न-भिन्न करने के लिए किया जाने वाला था। शिवाजी महाराज और बाजी प्रभु देशपांडे लगभग 300 सैनिकों की टुकड़ी के साथ दूसरे रास्ते से निकले।
🚩जबकि छत्रपति शिवाजी महाराज के हमशक्ल शिवा नवी और नेताजी पालकर भी 300 सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ निकल पड़े।
🚩दो टुकड़ियों में बटी यह सेना बहुत ही विध्वनशक, आक्रामक, सक्षम और साक्षात काल के समान थी।
🚩गुरु पूर्णिमा की चांदनी रात थी मुगल सेना शिवा नवी की टुकड़ी पर टूट पड़ी और पुरा जोर इस टुकड़ी को हराने में लगा दिया। पूरी मुगल सेना का एक साथ आक्रमण होने के बाद भी शिवा नवी की सेना काल बनकर उन पर टूट पड़ी।
🚩मुगल सैनिकों को समझ में नहीं आ रहा था, की संख्या में इतना कम होने के बाद भी मराठी सैनिक युद्ध में अद्वितीय कौशल का परिचय दे रहे थे। अंततः इस युद्ध में “शिवा नेवी” का बलिदान हुआ।
🚩इस बलिदान से मराठों को फायदा हुआ और जो टुकड़ी छत्रपति शिवाजी महाराज की अगुवाई में थी, उसने मुगल सेना को पराजित कर दिया। बाजी प्रभु देशपांडे को इतना समय मिल गया कि वह मुगलों के साथ रणनीति के साथ उतर कर विध्वंस कर सकें।
🚩बाजी प्रभु देशपांडे का मुगलों के साथ अंतिम युद्ध
छत्रपति शिवाजी महाराज और बाजी प्रभु देशपांडे अपनी सेना के साथ युद्ध मैदान से बाहर निकल गए। छद्म युद्ध प्रणाली से घबराकर मुगल शासक क्रोध की आग में झुलसने लगे।
🚩मुगलों को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें और क्या नहीं। घोड़ों के साथ छत्रपति शिवाजी महाराज और देशपांडे “कींद दर्रे” के समीप पहुंचे।
🚩यहां पर पहुंच कर बाजी प्रभु देशपांडे नेछत्रपति शिवाजी महाराज से आग्रह किया कि आप “विशालगढ़ किले” की तरफ़ निकल जाओ। मैं मुगलों का सामना करूंगा और उनको धुल चटाऊंगा ये मैं प्रण करता हूं। ना चाहते हुए भी कि छत्रपति शिवाजी महाराज वहां से विशालगढ़ किले की तरफ चल पड़े।
🚩बाजी प्रभु देशपांडे की आंखों में खून सवार था। मातृभूमि की आन, बान और शान की रक्षा के लिए कमर कस ली एवं सीना तान कर खड़े हो गए।
🚩महज़ तीन सौ वीर और खूंखार सैनिकों के साथ मुगलों का सामना करने के लिए मराठी सेना तैयार थी।
🚩हर हर महादेव के नारों के साथ युद्ध घोष हुआ, मराठी सेना मुगलों पर बिजली की तरह टूट पड़ी। किंद में इतिहास लिखा जा रहा था।
🚩मुगल जेहादी बड़ी बर्बरता कर रहे थे, लेकिन उनका पाला शेरों से पड़ा था। बाजी प्रभु देशपांडे के हाथों में को तलवार थी, मुगलों को वह काल नज़र आ रही थी।
🚩वीरता का अद्वितीय प्रतीक थे, बाजी प्रभु देशपांडे, शौर्य और गाथा का प्रयाय बन चुके थे,देशपांडे। एक झटके से 2 मुगलों का सर कलम हो रहा था। बाजी प्रभु देशपांडे को भी कई घाव लग चुके थे। पूरे शरीर से लहू बह रहा था। लेकिन जोश, जज्बा और जुनून में कोई कमी नहीं, संख्या में कम होने के बाद भी साथियों को प्रेरणा दे रहे थे।
🚩बाजी प्रभु देशपांडे का इतिहास लिखा जा रहा था। अब तक मुगलों को छठी का दूध याद दिला चुके थे। हैरान परेशान मुग़ल सैनिक खौफ खा रहे थे।
🚩मन में एक संकल्प, विश्वास और खुद को मातृभूमि को समर्पित कर बाजी प्रभु देशपांडे लड़ाई लड़ रहे थे।
🚩लेकिन हजारों घाव झेल चुका शरीर कब तक साथ देता। इस समय छत्रपति शिवाजी महाराज विशालगढ़ किले में सुरक्षित पहुंच गए। बाजी प्रभु देशपांडे उन 3 तोपों की सलामी का इन्तजार कर रहे थे, जिसका छत्रपति शिवाजी महाराज ने जाने से पहले वादा किया था।
🚩बाजी प्रभु देशपांडे की मृत्यु कैसे हुई..
मरणासन्न अवस्था में बाजी प्रभु देशपांडे पहले ही पहुंच चुके थे,बस उन्हें इंतजार था, तो सिर्फ विजय का और छत्रपति शिवाजी महाराज के वादें का।
🚩सुबह का सूर्य उदय हुआ। तीन तोपों की आवाज़ सुनकर बाजी प्रभु देशपांडे को सकून मिला। जैसे ही देशपांडे घोड़े से नीचे उतरे और ज़मीन पर बैठ गए, मातृभूमि की धुल को मस्तिष्क पर लगाया, सभी साथी सैनिक दौड़कर आए और बाजी प्रभु देशपांडे को अपनी बाहों में उठा कर किंद दर्रे के समीप ले गए।
🚩हर हर महादेव के नारों से पूरा युद्ध मैदान गूंज उठा। अन्तिम समय पर भी उनके चेहरे पर जो मंद मंद मुस्कान थी वो जीत का कद बयां कर रही थी।
🚩1660 ई.में बाजी प्रभु देशपांडे कि मृत्यु हो गई। ये खबर सुनकर छत्रपति शिवाजी महाराज सन्न रह गए। पुरा मैदान खून से लथपथ हो गया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने उस जगह का नाम बदलकर “पावन किंद” रखा।
🚩मराठा साम्राज्य और हिंदुत्व रक्षक वीर सपूत हमेशा के लिए चला गया लेकिन खून कि स्याही से ऐसा इतिहास लिख गया जो आने वाले करोड़ों सालों तक बाजी प्रभु देशपांडे का इतिहास भारत वर्ष में हमेशा याद रखा जाएगा।
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