अकबर ने संत तुलसीदास जी से माफी क्यों मांगी?

14 August 2024

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यह घटना 1600 ईस्वी की है, जब मुगल सम्राट अकबर और संत तुलसीदास जी का समय था। तुलसीदास जी उस समय रामचरितमानस की रचना कर चुके थे, जो पूरे देश में श्रीराम के भक्तों के बीच काफी प्रसिद्ध हो चुकी थी। एक बार तुलसीदास जी मथुरा की यात्रा पर निकले और रात होने से पहले उन्होंने अपना पड़ाव आगरा में डाला। जब आगरा के लोगों को उनके आगमन की सूचना मिली, तो संत तुलसीदास जी के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ जुटने लगी। यह सुनकर बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा कि तुलसीदास कौन हैं।

 

बीरबल ने बादशाह अकबर को बताया कि तुलसीदास जी रामचरितमानस के रचयिता और एक महान रामभक्त हैं। बीरबल ने यह भी कहा कि वह खुद भी तुलसीदास जी के दर्शन करके आए हैं। यह सुनकर अकबर ने भी तुलसीदास जी से मिलने की इच्छा जताई और उन्हें लालकिले में आने का निमंत्रण दिया। जब यह संदेश तुलसीदास जी तक पहुँचा, तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि वह केवल भगवान श्रीराम के भक्त हैं और उन्हें बादशाह या लालकिले से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने लालकिले में जाने से साफ इनकार कर दिया। यह सुनकर अकबर क्रोधित हो गए और उन्होंने आदेश दिया कि तुलसीदास जी को जंजीरों में जकड़कर लालकिले लाया जाए।

 

जब तुलसीदास जी को जंजीरों में जकड़कर लालकिले लाया गया, तो अकबर ने उनसे कोई चमत्कार दिखाने को कहा। तुलसीदास जी ने विनम्रता से कहा कि वह सिर्फ भगवान श्रीराम के भक्त हैं, न कि कोई चमत्कारी व्यक्ति। यह सुनकर अकबर आगबबूला हो गए और उन्होंने तुलसीदास जी को काल कोठरी में डालने का आदेश दिया। अगले दिन, आगरा के लालकिले पर लाखों बंदरों ने हमला कर दिया और पूरा किला तहस-नहस कर दिया। किले में त्राहि-त्राहि मच गई। तब अकबर ने बीरबल से पूछा कि यह क्या हो रहा है। बीरबल ने कहा कि हुजूर, यह वही चमत्कार है जो आप देखना चाहते थे। अकबर ने तुरंत तुलसीदास जी को काल कोठरी से निकलवाया और उनकी जंजीरें खोल दीं।

 

तुलसीदास जी ने बीरबल से कहा कि उन्हें बिना किसी अपराध के सजा मिली है। काल कोठरी में रहते हुए उन्होंने भगवान श्रीराम और हनुमान जी का स्मरण किया। उस दौरान, वह रोते-रोते अपने हाथों से कुछ लिख रहे थे। यह 40 चौपाई हनुमान जी की प्रेरणा से लिखी गई हैं। कारागार से छूटने के बाद तुलसीदास जी ने कहा कि जैसे हनुमान जी ने उन्हें कारागार के कष्टों से छुड़ाया, वैसे ही जो भी व्यक्ति कष्ट या संकट में होगा और इस चौपाई का पाठ करेगा, उसके सारे संकट दूर हो जाएंगे। इस रचना को हनुमान चालीसा के नाम से जाना जाता है।

 

अकबर इस घटना से बहुत लज्जित हुआ और उन्होंने तुलसीदास जी से माफी मांगी। पूरी इज्जत और सुरक्षा के साथ उन्हें मथुरा भेजा गया। आज भी हनुमान चालीसा का पाठ हर जगह होता है और हनुमान जी की कृपा से लोगों के संकट दूर होते हैं। इसलिए हनुमान जी को “संकट मोचन” भी कहा जाता है।

 

हनुमान जी का पराक्रम अवर्णनीय है। वह भगवान शंकर के अवतार माने जाते हैं। भगवान शिव ने राक्षसों का नाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए हनुमान जी का अवतार धारण किया था। पृथ्वी पर सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, जिनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी आज भी पृथ्वी पर विचरण करते हैं।

 

पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना सभी सनातनी लोग करते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं। परंतु यह कब लिखा गया और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई, यह जानकारी बहुत कम लोगों को होगी। यह कथा दर्शाती है कि हनुमान जी, जो भगवान शंकर के अवतार हैं, आज भी अपने भक्तों की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं।

 

आज के आधुनिक युग में कुछ लोग हनुमान जी को केवल एक बंदर के रूप में देखते हैं, जबकि हनुमान जी भगवान शिव के अवतार हैं और उनके प्रति श्रद्धा के कारण ही उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। उनके पराक्रम का वर्णन करना कठिन है, और वह आज भी पृथ्वी पर अपने भक्तों की रक्षा के लिए विचरण करते हैं।

 

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