राजीव दीक्षित कौन थे, वे भारत को कहाँ ले जाना चाहते थे?

30 नवम्बर 2021

azaadbharat.org

राजीव दीक्षित अगर जिंदा रहते तो अब तक भारत में स्वदेशी और आयुर्वेद का शायद सबसे बड़ा ब्रांड बन चुका होता। राजीव भाई ने राष्ट्रवाद की कल्पना ‘स्वदेशी और अखंड भारत’ के इर्द-गिर्द बुनी थी।

श्री राजीव दीक्षित की जीवनी समाज के लिए एक ऐसी प्रेरणा है जो किसी को भी अपने देश के गौरवशाली अतीत की तरफ स्वतः ले जाती है। भारत के प्राचीन पद्धति के सहारे से भले ही कोई विकसित कहा जाने लगा हो लेकिन राजीव दीक्षितजी के व्याख्यानों से दुनिया ने जाना कि जहां आज तथाकथित विकसित लोग हैं, वहां से भी आगे हम हजारों वर्ष पहले थे। ओजस्वी वक्ता, क्रांतिकारी विचारधारा के प्रणेता व आयुर्वेदिक पद्धति के पुनरुद्धारक श्रद्धेय राजीव दीक्षितजी का आज ( 30 नवम्बर) जन्मदिवस व बलिदान दिवस है।

परिचय

30 नवंबर, 1967 यूपी के अलीगढ़ में राधेश्याम दीक्षित और मिथिलेश कुमारी के घर एक बच्चा पैदा हुआ, जिसे उन्होंने राजीव नाम दिया। शुरुआती पढ़ाई वैसे ही हुई, जैसे यूपी के किसी मिडिल क्लास फैमिली के बच्चों की होती है। लेकिन इलाहाबाद में बीटेक करने के दौरान राजीव को उनका मकसद मिला। यहां अपने टीचर्स और कुछ साथियों के साथ राजीव भाई ने ‘आजादी बचाओ आंदोलन’ शुरू किया। उद्देश्य था- भारत का सब कुछ स्वदेशी बनाना। IIT से एमटेक करने के बाद राजीव भाई ने कुछ वक्त तक CSIR में काम किया। बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने डॉ. कलाम के साथ भी काम किया। यहां से निकलने के बाद राजीव भाई की जिंदगी का एक ही मकसद था- ‘राष्ट्रसेवा’! इसके मायने, पैमाने और तरीके उनके खुद के ईजाद किए हुए थे और वो यही करते रहे।

श्री राजीव दीक्षित का राष्ट्रवाद…

राजीव भाई का मानना था कि भारत का पूरा मौजूदा सिस्टम पश्चिमी देशों का पिछलग्गू है, जिसे बदलने की जरूरत है। भारत के एजुकेशन सिस्टम को मैकाले की देन बताने वाले राजीव भाई के मुताबिक एजुकेशन के लिए गुरुकुल सिस्टम बेस्ट है। यहां की ज्यु़डिशियरी और लीगल सिस्टम अंग्रेजों के बनाए हुए कानून की फोटोकॉपी जैसा है, जिसके कई कानून भारतीयों का अपमान करने वाले हैं और इसे बदला जाना चाहिए। इकॉनोमिक सिस्टम के बारे में राजीव का मानना था कि देश का टैक्सेशन सिस्टम डिसेंट्रलाइज्ड कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यही देश में भ्रष्टाचार की जड़ है।

इनका दावा था कि देश का 80% टैक्स रेवेन्यू नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के हिस्से में जाता है। भारत के बजट सिस्टम को ब्रिटेन से प्रेरित बताने वाले राजीव 500 और 1000 के नोट बंद करने की सलाह देते थे। इनके हिसाब से लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन भारत के सबसे बड़े दुश्मन हैं, जो भारत को आत्मघाती स्थिति में ले जा रहे हैं। राजीव भाई कहते थे कि देश के विचारकों ने खेती के क्षेत्र में पर्याप्त काम नहीं किया, जिसकी वजह से आज किसान खुदकुशी करने को मजबूर हैं।

विदेशी कंपनियों को देश से बाहर करना…

भारत में रामराज्य स्थापित करने के धूर समर्थक राजीव भाई के मुताबिक भारत के मेडिकल सिस्टम को आयुर्वेद आधारित किए जाने की जरूरत है, क्योंकि एलोपैथी शरीर को नुकसान पहुंचाती है और इससे पैसा विदेश चला जाता है। उनके मुताबिक विदेशी कंपनियों को भारत में बिज़नेस करने का अधिकार नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था कमजोर होती है, देश का पैसा बाहर जाता है; विदेशी कंपनियां घटिया माल बनाकर भारतीयों को बेचती हैं और भारत का पश्चिमीकरण हो रहा है। अपने कैंपों में इन्होंने भारतीय कंपनियों के नाम के पर्चे भी बंटवाए, ताकि लोगों को पता चल सके कि कौन भारतीय कंपनियां हैं और कौन नहीं।

स्वदेशी का प्रचार…

गाय के गोबर से ईंधन बनाने और गोरक्षा की बात में आगे थे राजीव भाई। एमटेक करने के बाद से इन्होंने पूरे देश में घूम-घूमकर स्वदेशी का प्रचार किया। राजीव भाई ने 13 हजार से ज्यादा व्याख्यान किए, जिसके बाद इनके छह लाख से ज्यादा समर्थक होने का दावा किया जाता है। अपने व्याख्यानों में ये भारत के शानदार इतिहास का जिक्र करते हुए सब कुछ स्वदेशी रखने का आग्रह करते थे।

उनके दिमाग में भारत के पिछले 1500 वर्ष और विश्व के सभी देशों का 500 वर्ष का इतिहास मौखिक रूप से याद था, जिसके कारण उन्हें चलता-फिरता कंप्यूटर कहा जाता था।

उनका निधन 30 नवंबर 2010, को छत्तीसगढ़ के भिलाई में हुआ। उनकी असामयिक मृत्यु कई ऐसे सवाल छोड़ गई है जो आज भी जवाब की प्रतीक्षा में हैं। स्वदेशी आंदोलन के इस महान प्रणेता को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हैं।

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