26 मई 2020
दास मलूखा कह गए सब के दाता राम
होवही सोई जे राम रची रखा, को करी तर्क बढावही शाषा
राम भरोसे बैठ कर लम्बी तान के सोए
अनहोनी होनी नहीं होनी है तो होए
समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता
उत्तर …
धर्म निक्कमेपन की शिक्षा नहीं देता-
▪️1-कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः—
कर्म करते हुए 100 वर्ष जीने की इच्छा करो
▪️2 आस्ते भग आसीनस्योर्ध्वस्तिष्ठति तिष्ठतः ।
शेते निपद्यमानस्य चराति चरतो भगश्चरैवेति ॥
(ऐतरेय ब्राह्मण, अध्याय 3, खण्ड 3)
अर्थ – जो मनुष्य बैठा रहता है, उसका सौभाग्य (भग) भी रुका रहता है । जो उठ खड़ा होता है उसका सौभाग्य भी उसी प्रकार उठता है । जो पड़ा या लेटा रहता है उसका सौभाग्य भी सो जाता है । और जो विचरण में लगता है उसका सौभाग्य भी चलने लगता है।
▪️3 -कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः ।
उत्तिष्ठस्त्रेता भवति कृतं संपाद्यते चरंश्चरैवेति ॥
(ऐतरेय ब्राह्मण, अध्याय 3, खण्ड 3)
अर्थ – शयन की अवस्था कलियुग के समान है, जगकर सचेत होना द्वापर के समान है, उठ खड़ा होना त्रेता सदृश है और उद्यम में संलग्न एवं चलनशील होना कृतयुग (सत्ययुग) के समान है ।
▪️1-रूखी सुखी खाय कर ठण्डा पानी पी, देख पराई चोपड़ी क्यों ललचाए जी.
▪️2 – साईं इतना दीजिए जा में कुटुम्ब समाय, मैं भी भूखा ना रहूँ साधू भूखा ना जाए.
प्रातः कालीन वैदिक प्रार्थना में कहा गया है- वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥ (यजुर्वेदः 19/44) अर्थात हम धन ऐश्वर्य के स्वामी बनें. वेद में गरीब बनने या जल्दी मरने की कामना करने जैसी कोई प्रार्थना नहीं है
सन्तुष्टो भार्यया भर्त्ता भर्त्र भार्या तथैव च।यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम्।।१।।
जिस कुल में भार्य्या से भर्त्ता और पति से पत्नी अच्छे प्रकार प्रसन्न रहती है उसी कुल में सब सौभाग्य और ऐश्वर्य निवास करते हैं। जहां कलह होता है वहां दौर्भाग्य और दारिद्र्य स्थिर होता है।।१।।
यत्र नार्य्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रऽफलाः क्रियाः।।२।।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।न शोचन्ति तु यत्रैता वर्द्धते तद्धि सर्वदा।।३।।
जिस घर में स्त्रियों का सत्कार होता है उस में विद्यायुक्त पुरुष आनन्द से रहते हैं और जिस घर में स्त्रियों का सत्कार नहीं होता वहां सब क्रिया निष्फल हो जाती हैं।।२।।
जिस घर वा कुल में स्त्री शोकातुर होकर दुःख पाती हैं वह कुल शीघ्र नष्ट भ्रष्ट हो जाता है और जिस घर वा कुल में स्त्री लोग आनन्द से उत्साह और प्रसन्नता से भरी हुई रहती हैं वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है।।३।।
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– महर्षि कणाद अपने वैशेषिक दर्शन मे धर्म की परिभाषा लिखते हैं
– यतो अभ्युदय निश्रेयस सिद्धि स एव धर्म –
– जिससे सामाजिक उन्नति हो व मोक्ष की प्राप्ति हो वह धर्म है।
▪️1-सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान अध्याय 2 मे महर्षि धन्वन्तरी अपने शिष्य को जनेऊ देते समय उपदेश देते है-
ब्राह्मण, गुरु, दरिद्र, मित्र, सन्यासी, पास मे नम्रता पूर्वक आए, सज्जन, अनाथ, दूर से आए सज्जनों की चिकित्सा स्वजनों (अपने परिवार के सदस्य) की भांति अपनी औषधियों से करनी चाहिए। यह करना साधु (श्रेष्ठ ) है।
व्याध (शिकारी), चिड़िमार, पतित (नीच आचरण वाला) पाप करने वालो की चिकित्सा धन का लाभ होने पर भी नहीं करनी चाहिए।
ऐसा करने से विद्या सफल होती है, मित्र, यश, धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति होती है। ऐसा ही विवरण चरक संहिता मे मिलता है। (क्या आज का चिकित्सक यह कर्त्तव्य निभाता है)
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