27 March 2025
इतिहास: अतीत का जीवन्त दर्पण
इतिहास केवल बीते समय की घटनाओं का संकलन मात्र नहीं है, बल्कि यह सभ्यता, संस्कृति और परंपराओं का जीवन्त दर्पण है, जो कालक्रमानुसार सत्य पर आधारित होता है। भारतीय इतिहास में गौरवशाली विरासत छिपी है, जिसका प्रमाण हमारे वेद, पुराण, शिलालेख, साहित्यिक ग्रंथ और कालगणना में मिलता है।
भारतीय कालगणना:
वैज्ञानिक दृष्टि
भारतीय कालगणना के अनुसार, कल्प के आरंभ से 1,97,29,49,123 वर्ष और सृष्टि के आरंभ से 1,95,58,85,123 वर्ष बीत चुके हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार, कलियुग के 5123 वर्ष और विक्रम संवत के 2081 वर्ष हो चुके हैं। यह गणना भारतीय ज्योतिषीय पद्धति पर आधारित है, जो खगोलीय गणनाओं की प्राचीनतम प्रणाली मानी जाती है।
भारतीय उपमहाद्वीप का भौगोलिक इतिहास
विज्ञान और अन्वेषण से पता चला है कि कोई 500 लाख वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप एशिया से अलग एक पृथक महाद्वीप था, जो बाद में एशिया से जुड़ गया। इसी भूगर्भीय प्रक्रिया के कारण हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ, जो दो टेक्टोनिक प्लेटों के टकराने से बना है। यह दर्शाता है कि भारत का भूगोल केवल प्राकृतिक परिवर्तन का ही परिणाम नहीं बल्कि मानव सभ्यता के विकास से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
इतिहास की चुनौतियाँ और नष्ट विरासत
भारतीय इतिहास वेदों, पुराणों और शास्त्रों पर आधारित है, परंतु विदेशी आक्रमणों के कारण इसकी बहुत क्षति हुई है। भारत के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय, जैसे नालंदा और तक्षशिला, जिन्हें विश्व के प्राचीनतम ज्ञान केंद्रों में गिना जाता था, को लूटकर जला दिया गया। हजारों वर्षों की बौद्धिक और सांस्कृतिक धरोहर नष्ट कर दी गई। अंग्रेजों ने भी भारतीय इतिहास को अपने दृष्टिकोण से लिखा, जिससे हमारी वास्तविक गौरवशाली परंपरा दब गई।
इतिहास का महत्व
इतिहास हमें अतीत की सीख देता है और भविष्य के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह केवल राजाओं और युद्धों की कहानियाँ नहीं, बल्कि समाज, संस्कृति, विज्ञान और दर्शन का दर्पण है। भारतीय इतिहास की समृद्धता को सही रूप में समझने और प्रचारित करने की आवश्यकता है, ताकि हम अपनी विरासत को सहेजकर आगे बढ़ सकें।
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