19 January 2024
जनवरी 19 जब-जब यह तारीख आती है, कश्मीरी हिन्दुओं के जख्म हरे हो जाते हैं । यही वह तारीख है जिस दिन जम्मू कश्मीर में बसे हिन्दुओं को अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर कर दिया गया था । इस तारीख ने उनके लिए जिंदगी के मायने ही बदल दिए थे ।
आपको बता दें कि उस दौर में कश्मीर से केवल पंडितों को ही नहीं बल्कि तमाम हिन्दुओं को प्रताड़ित करके भगाया गया था। हमारे अधूरे इतिहास में केवल पंडितों का नाम इसलिए ऊपर किया गया है ताकि दूसरे हिन्दू भाई शांत रहें । क्योंकि ये नकली इतिहासकार अच्छे से जानते हैं कि हिंदू जाति-पाति में बंटे हैं, एक नहीं है… इसलिए केवल ब्राह्मणों का ही उल्लेख किया गया है।
कश्मीेरी हिन्दुओं को बताया काफिर-
देश की आजादी के बाद धरती के स्वर्ग कश्मीर में नरक का मौहाल बन चुका था । 19 जनवरी 1990 की काली रात को करीब 3 लाख कश्मीरी हिंदुओं ( जिनमें बड़ी संख्या में पंडित थे ) को अपना घर,दुकान,जमीन आदि छोड़कर पलायन को मजबूर होना पड़ा था । अलगावादियों ने हिन्दुओ के घर पर एक नोटिस चस्पा की थी, जिसपर लिखा था कि ‘या तो मुस्लिम बन जाओ या फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ…या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ ।’
20 जनवरी 1999 को कश्मीर की मस्जिदों से कश्मीरी हिन्दुओं को काफिर करार दिया गया । मस्जिदों से लाउडस्पीकरों के जरिए ऐलान किया गया, ‘कश्मीरी पंडित समेत सभी हिन्दू या तो मुसलमान धर्म अपना लें, या चले जाएं या फिर मरने के लिए तैयार रहें ।’ यह ऐलान इसलिए किया गया ताकि कश्मीरी हिंदुओं के घरों को पहचाना जा सके और उन्हें या तो इस्लाम कुबूल करने के लिए मजबूर किया जाए या फिर उन्हें मार दिया जाए ।
कश्मीरी हिन्दुओं के सिर काटे गए, कटे सिर वाले शवों को चौक-चौराहों पर लटकाया गया था ।
बड़ी संख्या में कश्मीरी हिन्दुओं ने अपने घर छोड़ दिए । आंकड़ों के मुताबिक 1990 के बाद करीब 7 लाख से अधिक कश्मीरी हिन्दू अपने घरों को छोड़कर कश्मीर से विस्थापित होने को मजबूर हुए ।
खुलेआम हुए थे बलात्कार!!
एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ जिहादियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद मार-मार कर उसकी हत्या कर दी । घाटी में कई कश्मीरी हिन्दुओं की लड़कियों के साथ जिहादियों ने सामूहिक बलात्कार किया और लड़कियों के अपहरण किए गए ।
मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरियों को कहा गया कि इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाएं ।
डर की वजह से वापस लौटने से कतराते!!
आज भी कश्मीेरी हिन्दुओं के अंदर का डर उन्हें वापस लौटने से रोक देता है । कश्मीरी हिन्दुओं ने घाटी छोड़ने से पहले अपने घरों को कौड़ियों के दाम पर बेचा था । 34 वर्षों में कीमतें कई गुना तक बढ़ गई हैं । आज अगर वह वापस आना भी चाहें तो नहीं आ सकते क्योंकि न तो उनका घर है और न ही घाटी में उनकी जमीन बची है । इस मौके पर अभिनेता अनुपम खेर ने एक कविता शेयर की है । आप भी देखिए अनुपम ने कैसे कश्मीरी हिन्दुओं का दर्द बयां किया है ।
कर्नाटक के श्री प्रमोद मुतालिक, श्रीराम सेना (राष्ट्रिय अध्यक्ष) ने बताया कि यह कश्मीरी हिंदुओं के विस्थापन का प्रश्न नहीं, यह पूरे भारत की समस्या है । हिंदुओं को 1990 में कश्मीर से क्यों निकाला गया ? क्या वो कोई दंगा कर रहे थे ? या उनके घर में हथियार थे ?
उन्हें केवल इसलिए वहां से निकाल दिया गया क्योंकि वे ’हिन्दू´ हैं । आज यही समस्या भारत के विविध राज्यों में उभरनी शुरू हो गई है । इसलिए आज एक भारत अभियान की/राष्ट्र निर्माण की आवश्यकता है ।
अधिवक्ता श्रीमती चेतना शर्मा, हिन्दू स्वाभिमान, उत्तर प्रदेश ने बताया कि राजनैतिक दलों ने हर जगह जाति का नाम देकर हर मामले को राजनैतिक करने का प्रयास किया है । परंतु आज समय आ गया है कि जो स्थिति जैसी है, वैसा ही सत्य रूप दुनिया के सामने लाया जाए । जब भी, जहां भी जनसांख्यिकी बदली है, वहां कश्मीर बना है । अब उत्तर प्रदेश की भी स्थिति वैसी ही होना शुरु हो गई है । कैराना में जो हुआ, वही आज उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में भी होने लगा है । अब मात्र 10 वर्ष में या तो भारत हिन्दू राष्ट्र होगा या हिन्दू विहीन राष्ट्र !
आपको बता दें कि 14 सितंबर 1989 को बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष टिक्कू लाल टपलू की हत्या से कश्मीर में शुरू हुए आतंक का दौर समय के साथ और वीभत्स होता चला गया ।
टिक्कू की हत्या के महीने भर बाद ही जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल बट को मौत की सजा सुनाने वाले सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गई । फिर 13 फरवरी को श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की निर्मम हत्या के साथ ही आतंक अपने चरम पर पहुंच गया था । उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई । उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओं और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की ।
उन कश्मीर हिन्दुओं की हालात की कल्पना कीजिये जब उनके घरों में सामान बिखरा पड़ा था । गैस स्टोव पर देग़चियां और रसोई में बर्तन इधर-उधर फेंके हुए थे । घरों के दरवाज़े खुले थे । हर घर का ऐसा ही हाल था । ऐसा लगता था कि कोई बहुत बड़ा भूकंप के कारण घर वाले अचानक अपने घरों से भाग खड़े हुए हों..कश्मीरी हिन्दू हिंसा, आतंकी हमले और हत्याओं के माहौल में जी रहे थे । सुरक्षाकर्मी थे लेकिन उन्हें मना किया गया था चुप रह कर सब देखते रहने के लिये… ये बात आज तक रहस्य है !
शुरू में उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं । “जम्मू में पहले वो लोग सस्ते होटल में रहे, छोटी-छोटी जगहों पर रहे । बाद में एक धर्मशाला में रहे.. इतना ही नहीं, उनके पेट भीख माग कर भी पले… ।
सरकार प्रयास करें कि वहाँ पुनः हिन्दू बसें।
अन्य राज्यों में हिंदू कम हो रहे हैं। उसके लिए जनता भी ध्यान दे कि जिस तरह से पिछले 75 साल से मुसलमान 8-8 , 10-10 बच्चों को पैदा कर रहे हैं तो हिंदुओं को कम से कम अपनी भी संख्याबल, जन बल पर विचार करना चाहिए और हम दो हमारे दो के फार्मूले को दूर से ही तिलांजलि दे देनी चाहिए ।
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