चैत्र नवरात्रि: शक्ति उपासना और नवसंवत्सर का शुभारंभ

30 March 2025

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चैत्र नवरात्रि: शक्ति उपासना और नवसंवत्सर का शुभारंभ

 

चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म में देवी दुर्गा की पूजा और उपासना के लिए मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह नवरात्रि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है और इसे वसंत नवरात्रि भी कहा जाता है। इसी दिन से हिंदू नववर्ष (विक्रम संवत) और गुड़ी पड़वा की भी शुरुआत होती है, जिससे इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

 

यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत, पश्चिम भारत और नेपाल में धूमधाम से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में भी इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाने की परंपरा है।

 

चैत्र नवरात्रि का महत्व और आध्यात्मिक पहलू

 

नवरात्रि का अर्थ है नौ रातों का उत्सव, जिसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय, अज्ञान पर ज्ञान की जीत और नकारात्मकता पर सकारात्मकता की स्थापना का प्रतीक है।

 

नवसंवत्सर का प्रारंभ

 

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन ही विक्रम संवत (हिंदू नववर्ष) की शुरुआत होती है। इसे युगादि भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है नए युग की शुरुआत।

 

माँ दुर्गा की आराधना और शक्ति उपासना

 

इन नौ दिनों में भक्त माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं और उनसे शक्ति, ज्ञान, स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं।

 

राम नवमी का उत्सव

 

चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन राम नवमी का पर्व मनाया जाता है, जो भगवान श्रीराम के जन्मदिवस के रूप में प्रसिद्ध है। इसलिए, यह नवरात्रि विशेष रूप से श्रीराम भक्तों के लिए भी महत्वपूर्ण होती है।

 

चैत्र नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा

 

हर दिन देवी दुर्गा के एक अलग रूप की पूजा की जाती है:

 

️माँ शैलपुत्री – शक्ति और साहस का प्रतीक।

️माँ ब्रह्मचारिणी – तप, संयम और ज्ञान का प्रतीक।

️माँ चंद्रघंटा – शक्ति और शौर्य की देवी।

️माँ कूष्मांडा – सृष्टि की रचनाकार।

️ माँ स्कंदमाता – प्रेम और वात्सल्य की देवी।

️ माँ कात्यायनी – विजय और युद्ध की देवी।

️माँ कालरात्रि – भय को समाप्त करने वाली देवी।

️ माँ महागौरी – शांति और करुणा की देवी।

️ माँ सिद्धिदात्री – सिद्धियों और मोक्ष की देवी।

 

चैत्र नवरात्रि के अनुष्ठान और रीति-रिवाज

 

कलश स्थापना (घटस्थापना)

 

नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना से होती है। एक मिट्टी के बर्तन में जौ बोए जाते हैं, जो सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक होते हैं। घटस्थापना को शुभ मुहूर्त में किया जाता है।

 

माँ दुर्गा की पूजा और आरती

 

भक्त सुबह और शाम देवी दुर्गा की पूजा और आरती करते हैं। इस दौरान महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की आराधना की जाती है।

 

उपवास (व्रत) और नियम

 

कई भक्त नवरात्रि में उपवास (व्रत) रखते हैं। इस दौरान सात्त्विक भोजन किया जाता है और प्याज, लहसुन व तामसिक चीजों का सेवन नहीं किया जाता। भोजन में फलों, दूध, साबूदाना, कुट्टू के आटे और सिंघाड़े का उपयोग किया जाता है।

 

कन्या पूजन (अष्टमी/नवमी को)

 

नवरात्रि के अष्टमी या नवमी तिथि को कन्या पूजन किया जाता है। नौ छोटी कन्याओं को माँ दुर्गा का रूप मानकर पूजन कर उन्हें भोजन कराया जाता है।

 

चैत्र नवरात्रि का वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व

 

मौसम परिवर्तन: चैत्र नवरात्रि के दौरान गर्मी का आगमन होता है और शरीर में ऊर्जा संतुलन बनाए रखने के लिए व्रत रखना लाभकारी होता है।

सकारात्मक ऊर्जा: नवरात्रि में की गई साधना और ध्यान से मानसिक शांति मिलती है।

ज्योतिषीय दृष्टि: चैत्र नवरात्रि के समय सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, जिससे नए वर्ष की शुरुआत होती है।

 

श्रीराम द्वारा शक्ति उपासना

 

रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने रावण का वध करने के लिए माँ दुर्गा की उपासना की थी। उन्होंने नौ दिनों तक नवरात्रि का व्रत रखा और दसवें दिन रावण का वध कर विजय प्राप्त की।

 

चैत्र नवरात्रि और अन्य नवरात्रि

 

शारदीय नवरात्रि – यह सितंबर-अक्टूबर में आती है और विजयादशमी और दुर्गा पूजा के रूप में प्रसिद्ध है।

 

गुप्त नवरात्रि – यह साल में दो बार (माघ और आषाढ़) आती है और विशेष रूप से तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।

 

निष्कर्ष

 

चैत्र नवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण, शक्ति उपासना और नवसंवत्सर की शुरुआत का प्रतीक है। यह नौ दिन आत्मचिंतन, साधना और भक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। यह पर्व हमें धर्म, सत्य, शक्ति और साधना की ओर प्रेरित करता है।

 

आप सभी को चैत्र नवरात्रि और हिंदू नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!

 

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