क्या निचली अदालतों के न्यायधीशों के निर्णय संदेहास्पद है❓

05 November 2024

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क्या निचली अदालतों के न्यायधीशों के निर्णय संदेहास्पद है❓

 

जी हां, ये चौकाने वाली बात है, लेकिन सच है। हाल ही में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि निचली अदालत के न्यायाधीश प्रायः अपनी प्रतिष्ठा बचाने या अपने कैरियर की संभावनाओं की रक्षा करने के लिए, कई मामलों में निर्दोष व्यक्तियों को दोषी ठहरा देतें है।

 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक कानून लाने का आह्वान किया है, जिसके तहत आपराधिक मामलों में गलत तरीके से दोषारोपण करके, झूठा मुकदमा चलाने वालों पर दंडात्मक कार्यवाही और निर्दोष व्यक्तियों को मुआवजा दिया जा सके।

 

क्योंकि, यह एक गंभीर मुद्दा है, जो न केवल न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है, बल्कि उन निर्दोष लोगों के जीवन को भी प्रभावित करता है जिन पर गलत तरीके से आरोप लगाए जातें है। ऐसे में एक कानून बनाने से न केवल न्याय प्रणाली में सुधार होगा, बल्कि यह उन लोगों को भी न्याय दिलाने में मदद करेगा जो गलत तरीके से पीड़ित हुए है।”

 

विष्णु तिवारी जी का केस सबको पता है, की उन्हें २० साल बाद न्याय मिला तब तक उनका पूरा परिवार दुःख, अपमान और सामाजिक रोष की बलि चढ़ चुका था। उनकी, खुद की पूरी जिंदगी, नाहक, सलाखों के पीछे बर्बाद हो चुकी थी और अब उनके लिए तथाकथित प्रतिष्ठित समाज में कोई स्थान नहीं रहा।

 

ऐसे, और भी कई केसेस है, जहां निचली अदालत के गलत फैसले के कारण निर्दोषों की खुद की जिंदगी के साथ-साथ, उनके पूरे परिवार की जिदंगी बर्बाद हो चुकी है।

 

ऐसे ही एक प्रसिद्ध संत, श्री आसारामजी बापू को भी निचली अदालत ने बिना किसी ठोस सबूत के, पिछले ११ सालों से सलाखों के पीछे रखा है। जहां उन पर, जोधपुर और अहमदाबाद के दो झूठे,बेहद फर्जी केस में, बापू की निर्दोषत्व के कई प्रमाण होने के बावजूद, उन्हें अजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।

 

जबकि, दोनों केसों के फैसले में खुद जज ने स्वीकारा है कि आसाराम बापू के खिलाफ कोई अहम सबूत नहीं है और इसके बावजूद, सिर्फ और सिर्फ लड़की के मौखिक बयान को आधार मान कर, बेहद झूठे केस में उनको सजा सुनाई गई है।

 

अब, यहां सवाल उठता है, कि जब बापू आसाराम निर्दोष छूटकर बाहर आएंगे, तब उनके जीवन के पिछले ११ सालों की भारपाई कौन कर पाएगा ? उनके निर्दोष होने के बावजूद जो बदनामी हुई है,क्या उसका मुआवजा चुकाया जा सकता है?

 

निष्कर्ष

 

न्यायपालिका की विश्वसनीयता बढ़ाने और निर्दोषों पर हुए अन्याय की अंशतः भरपाई करने के लिए, निर्दोषों को मुआवजा और गलत दोषारोपण करके सजा दिलवाने वालों पर दंडात्मक कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए ताकि भविष्य में न्यायधीशों के गलत फैसले से, किसी निर्दोष की जिंदगी बर्बाद न हो पाएं।

 

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