सुप्रीम कोर्ट ने जो कानून में बदलाव की सरकार से मांग की वे आपके लिए अति जरूरी हैं

 

सुप्रीम कोर्ट ने जो कानून में बदलाव की सरकार से मांग की वे आपके लिए अति जरूरी हैं

 

8 May 2024

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में महिला उत्पीड़न के झूठे आरोपों पर लगाम लगाने के लिए भारतीय न्याय संहिता में समुचित बदलाव करने पर केंद्र सरकार और विधायिका को फिर से विचार करने की बात कही है

 

संसद से पास हुए और चीफ जस्टिस की तारीफ से सराबोर तीन नए आपराधिक कानून देश भर में पहली जुलाई से लागू होने वाले हैं। लेकिन संसद से इनकी मंजूरी के चार महीने बाद और लागू होने से दो महीने पहले ही भारतीय न्याय संहिता के एक अहम प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में महिला उत्पीड़न के झूठे आरोपों पर लगाम लगाने के लिए भारतीय न्याय संहिता में समुचित बदलाव करने पर केंद्र सरकार और विधायिका को फिर से विचार करने की बात कही है।

 

धारा 85 और 86 में बदलाव पर विचार

 

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने अपने एक फैसले में कहा कि केंद्र झूठी शिकायतें दर्ज कराए जाने की लगातार बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 85 और 86 में जरूरी बदलाव करने पर वक्त रहते विचार और सुधार करे। यानी ये नए कानून लागू होने से पहले ही इस पर विचार हो जाए तो बेहतर होगा।

 

‘संवेदनशील मुद्दों पर गौर करे विधायिका…’

 

कोर्ट ने कहा कि ये धाराएं हू-ब-हू आईपीसी की धारा 498 (ए) जैसी ही है। फर्क बस यह है कि धारा 498 (ए) का स्पष्टीकरण भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 86 में दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि हम विधायिका से गुजारिश करते हैं कि वह हकीकत के मद्देनजर इस संवेदनशील मुद्दे पर गौर करे। भारतीय न्याय संहिता, 2023 के लागू होने से पहले धारा 85 और 86 में जरूरी बदलाव होना चाहिए।

 

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि वह भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 और 86 पर गौर कर रही है। कोर्ट ने रजिस्ट्री को इस फैसले की एक-एक कॉपी केंद्रीय विधि सचिव और गृह सचिव को भेजने का निर्देश दिया है। यही दोनों इस पर अपनी अनुशंसा और टिप्पणी के साथ इसे विधि और न्याय मंत्री के साथ-साथ गृह मंत्री के समक्ष रखेंगे।

 

नए कानून की धारा 85 और 86 में क्या कहा गया है?

 

BNS की धारा 85 में कहा गया है कि अगर महिला का पति या पति का रिश्तेदार उसके साथ क्रूरता करेगा, तो अपराध सिद्ध होने पर उसे तीन साल तक जेल की सजा दी जाएगी। साथ ही उस पर नकद जुर्माना भी लगाया जाएगा। इस प्रावधान के साथ बीएनएस की धारा 86 “क्रूरता” की परिभाषा विस्तृत व्याख्या के साथ बताती है। इसमें पीड़ित महिला को मानसिक और शारीरिक, दोनों तरह से होने वाले नुकसान शामिल हैं।

 

पीठ ने कहा कि उसने 14 साल पहले केंद्र से दहेज विरोधी कानून यानी IPC की धारा 498ए पर फिर से विचार करने के लिए कहा था, क्योंकि बड़ी संख्या में दहेज प्रताड़ना की शिकायतों में घटना को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता रहा है।

 

कोर्ट ने यह सुझाव क्यों दिया?

 

अदालत ने ये बातें एक महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ दायर दहेज-उत्पीड़न के मामले को रद्द करते हुए कही हैं। पीड़ित पत्नी की तरफ से दर्ज कराई गई FIR के मुताबिक, पति और उसके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर दहेज की मांग की और उसे मानसिक और शारीरिक नुकसान पहुंचाया। जबकि पीड़ित महिला के परिवार ने शादी के वक्त बड़ी रकम खर्च की थी। उसका “स्त्रीधन” भी पति और उसके परिवार को सौंप दिया था लेकिन शादी के कुछ वक्त बाद ही पति और उसके परिवार ने उसे झूठे बहाने से परेशान करना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि वह एक पत्नी और घर की बहू के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रही है। इसकी आड़ में उस पर अपने मायके से और ज्यादा दहेज लाने के लिए दबाव भी डाला जाता रहा।

 

बेंच ने कहा कि FIR और चार्जशीट यह इशारा करती है कि महिला के आरोप काफी अस्पष्ट, सामान्य और व्यापक हैं। साथ ही उनमें आपराधिक आचरण का कोई उदाहरण भी नहीं दिया गया है। पहली जुलाई को लागू होने के लिए प्रस्तावित इन तीनों कानूनी संहिताओं को पिछले साल 21 दिसंबर को संसद की मंजूरी मिल गई थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर को इनको अपनी सहमति देते हुए हस्ताक्षर भी कर दिए थे। स्त्रोत: आजतक

 

सुप्रीम कोर्ट ने झूठे केस दर्ज के बारे में चिंता जाहिर किया वे भारत की जनता के हित में है, आजकल बदला लेने, पैसा ऐठने अथवा साजिश के तहत जेल भेजने के लिए महिला सुरक्षा कानूनों का भयंकर दुरुपयोग हो रहा है, इससे समाज को काफी नुकसान हो रहा है, जिस निर्दोष पुरूष को जेल भेजा जाता हैं उनकी मां, बहन, बेटी, पत्नी और पुरा परिवार परेशान होता है है इसलिए समाज के हित के लिए जूठे केस दर्ज करने वालो पर कड़ी कार्यवाही का भी कानून होना चाहिए जिससे समानता बनी रहे नहीं तो फिर एक के बाद एक निर्दोष पुरूष फंसते जाएंगे।

 

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