हमे कैसा साहित्य पढ़ना चाहिए? किस साहित्य से नुकसान और किससे फायदा होगा?

🚩हमे कैसा साहित्य पढ़ना चाहिए? किस साहित्य से नुकसान और किससे फायदा होगा?

21 नवंबर 2021
azaadbharat.org

🚩जैसा साहित्य हम पढ़ते हैं, वैसे ही विचार मन के भीतर चलते रहते हैं और उन्हींसे हमारा सारा व्यवहार प्रभावित होता है। जो लोग कुत्सित, विकारी और कामोत्तेजक साहित्य पढ़ते हैं, वे कभी ऊपर नहीं उठ सकते। उनका मन सदैव काम-विषय के चिंतन में ही उलझा रहता है और इससे वे अपनी वीर्यरक्षा करने में असमर्थ रहते हैं। गन्दे साहित्य कामुकता का भाव पैदा करते हैं। सुना गया है कि पाश्चात्य जगत से प्रभावित कुछ नराधम चोरी-छिपे गन्दी फिल्मों का प्रदर्शन करते हैं जो अपना और अपने संपर्क में आनेवालों का विनाश करते हैं। ऐसे लोग महिलाओं, कोमल वय की कन्याओं तथा किशोर एवं युवावस्था में पहुँचे हुए बच्चों के साथ बड़ा अन्याय करते हैं। ‘ब्ल्यू फिल्म’ देखने-दिखानेवाले महा अधम कामान्ध लोग मरने के बाद शूकर, कूकर आदि योनियों में जन्म लेकर अथवा गन्दी नालियों के कीड़े बनकर छटपटाते हुए दु:ख भोगेंगे ही। निर्दोष कोमलवय के नवयुवक उन दुष्टों के शिकार न बनें, इसके लिए सरकार और समाज को सावधान रहना चाहिए।

🚩बालक देश की संपत्ति हैं। ब्रह्मचर्य के नाश से उनका विनाश हो जाता है।अतः नवयुवकों को मादक द्रव्यों, गन्दे साहित्यों व गन्दी फिल्मों से बर्बाद होने से बचाया जाये। वे ही तो राष्ट्र के भावी कर्णधार हैं। युवक-युवतियाँ तेजस्वी हों, ब्रह्मचर्य की महिमा समझें इसके लिए हम सब लोगों का कर्त्तव्य है कि स्कूलों-कालेजों में विद्यार्थियों तक ब्रह्मचर्य पर लिखा गया साहित्य पहुँचायें। सरकार का यह नैतिक कर्त्तव्य है कि वह ब्रह्मचर्य विषय पर शिक्षा प्रदान कर विद्यार्थियों को सावधान करे ताकि वे तेजस्वी बनें। जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनके जीवन पर दृष्टिपात करें तो उनपर किसी-न-किसी सत्साहित्य की छाप मिलेगी। अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक इमर्सन के गुरु थोरो ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। उन्होंने लिखा है: “मैं प्रतिदिन गीता के पवित्र जल से स्नान करता हूँ। यद्यपि इस पुस्तक को लिखनेवाले देवताओं को अनेक वर्ष व्यतीत हो गये, लेकिन इसके बराबर की कोई पुस्तक अभी तक नहीं निकली है।”

🚩योगेश्वरी माता गीता के लिए दूसरे एक विदेशी विद्वान्, इंग्लैण्ड के एफ. एच. मोलेम कहते हैं: “बाइबिल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। जो ज्ञान गीता में है, वह ईसाई या यहूदी बाइबिलों में नहीं है। मुझे यही आश्चर्य होता है कि भारतीय नवयुवक यहाँ इंग्लैण्ड तक पदार्थ विज्ञान सीखने क्यों आते हैं? नि:संदेह पाश्चात्यों के प्रति उनका मोह ही इसका कारण है। उनके भोलेभाले हृदयों ने निर्दय और अविनम्र पश्चिमवासियों के दिल अभी पहचाने नहीं हैं इसीलिए उनकी शिक्षा से मिलनेवाले पदों की लालच से वे उन स्वार्थियों के इन्द्रजाल में फंसते हैं अन्यथा जिस देश या समाज को गुलामी से छुटना हो उसके लिए तो यह अधोगति का ही मार्ग है।”
🚩सुप्रसिद्ध पत्रकार पॉल ब्रिन्टिन सनातन धर्म की ऐसी धार्मिक पुस्तकें पढ़कर जब प्रभावित हुआ तभी वह हिन्दुस्तान आया था और यहाँ के रमण महर्षि जैसे महात्माओं के दर्शन करके धन्य हुआ था। देशभक्तिपूर्ण साहित्य पढ़कर ही चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, वीर सावरकर जैसे रत्न अपने जीवन को देशहित में लगा पाये।

🚩इसलिये सत्साहित्य की तो जितनी महिमा गाई जाये, उतनी कम है। श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, उपनिषद, दासबोध, सुखमनि, विवेकचूड़ामणि आदि भारतीय संस्कृति की ऐसी कई पुस्तकें हैं जिन्हें पढ़ो और उन्हें अपने दैनिक जीवन का अंग बना लो। ऐसी-वैसी विकारी और कुत्सित पुस्तक-पुस्तिकाएँ हों तो उन्हें उठाकर कचरे के ढ़ेर पर फेंक दो या चूल्हे में डालकर आग तापो, मगर न तो स्वयं पढ़ो और न दूसरे के हाथ लगने दो।

🚩इस प्रकार के आध्यात्मिक साहित्य-सेवन में ब्रह्मचर्य मजबूत करने की अथाह शक्ति होती है। प्रातःकाल स्नानादि के पश्चात दिन के व्यवसाय में लगने से पूर्व एवं रात्रि को सोने से पूर्व कोई-न-कोई आध्यात्मिक पुस्तक पढ़ना चाहिए। इससे वे ही सतोगुणी विचार मन में घूमते रहेंगे जो पुस्तक में होंगे और हमारा मन विकारग्रस्त होने से बचा रहेगा, जीवन उन्नत होने लगेगा। – साभार – संत श्री आशारामजी आश्रम से प्रकाशित दिव्य प्रेरणा प्रकाश साहित्य से

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