2 अगस्त 2021
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🚩पवनपुत्र हनुमानजी की आराधना तो सभी सनातनी लोग करते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं, पर यह कब लिखा गया, इसकी उत्पत्ति कहाँ और कैसे हुई- यह जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी।
🚩बात 1600 ईस्वी की है, यह काल अकबर और तुलसीदासजी के समय का काल था।
एक बार तुलसीदासजी मथुरा जा रहे थे, रात होने से पहले उन्होंने अपना पड़ाव आगरा में डाला, लोगों को पता लगा कि तुलसीदासजी आगरा में पधारे हैं। यह सुनकर उनके दर्शनों के लिए लोगों का ताँता लग गया। जब यह बात बादशाह अकबर को पता चली तो उसने बीरबल से पूछा कि यह तुलसीदास कौन हैं।
तब बीरबल ने बताया- इन्होंने ही रामचरित मानस की रचना की है, यह रामभक्त तुलसीदासजी हैं, मैं भी इनके दर्शन करके आया हूँ। अकबर ने भी उनके दर्शन की इच्छा व्यक्त की और कहा- मैं भी उनके दर्शन करना चाहता हूँ।
🚩बादशाह अकबर ने अपने सिपाहियों की एक टुकड़ी तुलसीदासजी के पास भेजा जिसने तुलसीदासजी को बादशाह का पैगाम सुनाया कि आप लालकिले में हाजिर हों। यह पैगाम सुनकर तुलसीदासजी ने कहा कि मैं भगवान श्रीराम का भक्त हूँ, बादशाह और लालकिले से मुझे क्या लेना-देना और लालकिले जाने से साफ मना कर दिया। जब यह बात बादशाह अकबर तक पहुँची तो उसे बहुत बुरी लगी और बादशाह अकबर गुस्से में लालताल हो गया और उसने तुलसीदासजी को जंज़ीरों से जकड़वा कर लालकिला लाने का आदेश दिया। जब तुलसीदासजी जंजीरों से जकड़े लालकिला पहुंचे तो अकबर ने कहा कि आप कोई करिश्माई व्यक्ति लगते हो, कोई करिश्मा करके दिखाओ। तुलसीदास ने कहा- मैं तो सिर्फ भगवान श्रीरामजी का भक्त हूँ, कोई जादूगर नही हूँ जो आपको कोई करिश्मा दिखा सकूँ। अकबर यह सुन कर आगबबूला हो गया और आदेश दिया की इनको जंजीरों से जकड़ कर काल कोठरी में डाल दिया जाये।
दूसरे दिन इसी आगरा के लालकिले पर लाखों बंदरों ने एक साथ हमला बोल दिया, पूरा किला तहस नहस कर डाला। लालकिले में त्राहि-त्राहि मच गई, तब अकबर ने बीरबल को बुलाकर पूछा कि बीरबल यह क्या हो रहा है; तब बीरबल ने कहा- हुज़ूर आप करिश्मा देखना चाहते थे तो देखिये। अकबर ने तुरंत तुलसीदासजी को काल कोठरी से निकलवाया और जंजीरें खोल दी गईं।
🚩तुलसीदासजी ने बीरबल से कहा मुझे बिना अपराध के सजा मिली। मैंने काल कोठरी में भगवान श्रीराम और हनुमानजी का स्मरण किया। मैं रोता जा रहा था और रोते-रोते मेरे हाथ अपने आप कुछ लिख रहे थे। यह 40 चौपाई हनुमानजी की प्रेरणा से लिखी गई हैं। कारागार से छूटने के बाद तुलसीदासजी ने कहा- जैसे हनुमानजी ने मुझे कारागार के कष्टों से छुड़वाकर मेरी सहायता की है उसी तरह जो भी व्यक्ति कष्ट में या संकट में होगा और इसका पाठ करेगा, उसके कष्ट और सारे संकट दूर होंगे। इसको हनुमान चालीसा के नाम से जाना जायेगा।
🚩अकबर बहुत लज्जित हुआ और उसने तुलसीदासजी से माफ़ी मांगी और पूरी इज़्ज़त और पूरी हिफाजत, लाव-लश्कर से मथुरा भिजवाया।
🚩आज हनुमान चालीसा का पाठ सभी लोग कर रहे हैं और हनुमानजी की कृपा उन सभी पर हो रही है। सभी के संकट दूर हो रहे हैं। हनुमानजी को इसीलिए “संकट मोचन” भी कहा जाता है।
🚩हनुमानजी का पराक्रम अवर्णनीय है। आज के आधुनिक युग में ईसाई मिशनरियां अपने स्कूलों में पढ़ाती हैं कि हनुमानजी भगवान नहीं, एक बंदर थे। बन्दर कहने वालों पहले अपनी बुद्धि का इलाज कराओ। हनुुमानजी शिवजी के अवतार हैं। भगवान श्री राम के कार्य में साथ देने (राक्षसों का नाश और धर्म की स्थापना करने ) के लिए भगवान शिवजी ने हनुमानजी का अवतार धारण किया था ।
🚩पृथ्वी पर सात मनीषियों को अमरत्व (चिरंजीविता) का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमानजी आज भी पृथ्वी पर विचरण करते हैं।
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