16 नवंबर 2021
azaadbharat.org
🚩इंडोनेशिया के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति सुकर्णो की पुत्री सुकमावती ने 26 अक्टूबर 2021 को जैसे ही इस्लाम छोड़ हिन्दू धर्म अपनाया, भारत में इंडोनेशिया सुर्खियाँ बटोरने लगा। इंडोनेशिया में हिंदुओं की संख्या 2% से भी कम है और यहाँ के 17 हजार से अधिक द्वीप समूहों में बाली एकमात्र द्वीप है, जहाँ हिन्दू बहुसंख्यक हैं। बावजूद, जिस प्रकार से लोग हिन्दू धर्म में लौट रहे हैं, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं।
🚩इंडोनेशिया के हिन्दुओं के पास कोई हिन्दू संगठन नहीं है, न कोई हिंदूवादी राजनीतिक पार्टी। उनके पास ना कोई मठ है, ना कोई मठाधीश; फिर भी ऐसा लग रहा है मानो विश्व का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला देश अब हिन्दू बन जाने को लालायित है।
🚩सत्तर के दशक में सुलावेसी द्वीप के तोराजा लोगों ने हिन्दू धर्म में लौटने के अवसर को सबसे पहले पहचाना था। 1977 में सुमात्रा के कारो एवं बाटाक और 1980 में कालीमंतन के गाजू एवं दायक भी हिन्दू धर्म की छत्रछाया में लौट आए। इसके बाद अनेक स्थानीय जीवात्मवादी एवं जनजातीय धर्मों ने भी अपने अस्तित्व की रक्षा एवं इस्लाम और ईसाईयत के दबावों से बचने के लिए स्वयं को हिन्दू घोषित किया। साथ ही सन 1965 की उथल-पुथल के समय स्वयं को मुस्लिम घोषित करने वालों लाखों जनजातीय लोग भी अब हिन्दू धर्म में लौट रहे हैं।
🚩जावा में शिक्षा प्राप्त करनेवाली सुदेवी 1990 में जज बनीं थीं। उनका पालन-पोषण मुस्लिम के रूप में हुआ था, किन्तु उन्होंने भी बाद में हिन्दू धर्म अपना लिया। रवि कुमार ने अपनी पुस्तक ‘इंडोनेशिया में हिंदू पुनरुत्थान’ को दस लाख से अधिक इंडोनेशियाई मुस्लिमों के हिन्दू धर्म में लौटने की कहानी बताई है। इस पुस्तक में उन्होंने उल्लेख किया है कि ‘सन 1999 की एक रिपोर्ट में नेशनल इंडोनेशियन ब्यूरो ऑफ़ स्टेटिस्टिक्स ने माना था कि गत दो दशकों में लगभग 1 लाख जावा निवासी आधिकारिक तौर पर इस्लाम से हिन्दू धर्म में वापस लौट गए हैं।’
🚩2017 में जावा की राजकुमारी कांजेंग महेंद्राणी ने भी हिन्दू धर्म अपना लिया था। हाल के वर्षों में सुकर्णों के परिवार से संबंध रखने वाले अनेक लोगों ने हिन्दू धर्म अपनाया है, जिनमें सबसे ताजा नाम ‘सुकमावती’ का है। इंडोनेशिया में ‘सुकमावती’ का जिस प्रकार का कद है, इससे यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि आगे उनके अनेक अनुयायी भी उनके पीछे हिन्दू धर्म में लौट आएँगे।
🚩तो प्रश्न है- इंडोनेशियाई मुसलमान हिन्दू धर्म क्यों अपना रहे हैं?
🚩सुकमावती के हिन्दू धर्म अपनाने के बाद भारतीय मीडिया ने मुख्य रूप से सबदापालन की उस भविष्यवाणी को याद किया जब सन 1478 में उन्होंने मजापहित साम्राज्य के अंतिम शासक ब्रविजय पंचम को इस्लाम कबूलने पर श्राप दिया था, ‘500 वर्ष बाद प्राकृतिक आपदाओं के दौर में वे पुनः लौटेंगे और हिन्दू धर्म को पुनर्स्थापित करेंगे।’
🚩यह बात सत्य है कि जिस प्रकार से 2004 में आई हिन्द महासागर की सुनामी में 2 लाख से अधिक इंडोनेशियाई नागरिकों की मृत्यु हो गई थी, फिर 2006 में हिन्द महासागर में आए भूकंप के कारण 5 हजार से अधिक लोगों ने जान गँवाई थी, फिर जावा में भूकंप, आदि घटनाओं के कारण वहाँ के निवासी सबदापालन की भविष्यवाणी को बड़ी गंभीरता से ले रहे हैं और ऐसी विपदाओं से बचने के लिए अपने पैतृक हिन्दू धर्म में लौट रहे हैं।
🚩किन्तु सबदापालन के श्राप और भविष्यवाणी के अलावा कुछ अन्य गंभीर कारण भी हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। यहाँ जो सबसे पहला कारण सामने आता है- वह है इंडोनेशियाई लोगों में वास्तविक इतिहास का बोध एवं अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान। जाने-माने प्रोफ़ेसर शंकर शरणजी ने एक समय कहा था, ‘भारतीय मुसलमानों के सामने यदि उनका वास्तविक इतिहास रख दिया जाए तो दूसरे ही क्षण वे सभी इस्लाम का त्याग कर देंगे।’
यद्यपि स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी हिन्दू बहुल भारतीय राज्य यह करने में सक्षम नहीं हो पाया है किन्तु मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया ने यह कर दिखाया है। यहाँ मजापहित साम्राज्य एवं अन्य हिन्दू साम्राज्यों की उपलब्धियों पर बहुत बल दिया जाता है। ‘गजह मद’ जैसे हिन्दू सेनापति यहाँ के नेशनल हीरो हैं। यहाँ के मुस्लिमों को ज्ञात है कि उनके पूर्वज तुर्क या अफ़ग़ानिस्तान से आए लुटेरे नहीं अपितु सर्वधर्म समभाव रखने वाले हिंदू थे। इसलिए अपने इतिहास के मूल धर्म में जाना और अपने पूर्वजों के धर्म को अपनाना- यहाँ गौरव का विषय बन गया है।
🚩दूसरा बड़ा कारण है- यहाँ की संस्कृति में रामायण और महाभारत का प्रभाव। सुकर्णो के समय में पाकिस्तान के एक प्रतिनिधिमंडल को इंडोनेशिया में रामलीला देखने का मौका मिला। प्रतिनिधिमंडल में गए लोग इससे हैरान थे कि एक इस्लामी गणतंत्र में रामलीला का मंचन कैसे हो रहा है। यह सवाल उन्होंने सुकर्णो से भी किया। सुकर्णो ने तुरंत जवाब दिया, ‘इस्लाम हमारा मजहब है और रामायण हमारी संस्कृति।’
🚩यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इंडोनेशिया के मुस्लिम, रामायण और महाभारत को अनेक भारतीयों से भी अधिक जानते हैं। यहाँ के लोगों की मानसिकता के साथ-साथ रग-रग में इन दो महाकाव्यों के पात्र बसे हुए हैं। यहाँ घर-घर में रामायण और महाभारत का पाठ होता है। यहाँ रामायण एवं महाभारत के चरित्रों के आधार पर नाम रखना बहुत ही आम बात है। यहाँ इन चरित्रों का उपयोग स्कूली शिक्षा के लिए भी होता है। साथ ही यहाँ वर्ष भर रामायण एवं महाभारत पर कार्यक्रम होते रहते हैं। इंडोनेशिया की रामलीला विश्वभर में प्रसिद्ध है।
रामायण एवं महाभारत के इस प्रभाव के कारण इंडोनेशियाई मुस्लिम, हिन्दू धर्म के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। साथ ही आज इंडोनेशिया के मुसलमान कुरान भी पढ़ रहे हैं एवं दूसरी ओर रामायण और महाभारत भी। हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान फादर कामिल बुल्के ने 1982 में अपने एक लेख में लिखा था, “35 वर्ष पहले मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गाँव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा कि आप रामायण क्यों पढ़ते हैं? तो उन्हें उत्तर मिला कि मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूँ।”
🚩तीसरा कारण- यहाँ जिस प्रकार से खुदाई के दौरान हिन्दू मंदिर मिल रहे हैं, इससे जनता में हिन्दू धर्म के प्रति एक कौतूहल एवं जिज्ञासा उत्पन्न हो रही है। भारत में हिंदुओं को अपना एक राम मंदिर बनाने के लिए मुस्लिम समुदाय से एक लंबा संघर्ष करना पड़ा, किन्तु इसके विपरीत इंडोनेशिया के मुस्लिमों ने हिन्दू एवं बौद्ध मंदिरों को वहाँ की धरती में से खोज निकाले हैं और उन्हें फिर से खड़ा करके पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं।
🚩जावा में 15 बड़े हिन्दू मंदिर खोजे गए हैं, जिनमें परबनन शिव मंदिर और बोरोबुदुर बौद्ध विहार मुख्य हैं। अकेले बाली द्वीप में 20,000 से अधिक मंदिर हैं जो अपने आप में बहुत बड़ी बात है। इसके अतिरिक्त जकार्ता और अन्य द्वीपों में भी ऐसे बहुत से मंदिर खोजे गए हैं जिस कारण इंडोनेशिया के मुस्लिम लगातार हिन्दू धर्म से अपना जुड़ाव अनुभव कर पा रहे हैं और यही अनुभव उन्हें हिन्दू धर्म में लौटने की प्रेरणा दे रहा है।
🚩चौथा और सबसे महत्वपूर्ण कारण जिस पर बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है वह है- इंडोनेशिया में भी बढ़ रही इस्लामिक कट्टरता। इस बात में कोई दो राय नहीं कि इंडोनेशिया के मुस्लिम सुल्तान हिन्दुओं को बलपूर्वक मुस्लिम बनाने में सफल रहे, किन्तु यहाँ चूँकि मुस्लिम शासकों की सत्ता बहुत कम समय तक ही रही इसलिए नए-नए मुस्लिमों का उस हद तक इस्लामीकरण नहीं हो पाया जितना भारत में हुआ। यही कारण है कि उपासना पद्धति और कुछ छोटे-मोटे रिवाज बदलने के बावजूद यहाँ के लोग हिन्दू संस्कृति में ही बने हुए हैं।
किन्तु अब जैसे-जैसे समय जा रहा है यहाँ भी कट्टरवादी ताकतें सक्रिय हो रही हैं। नतीजन यहाँ भी हिन्दू-मुस्लिम के बीच तनाव और आतंकवाद पग पसारने लगा है। 2002 में बाली द्वीप में अब तक के सबसे घातक आतंकी हमले में 240 लोगों की मौत हो गई थी। 2005 में एकबार फिर श्रृंखलाबद्ध आत्मघाती धमाकों में 26 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल हो गए।
बाली बम धमाकों के दोषी अब्दुल अजीज ने स्वीकार किया था कि बाली द्वीप को हिन्दू बहुल होने के कारण ही हमलों के लिए चुना गया था। 2012 में सुमात्रा द्वीप के हिन्दुओं पर स्थानीय मुस्लिमों ने हमला किया, जिसमें 14 की मौत हो गई थी और 1000 से अधिक हिन्दू बेघर हो गए थे। इस प्रकार की इस्लामिक कट्टरता के चलते यहाँ के लोगों को भी अब वास्तविक कारण समझ आ रहा है। इंडोनेशिया में मज़बूत हो रही वहाबी विचारधारा के कारण यहाँ के लोगों का इस्लाम से विश्वास उठता जा रहा है और वे हिन्दू धर्म की ओर लौट रहे हैं।
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